Tuesday, May 21, 2013

बालिका-गृह में दुष्कर्म


जयपुर का आवाज फाउण्डेशन पिछले कुछ दिनों से दुष्चर्चा में है। मूक-बधिर किशोरियों के इस आवासीय संस्थान के कर्मचारियों ने उन किशोरियों का देह शोषण किया जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उन पर थी। यह कुकर्म पिछले कई महीनों से चल रहा था आरोप है कि बालिकागृह की वार्डन भी इस दुष्कृत्य में लिप्त थी। चर्चा यह भी है कि कुछ बाहरी लोग भी इन किशोरियों के साथ छेड़खानी करते थे। वसुन्धरा राजे ने इस घटनाक्रम को राहुल यात्रा के दौरान दबाने का आरोप लगाया तो कांग्रेसी भी अब कुछ ढूंढ़ लाए हैं, वे आरोप लगा रहे हैं कि आवाज फाउण्डेशन से एक पूर्व भाजपाई मंत्री मदन दिलावर का नजदीकी सम्बन्ध रहा है। हो सकता है इस मामले पर राजनीति और भी गर्म हो। चिन्ता दूसरी है कि इन राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों की आड़ में दुष्कर्म का उक्त मामला नेपथ्य में ना चला जाय!
दुष्कर्म का यह जो मामला उजागर हुआ है और मीडिया में जिस तरह से चर्चा में आया इसका यह मानी कतई नहीं है कि इससे पहले इस तरह की घटनाएं कभी हुई ही ना हों। मामला चाहे गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जाने वाले छात्रावासों का हो या समाज कल्याण विभाग द्वारा चलाए जाने वाले छात्रावासों का, लगभग सभी जगह सभी तरह की व्यवस्थाएं चाक-चौबंद हों ऐसी बात नहीं है। सबसे बड़ी गड़बड़ी तो नामांकन को लेकर ही होती है। अधिकांश छात्रावासों की स्थिति यही है कि जितने नामांकन बताए जाते हैं उनमें से आधे छात्र-छात्राएं भी अधिकतर में नहीं होते। क्योंकि बजट का आवंटन नामांकित छात्र-छात्राओं, बालक-बालिकाओं या किशोर-किशोरियों के आधार पर होता है। दूसरी बड़ी अनियमितता स्तरीय खान-पान की होती है। तय मानकों के स्तर की खाद्य सामग्री शायद ही कहीं काम में ली जाती हो। ऐसे छात्रावासों में यह भी देखा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने खर्च पर इन छात्र-छात्राओं की सुविधा के लिए कोई संसाधन यथा बिस्तर-रजाई, चादरें, तकिए, पंखे या कूलर उपलब्ध करवाये तो वह भी प्रबन्धकीय व्यवस्था में लगे लोग अपने-अपने घर ले जाते हैं। बदतरता का जितना जिक्र सार्वजनिक होता है उसमें कहीं ज्यादा बदतर हालात अधिकांश छात्रावासों में मिलेंगे।
अब कह सकते हैं कि दुष्कर्म की इस घटना के पीछे की मानसिकता में इस तरह की अनियमितताओं का क्या संबंध है, क्योंकि आप ज्यों ही छोटी-मोटी छूटें लेनी या देनी शुरू करते हैं वह छोटी नहीं रहती। लगातार आकांक्षाएं बेलगाम होती जाती हैं। इन छूट के लेने-देने में अपने-अपने स्वार्थ काम करने लगते हैं। इन स्वार्थो को लालच में और लालच को हवस में तबदील होते देर नहीं लगती। कई छात्रावासों से आए दिन बाकी अनियमिताओं की सूचनाओं के साथ लड़कियों के देह शोषण और लड़कों के साथ अप्राकृतिक दुष्कर्म की कानाफूसियां भी सम्बन्धितों, अड़ोसियों-पड़ोसियों को मिलती रहती हैं। लेकिन अधिकांश लोग इनलफड़ोंसे अपने को बचाए रखने के लिए कान नहीं देते। होने यह भी लगा है कि इस तरह की बातों का अधिकांश को पता होते हुए भी उन पर सक्रियता तब तक नहीं देखी जाती जब तक कोई लिखित में शिकायत ना करे। ऐसा कोईदुस्साहसकरता भी है तो मामले को दबाने की ही प्रथा चल पड़ी है। समाज जब तक इस तरह की दाबाचींथी की मानसिकता से नहीं निकलेगा तब तक इस तरह के दुष्कर्म और भ्रष्टाचरण होते रहेंगे। जब तक समाज प्रत्येक गलत काम पर प्रतिक्रिया देना शुरू नहीं करेगा, सरकारी तंत्र को तो तब तक इसी ढर्रे पर चलना है। घटना के उघड़ने पर मीडिया भी कुछ सुर्खियां देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ही लेता है!
21 मई, 2013

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