Friday, May 17, 2013

रेल फाटकों की समस्या पर संजीदगी से विचारें


बुधवार को राहुल गांधी को जब बीकानेर पहुंचना था लगभग तभी कोटगेट रेलवे फाटक पर रेल अण्डरब्रिज के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ। कुछ देर के लिए रेल संचालन में भी बाधाएं डाली गई। कुछ प्रदर्शनकारियों ने इसे रेल बाइपास के समर्थन का प्रदर्शन भी बताया। प्रदर्शनकारियों में लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से सम्बन्धित लोग थे, कुछ ऐसे भी थे जो उम्रदराजी के चलते सार्वजनिक रूप से अब सक्रिय नहीं हैं।
नये और पुराने शहर को जोड़ने वाली इस महात्मा गांधी रोड का यातायात बद से बदतर होता जा रहा है। कभी शाम को गुजरना हो जाय तो दुबारा आने से तौबा के सिवाय आप कुछ नहीं करेंगे। ऊपर से कोढ़ में खाज यह कि शहर की ट्रैफिक पुलिस लगभग निष्क्रिय है। वह सक्रिय तभी दीखती है जब उसे जुर्माने की मासिक उगाही की लक्ष्यपूर्ति के लिए चालान काटना होता है। ट्रैफिक पुलिस को लकवाग्रस्त करने के जिम्मेदार यहां के राजनेता हैं जो उसे कोई निर्णय करने देते हैं और ही व्यवस्था बनाए रखने देते हैं। खैर यह तो मुद्दा ही अलग है। इस पर विनायक पहले भी अपनी बात रख चुका है।
बात तो कोटगेट और सांखला फाटक की समस्या पर भी एक से अधिक बार इस कॉलम में रखी जा चुकी हैं। समस्या जब तक जस की तस हो तो मीडिया का दायित्व बनता है कि उस पर बार-बार बात की जाय बल्कि चर्चा भी करवाई जाय। परसों बुधवार के प्रदर्शन का एक स्वर रेल बाइपास की मांग के समर्थन में था। इन दोनों रेल फाटकों की समस्या का रेल बाइपास को एकमात्र समाधान मानने वाले अपनी इस मांग पर लम्बे समय से अड़े हुए हैं। इन्हें जब-जब भी अनुकूलता मिलती है वे अपनी इस मांग की नीचे टगें लगवाने में जुट जाते हैं।
-एक साल पहले जब इसी मार्ग पर ऐलिवेटेड रोड की योजना बनी और महात्मा गांधी रोड के कुछ व्यापारियों को उनके व्यापार में असुविधा का भ्रम हुआ, तब ना केवल व्यापार उद्योग मण्डल उनके समर्थन में गया बल्कि रेल बाइपास के समर्थक भी उनके साथ खड़े हुए। जबकि इन दोनों रेल फाटकों का आदर्शतम और व्यावहारिक समाधान ऐलिवेटेड रोड ही था और है। उस स्थिति में व्यापार उद्योग मंडल और शहर के संजीदा लोगों की जिम्मेदारी तो यह थी कि वह ऐलिवेटेड रोड की सुविधाओं को खुद भी समझते और निरर्थक विरोध करने वालों को भी समझाते। तब उस योजना की स्वीकृति भी गई थी और बजट भी। समझदारी दिखलाई होती तो ऐलिवेटेड रोड का काम अब तक पूरा हो चुका होता। और, यदि ऐसा हो जाता तो आज आरयूबी जैसी दोयम-दर्जे की जन सुविधा की जरूरत भी नहीं होती और ना ही व्यापारियों और संजीदा लोगों को इसका विरोध ही करना पड़ता।
इस तरह की समस्याएं तभी बनी रहती हैं जब सभी दबाव समूह केवल अपने लाभ की, अपनी सुविधाओं की और अपनी हेकड़ी की ही परवाह में लगे रहते हैं। इस तरह के व्यक्तिगत कारणों से ऊपर नहीं उठेंगे तो किसी समस्या का समाधान नहीं मिलना है। ऐसी स्थिति में महात्मा गांधी मार्ग से गुजरने वालों को भुगतने के अलावा कोई चारा नहीं है। लेकिन इससे भी बदतर स्थिति में इस मार्ग पर धंधा लेकर दिन भर बैठे रहने वाले और यहां के  बाशिंदें हैं, जो दिन में कई-कई बार लगने वाले जाम से उठने वाले ऑटोमोबाइल धुएं के अवशेषों और खंख को अपनी सांसों के साथ फेफड़ों में जब्त कर जाने कितनी बीमारियों को न्योतते हैं?
इन सार्वजनिक सड़कों से गुजरने और जाम में फंसने से आप किसी को रोक नहीं सकते। बार-बार लगने वाले जाम से इस मार्ग पर खरीदारी करने आने वाले भी लगातार ऊबते जा रहे हैं और वे वैकल्पिक बाजारों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। जरूरत इस समस्या के समाधान के व्यावहारिक विकल्पों पर विचार करने की है, और रेल बाइपास तो व्यावहारिक विकल्प है ही नहीं? विनायक इस पर एक से अधिक बार चर्चा कर चुका है।
17 मई, 2013

1 comment:

maitreyee said...

Bikanerites should understand the problem and work on the solution rather acting selfish!!
Such mindset would never let Bikaner grow....BRILLIANT ARTICLE!!!