Tuesday, July 7, 2015

मन्दिर स्थानान्तरण के विरोध के क्या मानी

प्रधानमंत्री मोदी देश को सिंगापुर बनाने पर तुले हैं, सौ स्मार्ट और पांच सौ आदर्श शहरों, बुलेट ट्रेन और हाइस्पीड रेलगाडिय़ों के दिवास्वप्न देशवासियों को दिखा रहे हैं। दूसरी ओर उनकी मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दड़बे से निकलने को ही तैयार नहीं है। भाजपा माने या माने उनका दस जनपथ नागपुर में है। कांग्रेस के लिए धोक का स्थान दस जनपथ केवल एक ही था और है पर भाजपा के नागपुर की मुख्य पीठ के अलावा कई सारे शक्तिपीठ और बाद इसके नगर-कस्बों में भी भोमिये थरपे हुए हैं। संघ की जयपुर शक्तिपीठ ने हाल ही में जयपुर के विधायकों को तलब किया और मैट्रो टे्रन प्रोजेक्ट और सड़क सुधार के लिए स्थानान्तरित किए जा रहे मन्दिरों के लिए हड़काया। यानी मुख्यमंत्री वसुंधरा पर अपना वश चलाने का साहस वे कर नहीं पा रहे हैं। कांग्रेसियों की जो स्थिति दस जनपथ में होती है उससे कमतरी लिए भाजपाइयों के ये शक्तिपीठ नहीं होते। नागपुर पीठ तक पेशी हो इस हैसियत में गिुने-चुने भाजपाई ही होंगे।
गांवों के विकास की बात करने वाले गांधी की मंशा के विपरीत कांग्रेस ने देश विकास का शहरी मॉडल चुना। बीच-बीच में अन्य पार्टियों की सरकारों ने विकास के इसी शहरी मॉडल का पोषण किया। अब जो प्रधानमंत्री आए हैं उन्हें तो भ्रम ही यही है कि इसी मॉडल से देश पुन: सोने का शुतुरमुर्ग हो जायेगा।
तरतीब-बेतरतीब में पसरते शहरों और शहरियों के पास रहे बेहिसाब धन ने आवागमन के साधनों की जरूरत बढ़ा दी। इस जरूरत को पूरा करने और उद्योगों को बढ़ावा देने के मकसद से ऋण दे-देकर शहरों में दुपहिया-चौपहिया वाहनों की बाढ़ ला दी गई। बाढ़ आई तो लगा इसे व्यवस्थित और नियंत्रित कैसे किया जाए। नियंत्रण करने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की जरूरत समझी गई। आदर्श और विलासी पब्लिक ट्रांसपोर्ट मैट्रो टे्रनें मानी जाती हैं। वहीं यातायात को व्यवस्थित करने के लिए इन सड़कों को चौड़ा करना, वैकल्पिक मार्ग बनाना भी जरूरी है।
उधर दूसरी ओर श्रद्धालुओं को 'सबे भूमि गोपाल की' की तर्ज पर हमेशा से ही लगता रहा है कि जहां मन हुआ मन्दिर थरप दो। ऐसा सदियों से चलता रहा है और उच्चतम न्यायालय के उस आदेश के बाद आज भी जारी है जिसमें सड़कों और सरकारी भूमि पर अवैध तौर पर बनने वाले इन आस्था स्थलों के लिए तत्समय के कलक्टर या जिला मजिस्ट्रेट को दोषी ठहराया जाएगा। जो मीडिया मन्दिर स्थानान्तरण को मन्दिर तोडऩा लिखता और कहता है उसे लोकतांत्रिक भाषा संस्कार सीखने की जरूरत है।
जयपुर की यातायात जरूरतों को पूरा करने के लिए मैट्रो प्रोजेक्ट चल रहा है वहीं सड़कों को भी व्यवस्थित किया जा रहा है। इसमें सबसे बड़ी बाधा किनारे के और बीच सड़क पर बने आस्थास्थल हैं। मन्दिरों को स्थानान्तरित किए जाने के शास्त्रोक्त प्रावधान हैं। जयपुर में उसी के तहत यह काम हो रहा है। लेकिन आरएसएस को खास भाव देने वाली भाजपाई मुख्यमंत्री जैसे ही ललित मोदी कांड के घेरे में आई, संघनिष्ठों और वसुंधरा से असंतुष्टों को शह मिल गई और लगे पगपीटे करने।
जो भी होगा, भुगतना शहर को ही होगा लेकिन ये आस्थावान तब कहां चले जाते हैं जब जहां मरजी आए देवताओं को थरप दिया जाता है। कोई आस्थावान है तो अंटी ढीली करे, पहले से ठन-ठन है तो चंदा करे, कहीं जगह खरीदे और बनाएं अपना आस्थास्थल। यह क्या कि खुद तो पट्टे के घर में निवास करते हैं और अपने देवताओं को कब्जे में थरपते हैं।
इसी से जाहिर है कि आपकी आस्था की नीयत कैसी है। संघ हो या भाजपाई या फिर कांग्रेसी, इन सबको देश से मतलब है और अवाम से। इन्हें केवल संकीर्णतावश अपने स्वार्थों का पोषण करना होता है और भ्रमित अवाम इनकी कैरियर बन जाती है। अवाम ऐसों को समझें और खुद को कहार की गत में जाने से रोकें।

7 जुलाई, 2015

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