Thursday, December 6, 2018

डॉ. केसी नायक की दुर्घटना की खबर काश! इस तरह होती (22 फरवरी, 2012)

बीकानेर के मेडिकल कॉलेज के कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. केसी नायक ट्रेन से उतरते समय घायल हो गये थे। दोनों पैर कुचले गये, इसलिए उन्हें टखने और घुटने के बीच से काटना पड़ा। स्थानीय अखबारों में यह सूचना थी। साथ ही यह भी बताया गया कि वे इसी 29 तारीख को सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो जायेंगे। डॉ. नायक को तड़के जयपुर उतरना था, नींद नहीं खुली तो जयपुर के ही एक उपस्टेशन, दुर्गापुरा पर जब कोच अटेंडेंट ने उन्हें उठाया तब तक गाड़ी वहां से भी रवाना हो चुकी थी।
दरअसल उपरोक्त सभी सूचनाएं ही थीं--खबर नहीं! उक्त दुर्घटना की खबर तो यह बनती है कि जिस एसी कोच में डॉ. नायक अपने अधिकृत टिकट से यात्रा कर रहे थे उस कोच के अटेंडेंट और टिकट निरीक्षक, दोनों ही अपनी ड्यूटी के प्रति लापरवाह पाये गये जिससे यह दुर्घटना घटी! उच्च श्रेणी कोच के टिकट निरीक्षक की ड्यूटी में आता है कि वह कोच अटेंडेंट को बताए कि उसे यात्री को उसके गंतव्य स्टेशन से पर्याप्त समय पूर्व सूचित करना है कि स्टेशन आना वाला है। संभवतः डॉ. नायक के कोच कंडक्टर और अटेंडेंट दोनों ने अपनी इस ड्यूटी का समय पर निर्वहन नहीं किया जिसके चलते उन्हें अपना शेष जीवन बिना पांवों के गुजारना होगा। अगर इस तरह की खबरें कारणों के साथ टीवी-अखबारों में आने लगे तो न केवल यात्री-उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति सचेत होंगे वरन् प्रत्येक सेवारत व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास भी होगा।
इस मामले में भी डॉ. केसी नायक चाहें तो रेलवे, अटेंडेंट और कोच कंडक्टर के खिलाफ मुकदमा कर सकते हैं। लेकिन इस तरह के मुकदमे हमारे देश में बहुत कम देखे गये हैं, इस कारण से भी इस तरह की गैर जिम्मेदारियों में बढ़ोतरी देखी जा रही है अन्यथा आजकल सुना, भुगता और देखा जाता है कि कई कोच कंडक्टर और अटेंडेंट कभी जुगलबंदी के साथ तो कभी शीत-युद्ध के साथ कोच की खाली शायिकाओं की आकस्मिक यात्रियों में बंदरबांट करने में लगे रहते हैं।
अभी 17 फरवरी को ही बाड़मेर-कालका गाडी नं. 14888 के बी-2 कोच का अटेंडेंट खुद सूरतगढ़ स्टेशन पर कोच पर लगा चार्ट इसलिए फाड़ रहा था ताकि उसकी खाली शायिकाओं की जानकारी आकस्मिक यात्रा करने वाले यात्रियों को ना हो और खाली सीटों का मोल-भाव वह और जुगलबंदी हो तो कोच कंडक्टर अपने ढंग से कर सकें। ऊपर के सेवारत जब भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं तभी उनके अधीनस्थ इस तरह का दुस्साहस करने को प्रेरित होते हैं।
इसलिए हमारे समानधर्मी पत्रकारों की भी जिम्मेदारी है कि वह केवल सूचनाएं नहीं खबरें भी दें!
-- दीपचंद सांखला
22 फरवरी, 2012

No comments: