Wednesday, July 3, 2013

कांग्रेस और खाजूवाला

छह-सात जुलाई को जिले में कांग्रेस की संदेश यात्रा प्रस्तावित है। मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष को आना है, ‘कायदेसे तो इस समय सभी कांग्रेसियों को शीर्षासन की मुद्रा में होना चाहिए पर दीख सभी मुस्तैद ही रहे हैं। छह-सात को यात्रा का बीकानेरी पड़ाव यदि सम्पन्न हो जाता है तो एकबारगी तो शान्ति हो जायेगी पर होगी वह तूफान के पहले की ही शान्ति। इसके बाद वे सभी जो टिकट पाने की दौड़ में गम्भीर हैं, अपने-अपने हिसाब से पनडुब्बी के अन्दर बाहर हो लेंगे। वैसे जिले की सात सीटों में एक नई फाचक डल सकती है! राहुल गांधी ने हाल में पार्टी के आधे पदों पर महिलाओं को लगाने का जोब्रह्मवाक्यकहा है, हो सकता है उसकी छाया टिकट बंटवारे पर भी दीखे। यदि ऐसा होता है तो शहर की दोनों सीटों-पूर्व और पश्चिम-पर कुछ खलबली होगी, क्योंकि बाकी की पांच सीटों पर पार्टी को कोई महिला उम्मीदवार शायद ना मिले! खाजूवाला से एक दावेदारी सुषमा बारूपाल की हो सकती है। शायद उन्होंने यह मन बना रखा हो कि पार्टी की सरकार बने और घोषणा मुताबिक विधान परिषद का गठन हो तो बिना हिल्लोहुज्जत के ही विधायकी क्यों ना हासिल की जाय! जमना बारूपाल का मन भी तो ऐसा ही रहा है।
बात खाजूवाला पर गई तो आज उस पर फिर बात करने का बहाना भी है। आगामी चुनावों के मद्देनजर पार्टी की ओर से जो विधानसभा क्षेत्रवार पर्यवेक्षण चल रहा है, उसी के तहत पर्यवेक्षक राजेश धरमानी कल खाजूवाला क्षेत्र के नेताओं, कार्यकर्ताओं और गैर पार्टी सदस्य टिकटार्थियों से मिले और आवेदन लेने की रस्म अदायगी की। रस्म अदायगी इसे इसलिए कहा कि अधिकांशतः इस तरह के आवेदन धरे रह जाते हैं और टिकट कई अन्य कारणों और कारकों से तय हो जाता है। कहने को तो खाजूवाला के लिए कांग्रेस टिकटार्थियों की फेहरिस्त ठीक-ठाक है और आवेदकों में कई पार्टी के प्राथमिक सदस्य भी नहीं हैं। कई ऐसे भी हैं जो सरकारी सेवा में डॉक्टरी कर रहे हैं? अच्छी भली सेवा में लगे इन डॉक्टरों को पता नहीं इस राजनीति में सीधा मंत्री पद क्यों दिखने लगता है। एक डॉक्टर को बनाने में सार्वजनिक पूंजी का लाखों रुपया खर्च होता है और जिस निमित्त यह खर्च होता है, इस तरह के विचलन से वह व्यर्थ चला जाता है। डॉक्टरों का अपने पेशे से च्युत होनाहिप्पोक्रेटिक शपथकी अवहेलना भी है। वैसे इस हिप्पोक्रेटिक शपथ की गत कचहरी से लेकर संसद, राष्ट्रपति भवन तक में ली जाने वाली अन्य शपथों से कोई ज्यादा अच्छी नहीं।
बात खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र की कांग्रेस के सन्दर्भ में करनी है तो लौट आते हैं। पिछले चुनाव में वहां से कांग्रेसी प्रत्याशी के रूप में सुषमा बारूपाल ने चुनाव लड़ा था--अब शायद वह अनमनी हैं। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित इस खाजूवाला विधानसभा का अधिकांश क्षेत्र देवीसिंह भाटी के प्रभाव क्षेत्र का है, इसका अधिकांश हिस्सा पुराने कोलायत विधानसभा क्षेत्र में आता था। वर्तमान विधायक डा. विश्वनाथ इसीलिए राजनीति की शुरुआत से ही भाटी की अंगुली पकड़ के चल रहे हैं और उन्हें यह भी समझ है कि इसी तरह चलने में ही सार है। यह समझ अभी तक उनकी कायम भी है। सो कांग्रेसी उम्मीदवार चाहे वो कोई भी हो, उसे विश्वनाथ की इस समझ को बदलने में ताण आयेगी। कांग्रेस को इस सीट को निकालना जरूरी लगा तो हो सकता है वह गोविन्द मेघवाल को अपना उम्मीदवार बना सकती है। राहुल की यात्रा के समय गोविन्द मेघवाल की अशोक गहलोत से मुलाकात के ऐसे ही कयास निकाले गये थे। वसुन्धरा राजे की पिछली सरकार के समय उनका अतिमहत्वाकांक्षी होना बाधा बना था, हो सकता है उससे गोविन्द मेघवाल सबक लिया हो और परिपक्व होकर वैसी मनस्थिति से बाहर गये हों, संभवतः अब वे कांग्रेस के सामने कोई बड़ी शर्ते पूर्व में ही ना रखें। क्योंकि व्यावहारिक राजनीति में हासिल वही करता है जो मौके की नजाकत को समझ कर कदमताल करता है।

3 जुलाई,  2013

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