Thursday, May 30, 2013

खजांची मार्केट की डकैती

शहर के व्यस्ततम महात्मा गांधी रोड के खजांची मार्केट में कल दोपहर सात नकाबपोश घुसे और चौड़े-धाड़ै सोने के गहनों की दुकान में लूट की वारदात को अंजाम देकर सुरक्षित भाग भी लिए। पिछले एक अरसे में शहर में इस तरह की यह चौथी वारदात है। इससे पूर्व हुई तीन वारदातों के आरोपियों को पकड़ लिया गया है। पिछली तीनों डकैतियों के जो स्थान अपराधियों ने चुने वे कम भीड़-भाड़ वाले इलाके थे। पवनपुरी के चम्पाराम ज्वैलर्स के यहां हुई वारदात हो या रांगड़ी चौक के आंगड़िया आफिस की या फिर सूरज टॉकीज के पास बस से उतरे कूरियर वालों की--तीनों ही इलाके ज्यादा भीड़-भाड़ वाले नहीं थे। कल की वारदात को तो व्यस्ततम बाजार के कटलेनुमा खजांची मार्केट में अंजाम दिया गया है। लुटेरों को मौके का पूरा भान था सो वे दहशत पैदा करते हुए ही दुकान में घुसे, अन्यथा मार्केट के व्यापारी सावचेती और हौसला दिखाकर कटले के सभी दरवाजे बन्द कर देते तो लुटेरों के हाथ-पैर फूल जाते। लुटेरों द्वारा पैदा किए गये दहशती माहौल के चलते ही कटले में उपस्थित सैकड़ों में से किसी को भी ऐसी नहीं सूझी और िकन्हीं को सूझी भी हो तो वे डाफाचूक होकर रह गये।
जो माल ले गये हैं वह लाखों का था या करोड़ों का यह तो दूकान मालिक अपने सुभीते से जितना लिखवाएंगे उतना ही माना जाएगा। अभी तक की आशंका तो यही है लुटेरे वह माल लेकर एकबारगी तो किसी सुरक्षित मुकाम पर पहुंच गये होंगे। क्योंकि वारदात के इन अठारह-बीस घंटे तक वे पुलिस की किसी नाकाबन्दी के हत्थे च़ढ़े नहीं हैं। पुलिस का कहना है कि हम मुस्तैद हैं, उक्त उल्लेखित पिछली तीन वारदात के आरोपियों की तरह ही इन आरोपियों को भी धर दबोचने का भरोसा भी है। भरोसा ना करने का कोई कारण भी नहीं, क्योंकि पिछले अरसे की लूट और चोरी की अधिकांश वारदातों की गुत्थियां सुलझाने की उनकी बात में दम दीखता है। बताया जा रहा है कि शक की सूई बीकानेर की सदर जेल की ओर जा रही है। कहा जा रहा है कि पवनपुरी लूट की वारदात की योजना भी इसीसुधारगृहमें बनी थी। अगर सचमुच ऐसा है, जो है भी तो इन जेलों के अधिकृत नाम सुधारगृह की बजाय बिगाड़-गृह ही कर दिए जाने चाहिए। कहते हैं कि सुधारगृह अपराधियों के अभयारण्य और प्रशिक्षण केन्द्र जो हो गये हैं।
लेकिन किसी क्षेत्र में सरेआम इस तरह की वारदातों को अंजाम देने की हिम्मत करना राजस्थान पुलिस के उस आप्तवाक्य को ठेंगा दिखाना तो है ही जिसमें कहा गया हैआमजन में विश्वास, अपराधियों में डर।पुलिस महकमे का अपने क्षेत्र में भय और दबदबा ना हो तो इस तरह की वारदातें बार-बार होती हैं। वारदात के बाद की मुस्तैदी तो ठीक है लेकिन ऐसी ही मुस्तैदी महकमे की आम समय में रहे तो वारदात की, ऐसे दुस्साहसों की संभावनाएं कम हो जाती हैं। जैसे कल की वारदात को लेकर ही सम्बन्धित पुलिस थाने पर आरोप है कि थाने से लगभग सवा किलोमीटर दूर पहुंचने में ही उसे आधा घंटा लग गया!
पुलिस की पीठ थपथपाई के बावजूद खजांची मार्केट में अब तक की वारदातों को सुलझाना पाना उस पर सवाल तो खड़े करता ही है। चौकीदार की हत्या, पहले भी दुकानों के एक से अधिक बार ताले टूटने और कल की डकैती की वारदात यही साबित करती है कि खजांची मार्केट की वारदातें पुलिस के लिए अभेद्य हैं और इसी के चलते बाकाडाक मजमूनों में पुलिस खुद सन्देहों के घेरों में घिरती ही है!!


30 मई, 2013

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