Thursday, December 6, 2018

वेलेंटाइन डे (14फरवरी, 2012)

अपने यहां प्रेम का इजहार आंखों-आंखों में या दबे-छिपे ही होता रहा है। दबे-छिपे का इजहार तो अकसर अपने गंतव्य को हासिल कर लेता है लेकिन आंखों-आंखों में होने वाले इजहार के बीच की दूरी को पाटना अधिकांशतः मुश्किल ही रहता आया है।
आंखों-आंखों में या दबे-छिपे होने वाले इजहार को लगभग चुनौती के रूप में प्रेरित करने वाला जो एक पोस्टर तीसेक साल पहले भारतीय बाजार में आया वह पश्चिम से ही था। इस पोस्टर में पांच-सात साल की एक सजी-धजी लड़की हाथों में फूल लिए अपनी ही उम्र के एक लड़के के सामने खड़ी है। इस पोस्टर में प्रोप्रटी के नाम पर अन्य कुछ नहीं था। बस अंग्रेजी में एक स्लोगन था ‘इफ यू लव समबॉडी, शो इट’। चुनौती के रूप में इसलिए कि यह माना जाता है कि इजहार स्त्रियों के लिए वर्जित है। भारतीय संस्कृति पर यहां के बाजार के माध्यम से वेलेन्टाइन-संस्कृति की सम्भवतः वह पहली दस्तक थी। पश्चिम में वेलेन्टाइन डे प्यार के इजहार का दिन माना जाता है। हमारे यहां इस तरह के इजहार का कोई निश्चित दिन मुकर्रर नहीं रहा है, सम्भव भी नहीं। बेताबियां 364 दिन इंतजार नहीं करतीं वह भी तब जब यह तय ही ना हो कि उस तय दिन भी इजहार का अवसर मिल पायेगा? वैसे भी हमारे यहां यह इजहार किसी दिन विशेष का नहीं अवसर का मुहताज रहा है।
यह तो जब अब वैश्वीकरण के नाम पर पूरी दुनिया को सामने रखी तश्तरी में देखते रहने की आकांक्षा सभी संस्कृतियों को गड्ड-मड्ड और बहुत कुछ इधर-उधर कर रही है। तकनीक के गहरे हस्तक्षेप से यह नई बनती संस्कृति किसी प्रतीकात्मक विरोध से रुकने वाली नहीं है। यह परंपराएं और संस्कृतियां समय के साथ जड़ होकर नहीं कदमताल होकर चलती है और इस कदमताल की लय हमें भंग होती सी लग सकती है। लेकिन समय उसको हमेशा साध लेता है। समय के शाश्वत संवाहक गहरे मानवीय मूल्यों को सहेज कर रखेंगे तो समय के साथ-साथ परम्परायें और संस्कृति अपनी उसी काया में संवरती होती चली जायेंगी।
-- दीपचंद सांखला
14 फरवरी, 2012

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