Thursday, December 6, 2018

सरकारी दफ्तरों पर कुछ इस तरह भी (13 फरवरी, 2012)

राजस्थान शिक्षा विभागीय मंत्रालयिक कर्मचारी संघ के हवाले से कल एक खबर थी जिसमें संघ ने मांग की है कि सेवानिवृत्ति की आयु अट्ठावन वर्ष की जाय ताकि सेवानिवृत्ति की वजह से खाली होने वाले पदों पर शिक्षित बेरोजगारों की नियुक्ति हो सके उक्त मांग की वजह यही बतलायी है उन्होंने। पता नहीं इस सकारात्मक खबर पर कितनों का ध्यान गया होगा और जिनका ध्यान गया उनमें से कितनों ने इस पर विचार किया होगा!
कर्मचारी-अधिकारी संघों के आंदोलनों, अधिवेशनों और मांगपत्रों पर खबरें अकसर छपती रही हैं। इस तरह की सभी खबरों का केंद्रीय प्रयोजन तनख्वाहें और सुविधाएं बढ़ाना ही होता है। इन संघों के संदर्भ से शायद ही कभी इस प्रकार की खबर आई हो जिसमें इन्होंने अपने सदस्यों को कार्यनिष्ठा या कर्तव्यपरायणता की हिदायत तो क्या कोई आग्रह भी किया हो।
स्थानीय अखबारों में इन संघों से संबंधित अधिकांश खबरें शिक्षा से संबंधित कर्मचारी-अधिकारी संघों की होती है। वहीं अपने इस देश की सार्वजनिक क्षेत्र की शिक्षा व्यवस्था की दुर्गति किसी से छिपी नहीं है। कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो इस विभाग के कर्मचारियों-अधिकारियों के बच्चे तक सरकारी स्कूलों में पढ़ने नहीं जाते हैं। छठे वेतन आयोग के लागू होने के बाद से मिल रही भारी तनख्वाह के बावजूद अधिकांश स्कूलों में नियमित कक्षाएं नहीं लगती हैं, ग्रामीण स्कूलों का हाल तो और भी बुरा है, शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारी अपनी-अपनी बारी के अनुसार सिर्फ हाजिरी लगाने भर को पहुंचते हैं। इसके प्रभावक और इससे प्रभावित, सभी को इसका पूरा भान है। बावजूद इसके स्थितियां लगातार बदतर होती जा रही हैं। कमोबेश सभी सार्वजनिक दफ्तरों की यही स्थिति है। इसके लिए केवल कर्मचारियों और अधिकारियों को दोषी मानना उचित नहीं होगा। राजनेता और आम जनता भी इसमें बराबर की दोषी है। नेता अपने तुच्छ स्वार्थों के चलते ऐसा होने देते और करवाते हैं और आम जनता इसे अपनी नियति मान कर या झमेले में पड़ने से बचने की जुगत में या इस धारणा के चलते कि सबकुछ सरकारी अपना नहीं है, इसलिए हमारी कोई जिम्मेदारी भी नहीं, ऐसी घोर भ्रमित मानसिकता की बदौलत यह सब होने दिया जा रहा है।
व्यापक सामाजिक हित, कर्तव्यपरायणता और कार्यनिष्ठा जैसे विषयों पर यह सभी कर्मचारी-अधिकारी संघ--और यही क्यों यह व्यापार और उद्योग संघ भी सक्रियता से और सकारात्मकता से विचार करना शुरू करे, अब महती जरूरत है इसकी।
-- दीपचंद सांखला
13 फरवरी, 2012

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