अखबारों में एक खबर और छपी है फड़बाजार के हवाले से। दसेक साल पहले उन शहरियों ने तब राहत की सांस ली जो इस बाजार का उपयोग विभिन्न कारणों से करते थे जब तब की नगर पालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते इसके मुहाने पर नियमित हुए कब्जे को राज्यादेश से हटाने के आदेश हुए थे, लेकिन ये आदेश नियमित हुए पूरे कब्जे को हटाने के नहीं हुए, तो सबको आश्चर्य हुआ। खुलकर तो कोई नहीं बोले लेकिन दबे मुंह यह चर्चा जरूर हुई कि आधा न हटाने के एवज में शहर के प्रभावशाली नेता ने दस लाख रुपये लिए हैं। अब ये रुपये दिए गये थे या नहीं दिए गए, इसके बारे में या तो लेने-देने वाले जानते हैं या जिसने यह डील करवाई वह जानता होगा। पर अब उसे लाभ का बड़ा अवसर कोर्ट ने ‘रोशनी-हवा’ की आड़ में जरूर दे दिया है। तब राज्य सरकार ने अपने द्वारा नियमित किए इस कब्जे की लगभग आधी जमीन को पुनर्क्रय (बायबैक) किया था और इस तरह क्रय की गई इस जमीन पर उसने दीवार खिंचवाने का हक हासिल कर लिया था। अब देखने वाली बात यह होगी कि राज्य सरकार अपने इस हकसफे के लिए ऊपरी कोर्ट में अपील करती है या फिर किसी दाबाचिंथी में आकर चुप बैठ जाती है।
27 जुलाई, 2013
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