भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी बीकानेर संभाग के दौरे पर हैं। कल उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता वर्तमान सरकार से निजात पाना चाहती है। हो सकता है ऐसा हो भी लेकिन इसको प्रामाणिक करने का पैमाना सिर्फ विधानसभा चुनाव ही है जिसमें अभी लगभग पौने दो साल बाकी हैं। वैसे देखा गया है कि अपने राजस्थान की जनता अपनी सरकारों से पांच सालों में धाप जाती है। तभी अब हर चुनाव में वह सरकार बदलने लगी है। अब देखने वाली बात यह है कि इसे जनता की धाप कहेंगे या भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की अक्षमता कि वह सुशासन के द्वारा जनमानस को संतुष्ट नहीं कर पाती। चतुर्वेदी के इस बयान को इस तरह भी लिया जा सकता है कि 2008 के चुनाव में जनता तत्कालीन भाजपा सरकार से निजात पाने की मनःस्थिति में थी। तभी उसने भाजपा के खिलाफ वोट दिया। चतुर्वेदी का यह भी कहना था कि राजस्थान की जनता का द्विदलीय शासन व्यवस्था पर ही विश्वास है। इसलिए किसी तीसरे मोर्चे की यहां कोई संभावना नहीं बनती। उनके बयानों का विश्लेषण करें तो उक्त दोनों बयान विरोधाभासी लगते हैं। जैसे हर विधानसभा चुनाव में जनता यदि इस मानसिकता में आ जाती है कि वह अपनी मौजूदा शासक पार्टी से निजात पाने को उतावली हो तो माना जाना चाहिए कि जनता में किसी तीसरे विकल्प के लिए कसमसाहट है और अगर सचमुच में ऐसा है तो चतुर्वेदीजी का यह दूसरा बयान कि राजस्थान की जनता द्विदलीय शासन प्रणाली में ही भरोसा रखती है, सही नहीं कहा जा सकता।
चतुर्वेदी के तीसरे मोर्चे की संभावना को खारिज करने के बयान की रोशनी में बीकानेर शहर भाजपा को देखा जाय तो स्थिति और विचित्र बनी हुई है। शहर भाजपा अध्यक्ष शशि शर्मा हैं। यह शशि शर्मा पार्टी में उन्हीं गोपाल गहलोत के खेमे से माने जाते हैं जो राजनीति के इस समन्दर में अपना दूसरा पैर दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक महासभा रूपी तैरते उस फट्टे पर इस उम्मीद में रखे हुए हैं ताकि जैसे ही तीसरे मार्चे का जहाज तैयार दिखे, वे लपक कर उसमेें सवार हो सकें।
वैसे जिस तरह के बयान आजकल राजनीतिज्ञ देने लगे हैं उनको लोगबाग विश्वसनीय कम और अपनी डफली अपना राग ज्यादा मानने लगे हैं।
-- दीपचंद सांखला
29 फरवरी, 2012
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