Saturday, July 6, 2013

बीकानेर में गहलोत

प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज और कल बीकानेर जिले के दोहरे दौरे पर हैं। इसे दोहरा इसलिए कहा कि दो-दिन की इस यात्रा के दौरान वे कई सरकारी कार्यक्रमों हिस्सा लेंगे तो साथ-साथ कांग्रेस संदेश यात्रा के अंतर्गत होने वाली जन सभाओं को भी संबोधित करेंगे। बीच के समय में जिले की सातों सीटों के संभावित उम्मीदवारों के नाम भी टटोलेंगे। उन तक पहुंचने वालों में से गहलोत अपने आग्रहों-दुराग्रहों के आधार पर प्रत्येक की सुनेंगे या अनसुनी करेंगे। गहलोत की खासीयत यही है कि प्रत्येक कार्यकर्ता की बात को उसके वजन के अनुसार सुनते हैं और याद भी रखते हैं, और जब जिसकी या जिस बात की जरूरत होती है उसका उपयोग कर लेते हैं। प्रदेश में गहलोत एकमात्र ऐसे नेता हैं जिनका प्रत्येक जिले और अधिकांश तहसीलों के कई नेताओं-कार्यकर्ताओं से उनके नाम से सम्बोधन-सम्पर्क हैं। गहलोत की सफलता का एक कारण उनके इसपीआर’ (सम्पर्क शैली) को माना जाता है।
गहलोत दो दिन और दो रात बीकानेर में रहेंगे। देर रात तक सैकड़ों की सुनेंगे अपने हिसाब से अपनी मस्तिष्क की हार्ड डिस्क में किसे दर्ज करना है किसे नहीं ये इसे वे बखूबी जानते समझते हैं। गहलोतएट पीएम नो सीएमनहीं हैं, वे प्रदेश मुख्यालय में भी देर रात तक सम्पर्क या काम में लगे पाए जाते हैं।
गहलोत की इस यात्रा से पहले बीकानेर का जन सम्पर्क विभाग भी मुस्तैद दिखा। कल वहां से एक प्रेसनोट भी जारी हुआ जिसमें यह बताया गया है कि इस सरकार ने पिछले चार सालों में इस जिले के लिए क्या-क्या घोषणाएं कीं और कौनसी घोषणा किस स्थिति में है। कई घोषणाओं के काम पूर्ण हो गये तो कई होने को हैं। स्वयं मुख्यमंत्री ने भी ध्यान रखा और यहां आने से पहले तकनीकी विश्वविद्यालय के लिए कैबिनेट मंजूरी की औपचारिकता पूरी कर दी, ये तो हुई शासन-प्रशासन सम्बन्धी बातें।
चूंकि उनके इस दौरे से कांग्रेस सन्देश यात्रा भी जुड़ी है। तो लगे हाथ सातों विधानसभाई क्षेत्रों में कांग्रेस की स्थिति के सन्दर्भ में भी बात कर लेनी चाहिए। मुख्यमंत्री की रद्द हो चुकी पिछली दो बीकानेर यात्राओं के अवसर पर इस संबंध में लिखे एक जून के विनायक के सम्पादकीय के कुछ अंश यहां पुनः प्रकाशित कर रहे हैं। इसमें 16 अप्रैल के संपादकीय का भी उल्लेख है।
उक्त संपादकीय मेंविनायकने विस्तार से सातों सीटों का तलपट रखकर आशंका जता दी थी कि गहलोत ने इस जिले को किनके भरोसे छोड़ रखा है। कहने को तो यहां पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व मंत्री और मौके का आभास होते ही मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने से ना चूकने वाले डॉ बीडी कल्ला भी हैं तो भारी भरकम पोर्टफोलियो के साथ गृहराज्यमंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल भी। अपने स्वभाव के चलते क्षेत्र के चुनौतीहीन नेता होने से चूके रामेश्वर डूडी भी यहीं के हैं। लेकिन इन तीनों की जद्दोजेहद अपने-अपने चुनाव क्षेत्र की सीमा लांघने में असमर्थ है। पिछला चुनाव डॉ. बीडी कल्ला और रामेश्वर डूडी दोनों हार गये थे तो वीरेन्द्र बेनीवाल की जीत का श्रेय खुद से ज्यादा प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को है, जिसने समझौते के तहत यह सीट इनलोद को दे दी थी, भाजपा इस बार शायद यह गलती ना दोहराए।
रामेश्वर डूडी को नोखा से टिकट पार्टी दे देगी इससे वे खुद ही आश्वस्त नहीं हैं। पार्टी यदि कन्हैयालाल झंवर को टिकट देगी तो रामेश्वर डूडी के भरसक प्रयास रहेंगे कि उनकी खुद ही की पार्टी वहां से ना जीत पाए, और हो सकता है वे इसमें सफल भी हो जाएं। डॉ. कल्ला की स्थिति कोई ज्यादा सुधरी नहीं लगती, बिसात पिछले चुनाव सी बिछे तो आगामी चुनाव में ज्यादा से ज्यादा कल्ला की हार का अन्तर कम हो सकता है। कोलायत और बीकानेर पूर्व में कांग्रेस के पास वर्तमान विधायकों की जोड़ का कोई उम्मीदवार ही नहीं है। श्रीडूंगरगढ़ में भाजपा में लौटे पूर्व विधायक और वर्तमान नगरपालिका अध्यक्ष किसनाराम नाई कांग्रेस विधायक मंगलाराम को लगातार चौथी बार विधानसभा में पहुंचने देंगे, इसमें पूरा सन्देह है। खाजूवाला की बात करें तो भाजपा-विद्रोही गोविन्दराम मेघवाल की पिछले दिनों गहलोत की अकेले में हुई बातचीत में क्या सिटपिट बनी ये तो वे दोनों ही बता सकते हैं, लेकिन फिलहाल कांग्रेस के पास ऐसा कोई नाम नहीं जो खाजूवाला सीट को निकाल ले जाए। कहने का कुछ भाव यही है कि बीकानेर जिले को कुछ अतिरिक्त समय देकर गहलोत को खुद ही देखना होगा अन्यथा वर्तमान की दो सीटें भी हाथ से जा सकती हैं।

6 जुलाई,  2013

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