Wednesday, December 26, 2018

यदा यदा ही धर्मस्य.... (2 मार्च, 2012)

गांधीजी ने कहा है कि देश गांवों में बसता है। जबकि सामान्य ज्ञान यही कहता है कि कोई देश गांव, कस्बों, शहरों और समाज, संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाज आदि-आदि से बनता है। गांधीजी की नकल से उलटबांसी हमारे ‘सभ्य समाज’ में भी चलती है, वे कहते सुने गये हैं कि नगरों और महानगरों की झुग्गियों में नरक का वास होता है। हिंदू धर्म के संदर्भ से सुना यही है कि मृत्यु के बाद परिगमन के लिए तीन स्थान ही मुकर्रर हैं--स्वर्ग नरक और मोक्ष। कहा यह भी जाता है कि इन गंतव्यों के चयन का हक जाने वाले को नहीं होता। वैसे नरक में जाने के उपायों के बारे में जानना हो तो गरुड पुराण का पाठ सुन लें। इसे सुनना कोई बड़ा मुश्किल काम नहीं है। अपना शहर इसके लिए पर्याप्त बड़ा है, शहर में बदल-बदलकर एकाधिक जगह इसके पाठ रोजाना होते ही हैं। कहा यह भी जाता है कि अनाप-शनाप धन की प्राप्ति, बिना खोटे कर्म किये नहीं होती है और अगर खोटे करोगे तो यह जीवन धन के संग और परलोक नरक-संग गुजरेगा। यह दूसरी वाली बात हम नहीं गरुड पुराण कहता है।
अब आज एक खबर है कि जब जयपुर में एक धर्मगुरु के चेलों के पास नकद एक करोड़ रुपये मिले, इस पर आयकर विभाग ने जब उन धर्मगुरु के ट्रस्टों को टटोला तो एक अद्भुत बात पता चली कि मुम्बई की एक झुग्गी में रहने वाले भक्त ने उस ट्रस्ट को दान में बीस करोड़ रुपये दिये थे, इस घटना से ऊपर कही बातें क्या साबित नहीं होती है? जैसे अनाप-शनाप धन की प्राप्ति के लिए खोटे करने होते हैं  और खोटे करोगे तो नरक मिलेगा। हालांकि इन सब बातों का मिश्रण आपको ऊलजलूल जरूर लग सकता है लेकिन आप सुलझाने लगोगे तो इनके सिरे मिलने की संभावनाएं जरूर हैं।
लीला पुरुष श्रीकृष्ण को जब वीर अर्जुन युद्ध से पलायन की मानसिकता में दिखे तो उन्होंने उसे उस मानसिकता से निकालने को जो कुछ कहा है, उस कहे से श्रीमद्भगवद् गीता नाम से हमारा एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ बन गया। इसी ग्रंथ के चौथे अध्याय का सातवां श्लोक है :
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अपने देश के माध्यम से अर्जुन को ही सम्बोधित इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ। अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं!
गीता के अठारह अध्यायों के इन सात सौ श्लोकों में से उक्त एक श्लोक की महिमा इन वर्षों में सर्वत्र देखने को मिलती है। वह चाहे टीवी के धार्मिक, सामाचारिक और सामाजिक चैनल हों या गांव से लेकर नगरों-महानगरों तक के धार्मिक स्थल। हर कहीं ‘रचित रूप में सद्गुरु’ हमें मिल जायेंगे। वैसे श्रीकृष्ण यह भी कहते हैं कि उनका वास कण-कण में है।
अब उक्त श्लोक की बात करें तो क्या अपने देश में सचमुच अधर्म की वृद्धि हो गई है और अगर हो गई है तो इन सब सदगुरुओं में से वो कौन से हैं जिन्हें श्रीकृष्ण ने अपने रूप में रचा है!
-- दीपचंद सांखला
2 मार्च, 2012

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