राज्य विधानसभा के चुनाव इसी वर्ष के अन्त में होने हैं, कुल जमा छह माह भी शेष नहीं है अब। सुराज संकल्प यात्रा पर भाजपा की वसुन्धरा राजे जिले का दौरा करके लौट गईं। अनायास कुछ घटित ना हो तो कांग्रेस की सन्देश यात्रा भी सप्ताहान्त तक हो लेगी। जिले की बात करें तो दोनों ही पार्टियों के कुछ टिकट उम्मीदियों को छोड़ कर किसी में भी कोई उत्साह नहीं देखा जा रहा है। दोनों ही पार्टियों के पास अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने का कोई बहाना नजर नहीं आ रहा है। सुराज संकल्प यात्रा की बीकानेर की आमसभा का फीका रहना पार्टी के संभावित उम्मीदवारों के चिन्ता का कारण बन गया है तो कांग्रेसियों की स्थिति भी इनसे कोई बहुत बेहतर नहीं है।
नगर विकास न्यास और नगर निगम दोनों के मुखिया कांग्रेस के हैं। न्यास अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद की पीआर (जनसम्पर्क) शैली महापौर भानीभाई से ज्यादा कारगर साबित हो रही है। वे रोज कुछ न कुछ ऐसा मैनेज कर लेते हैं कि उनकी फोटो-खबर बन जाती है। हालांकि कोशिश भानीभाई भी कर रहे हैं। लेकिन फोटो-खबर के मामले में पत्रकार होते हुए भी पिछड़ रहे हैं। कहने को तो महापौर और न्यास अध्यक्ष दोनों ही के काम की लम्बी फेहरिस्त और दावे हैं। लेकिन इससे माहौल में बहार आती नजर नहीं आ रही है।
इन्हें 2008 को याद करना चाहिए जब वसुन्धरा ने राज्य स्तरीय स्वतंत्रता दिवस का आयोजन बीकानेर में करने के नाम पर सार्वजनिक धन को जमीन पर पसारना शुरू किया था। धड़ा-धड़ सड़कें बनाई गई तो फटाफट सूरसागर का उद्धार किया गया। शहर में हजारों पेड़ मय ट्रीगार्ड के लगाए गये। एक बार तो यूं लगने लगा कि बीकानेर हरा भरा दीखने लगेगा। ट्रीगार्ड के अवशेष जहां-तहां पड़े-बिखरे फिर भी मिल जायेंगे, पौधा कोई पेड़ होता एक भी नहीं देखा जा सका। सूरसागर करोड़ों की दूसरी किश्त खर्च करके भी जैसा-तैसा है तो बनी सड़कें कई बार के पेचवर्क के बाद काम आ ही रही हैं।
इसे सराहना ना मानें, कहने का भाव यही है कि आम आदमी के लिए काम होने से होता दीखना ज्यादा जरूरी है। हालांकि ऐसे होता दिखलाने की हड़बड़ी में सार्वजनिक धन की बर्बादी ज्यादा होती है। विनायक ने एक से अधिक बार पहले भी बताया है कि भाजपा के पिछले राज से कांग्रेस के इस राज में शहर में धन ज्यादा खर्च होने के बावजूद ये कांग्रेसी सिक्के की खनक पैदा करने में असफल रहे हैं। यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो चुनावों के नतीजे भी उनको ही भुगतने होंगे।
सड़कों, नालियों और रोड लाइटों का रखरखाव ऐसे सामान्य काम हैं जिन्हें तत्काल करवा कर वाहवाही लूटी जा सकती है। सड़क क्रॉस करती नालियों के जगह-जगह से पतड़े-जालियां गायब हैं, इससे गुजरने वाले को केवल और केवल धचके लगते हैं और कीचड़ पसरने से सड़कें भी खराब होती हैं। रोड लाइटों की मेन्टीनेंस में कोई बड़ा समय नहीं लगता है क्योंकि सामान्यतः गड़बड़ी फ्यूज या टाइमर की ही होती है और इसे दुरुस्त करने से पूरी सड़क रोशन हो जाती है। ऐसे छोटे-छोटे कार्यों में कोई बड़े धन की जरूरत नहीं होती है, बस सतत् निगरानी रखने और मेन्टीनेंस तत्परता से करवाने भर की जरूरत है। अन्यथा यह शहर ये कहते भी देर नहीं लगाता कि ‘और द्यो गोकुलजी नै वोट।’
2 जुलाई 2013
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