Thursday, July 4, 2013

कोलायत : भाजपा और कांग्रेस

1991 में सुभाष घई की फिल्म आई थीसौदागर इस फिल्म में दो दिग्गज दिलीपकुमार और राजकुमार को घई ने एक साथ कास्ट किया। फिल्मी मुम्बई में इसे इसी कास्टिंग के आधार पर विशिष्ट माना गया। घई खुद इसी दुनिया के दिग्गज हैं, इसीलिए वे इसे संभव कर पाये। इस फिल्म के एक गाने के बोल हैं- ‘इमली का बूटा बेरी का बेर इमली खट्टी मीठे बेर। इस जंगल में हम दो शेर, चल घर जल्दी हो गई देर।पर्दे पर दिलीपकुमार और राजकुमार पर फिल्माया यह गाना तब बहुत लोकप्रिय भी हुआ।
अभी यह गाना इसलिए याद आया कि कल ही कांग्रेस पर्यवेक्षक राजेश धरमानी ने कोलायत में कांग्रेसियों से आगामी विधानसभा चुनावों के सन्दर्भ में फीडबैक लिया। कहते हैं कांग्रेस की इस बैठक में चर्चापुरुष भाजपा विधायक देवीसिंह भाटी ही रहे। ऐसा होना लाजिमी भी था भाटी यहां से 1980 से निर्बाध विधायक जो हैं, और यह भी कि 1977 के बाद ही यह सीट कांग्रेस के लिए मृगतृष्णा-सी साबित हो रही है। आपातकाल के बाद जनता पार्टी के टिकट पर रामकृष्णदास गुप्ता द्वारा कांग्रेस के विजयसिंह एडवोकेट को हरा कर छीनी यह सीट कई तरह के पापड़ बेलने के बाद भी आज तक कांग्रेस को हासिल नहीं हो पायी। 1977 के बाद कोलायत से दो बार विधायक रह चुकी कांता खथूरिया ने 1980 और 85 में दो बार कोशिश करके घुटने टेक दिए तो बीकानेर (पश्चिम) के वर्तमान भाजपा विधायक गोपाल जोशी भी यहां से 1990 में कांग्रेस से ही लड़ के देख चुके हैं, उसके बाद जातीय सिट पिट पर दो बार हुकमाराम बिश्नोई लड़ चुके हैं तो दो बार देवीसिंह के रिश्ते के ही भाई-बन्धु रघुनाथसिंह भाटी को भी आजमाया जा चुका है। 1998 में जब कांग्रेस के रघुनाथसिंह भाटी मैदान में थे तब जरूर जीत-हार का अन्तर न्यूनतम 1609 रहा। तब लगा भी था कि इस बार इस मगरे के शेर को खदेड़ दिया जायेगा, लेकिन संभव नहीं हुआ। पिछले पैंतीस वर्षों में कोलायत में किसी राष्ट्रीय पार्टी की पैठ रही हो ऐसा नहीं लगता। किसी भी पार्टी की साख कोलायत में उसके सिम्बल (चुनाव चिह्न) से ज्यादा नहीं मानी जा सकती। प्रभावी देवीसिंह ही रहे, वे चाहे जनता दल से लड़े हों या भाजपा से या फिर अपने बनाये सामाजिक न्यायमंच से। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि 1977 के लोकसभा और विधानसभा, दोनों चुनावों में कोलायत में जनता पार्टी की जीत या बढ़त में देवीसिंह का योगदान कम नहीं था। बल्कि इन्हीं दोनों चुनावों में भाटी ने अपना खुद का जो आधार बनाया, आज तक वही सब उनके काम रहा है।
भाटी की राजनीति सामूहिकता की कभी नहीं रही, उन्होंने अपने क्षेत्र के प्रत्येक जातिसमूह के आगीवानों, दबंगों का पोषण किया, ऐसे पोषित जन ही देवीसिंह के हर चुनाव में काम आए। राजस्थान के 200 विधानसभा क्षेत्रों में कोलायत आज भी सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में माना जाता है तो इसके लिए जिम्मेदार भी देवीसिंह को ही ठहराया जा सकता है। व्यक्तिगत लाभों से ये कभी ऊपर उठे ही नहीं फिर वे चाहे खुद के हों या अपने समर्थकों के। एक से अधिक बार प्रभावशाली मंत्री पदों पर रहते हुए भी कोलायत के लिए उन्होंने कुछ खास नहीं किया। इस तरह की कार्यप्रणाली में आम वोटर को कुछ भी अनुकूलता नहीं मिलती, वोटर भी विकल्पहीनता में कहें या दबाव में, वोट उन्हें देवीसिंह को ही देना पड़ता है। इसी के चलते देवीसिंह भी पार्टियों को ठेंगे पर रखते हैं।
कांग्रेस ने भी इस क्षेत्र को 1977 के बाद से उपेक्षित छोड़ रखा है, चुनावों के सन्दर्भ में भी पार्टी ने कभी गम्भीरता से प्रयास नहीं किये। 1998 के चुनावों में कांग्रेस अपने उम्मीदवार पर यदि कुछ अतिरिक्त ध्यान देती तो तसवीर बदल सकती थी। अब भी नहीं लगता कि पार्टी कोलायत सीट के लिए आज भी गम्भीर है। पर्यवेक्षकों का आना-जाना और किसी को टिकट देने की रस्में निभाना तो पार्टियों का रूटीन काम है। रही बात कोलायत क्षेत्र की तो इसे पार्टियों ने इसे अभी एकशेरके हवाले ही कर रखा है। दूसरे शेर को खड़ा करने के लिए सुभाष घई जैसा माद्दा रखने वाले की जरूर होती है। अगर है भी तो उनकी प्राथमिकता में कोलायत आज भी नहीं लगता। कोलायत की आमरियायाअपने भाग्य को कोसने के अलावा कुछ नहीं कर सकती, और जिनको भाटी पोसते हैं उनकीपौ-बारहपांच साल तो और रहनी ही रहनी है!!

4 जुलाई,  2013

2 comments:

maitreyee said...

बहुत अच्छा...

maitreyee said...

बहुत अच्छा...