Thursday, December 6, 2018

चौधराहट को चुनौती (16 फरवरी, 2012)

सोवियत संघ के विघटन के बाद लगने लगा था कि अब अमेरिका के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है। यह भी लगने लगा था कि हथियारों की अंधी-दौड़ अब समाप्त हो जाएगी। अमेरिका या उसी तरह अपने को बड़े मानने वाले देशों की ऐसी मंशा होती तो शायद यह संभव था। लेकिन इन बड़े देशों की चौधराहट की आकांक्षा और इनके हवसनाक आर्थिक हित चुनौतीहीनता में भी चुनौतियां खड़ी करते रहते हैं। वे चाहे अमेरिका द्वारा अपने सामरिक और आर्थिक-हितों को साधने के चलते अति महत्त्वाकांक्षी हुए तालिबान और इराक हों या फिर प्रतिक्रिया के रूप में ईरान। बीकानेर शहर में अच्छे-भले परिवारों के अच्छी-भली पढ़ाई करने वाले किशोरों-युवकों द्वारा अपनी हवसनाक आर्थिक जरूरतों की पूर्ति हेतु नकबजनी और छीना-झपटी के पीछे की मानसिकता और इन बड़े राष्ट्रों की मानसिकता में अंतर कमोबेश का ही है।
-- दीपचंद सांखला
16 फरवरी, 2012

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