Tuesday, May 28, 2013

शहरी यातायात ‘भगवान’ भरोसे

बीकानेर राजस्थान के उन जिलों में शामिल हो गया है जहां पुलिस महकमे में अलग से ट्रैफिक सर्किल (यातायात वृत्त) है। कहने को यातायात उपअधीक्षक का पद है। लेकिन साथ में यह भी कह सकते हैं कि बीकानेर राजस्थान के उन शहरों में से भी है जहां की ट्रैफिक व्यवस्था सर्वाधिक लचर है। हालांकि इसे स्वीकारने में कोई हिचक नहीं है कि शहर के ट्रैफिक दबाव के हिसाब से सिपाही और अन्य प्रशासनिक स्टाफ आधा भी नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार ने यातायात वृत्त सृजित किया है तो स्टाफ भी देगी। लेकिन क्या यह सब व्यवस्था हो जाने भर से शहर का ट्रैफिक सुधर जायेगा। जवाब हो सकता है नहीं। क्योंकि यहॉं के ट्रैफिक महकमे ने अपनी साख लगभग खत्म कर ली है, ट्रैफिक पुलिस का सिपाही हो या उसका छोटा-बड़ा अधिकारी, वे सड़कों पर या तो असहाय से खड़े रहते हैं, या कहीं किनारे खड़े हथाई में व्यस्त होते हैं। वे ऐसा नहीं कर रहे हों तो समझ लें कि वे कहीं आसपास ही उगाही में लगे हुए हैं। रुतबे की बात तो करना इसलिए भी गैर जरूरी है कि अब तो इनके महकमे के चार्ज वाले अधिकारी का भी कोई रुतबा देखने में नहीं आता है। वह खुद बेतरतीब चल रहे वाहनों के पास से निर्लिप्त भाव से गुजर जाते हैं। बीच चौराहे पर खड़ी बसों की अनदेखी कर ये यूं गुजरते हैं जैसे ये किसी और शहर के अधिकारी हों। ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है किसी तिराहे-चौराहे के किनारे खड़े किसी ट्रैफिक सिपाही को अपने अफसर के गुजरने का भान हो जाए तो वह चौकन्ना जरूर हो जाता है और अफसर की नजर उस पर पड़ गई तो सैल्यूट मार देता है। बेतरतीब खड़े और चल रहे वाहनों के बीच जैसे उसकी ड्यूटी इतनी भर ही है।
सबसे बदहाल जो तिराहे-चौराहे शहर में हैं उनमें रेलवे स्टेशन के सामने गंगाशहर रोड का तिराहा है, जहां ऑटो रिक्शा वाले आधे तिराहे को रोके खड़े रहते हैं। ठीक ऐसी-सी स्थिति कोटगेट के अन्दर-बाहर की है। सादुलसिंह सर्किल को सर्किल कहें या बेतरतीब पार्किंग स्थल समझ से परे है। अन्दरूनी शहर की बात करना इसलिए जरूरी नहीं है कि वहां कि गलियां ही संकड़ी हैं और किसी मोड़-मुहाने पर भी कोई मकान बन रहा है तो उसका मकान छः इंच से लेकर एक-डेढ़ फुट सड़क तक बढ़ें तो अपनी तौहीन समझता है। यह ध्यान रखना शायद नगर निगम का काम ही नहीं है।
कोठारी हॉस्पिटल के पास का राजमार्ग डेढ़ सौ फुट से ज्यादा चौड़ा होगा लेकिन कोई वहां से बिना बाधा गुजर के बताए। रानी बाजार पुलिये पर अस्पताल की तरफ से चढ़ना हो या उतरना, आसान नहीं है। अब तो अम्बेडकर सर्किल से आने वाली बसें पुल पर चढ़ते वक्त सवारी के लिए एक तरफ की पूरी सड़क रोक कर ऐसे खड़ी होती हैं जैसे यह स्टैण्ड ही हो और जब तक सवारियां इतमीनान से ना चढ़ जाएं तब तक पीछे लगे जाम की परवाह किए बिना बस थोड़ी भी आगे-पीछे नहीं होती, जबकि यहीं पर यातायात पुलिस का वृत्त कार्यालय है। यह बसें आगे जाकर गोगागेट सर्किल को ऐसा जाम करती हैं कि गंगाशहर की ओर से आने वाली बसें सर्किल का चक्कर लगाए बिना ही रानी बाजार की ओर मुड़ जाती हैं। हालांकि कुछ महीने पहले नोखा की ओर आने-जाने वाली बसों को रानी बाजार इण्डस्ट्रियल एरिया की रोड नं. पांच से ही आने-जाने की व्यवस्था की थी। लेकिन एक प्रभावशाली नेता ने इस व्यवस्था को छत्तीस घण्टे भी नहीं चलने दिया। फिर वैकल्पिक तौर पर यह व्यवस्था की गई कि यह बसें रानी बाजार चौराहे और गोगागेट चौराहे की बजाय रानी बाजार इण्डस्ट्रियल एरिया, रोड नं. पांच होकर नोखा रोड आएगी जाएंगी। यह व्यवस्था भी ज्यादा दिन नहीं चली।
अम्बेडकर सर्किल की स्थिति भी शार्दूलसिंह सर्किल जैसी ही है, यह सर्किल भी अघोषित पार्किग स्थल ही है। शहर के सबसे भीड़भाड़ वाले तौलियासर तिराहे से शाम को गुजरना गिनीज बुक में नाम लिखवाने से कम नहीं है। इस तिराहे पर यातायात दबाव कम करने के लिए ट्रैफिक को तुलसी सर्किल से राजीव चौक, मालगोदाम रोड होते हुए कोयला गली से गुजरने की व्यवस्था कुछ महीने पहले ही की गई। लेकिन लगता है ट्रैफिक महकमा यह मान चुका है कि वह भगवान तो है नहीं जो भगवान भरोसे चलने वाले इस ट्रैफिक को सम्हाल सके।
लेकिन असल बात कुछ और है। यहां कोई अधिकारी कुछ सुधार करने की सोचता भी है तो शहर में इतने नेता हैं जो चाहते ही नहीं है कि यह शहर सुचारु हो। उनका सम्बन्धित अधिकारी के पास सीधा फोन और अब तो मोबाइल पहुंचता है कि जो जैसे चल रहा है उसे वैसे ही चलने दें और आप भी अपना समय शान्तिपूर्वक गुजार लें।

28 मई, 2013

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