Thursday, July 2, 2015

नगर निगम में कोई महापौर कुछ कर भी पाएंगे

बीकानेर नगर निगम के वर्तमान पार्षद मण्डल की चौथी बैठक कल पूर्ववर्ती बैठकों से काफी लम्बी चली। कहने को कई प्रस्ताव भी पारित हुए, हंगामा हुआ, आपसी नोंक-झोंक हुई। इस बीच छत से चूना गिरा और बारिश के चलते दीवारों में भारी सीलन देखी गई। पुराने तरह का चौड़ी दीवारों का निर्माण है अन्यथा भवन के नाकारा होते देर नहीं लगती। कल की बैठक की दो विशेष बातें और भी गिना सकते हैंबीकानेर (पश्चिम) से विधायक होने के नाते डॉ. गोपालकृष्ण जोशी भी कुछ देर बैठक में शामिल हुए और दूसरी यह कि भारतीय प्रशासनिक सेवा का कोई अधिकारी पहली बार आयुक्त के रूप में हैसियतशुदा शामिल हुए। कहते हैं अनिच्छा से आए बने एलएल मीना यहां रहना नहीं चाहते थे, लेकिन जब लगा कि 'ललितलीक्स' के चलते शासन जब खुद ही डाफाचूक है तो कम-से-कम पदानुक्रम के हिसाब से ही पदनाम क्यों ना करवा लिया जाए। बहु-आयुक्तों वाले इस निगम के अधिकारियों के पद इस तरह तय किए गये हैं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी का रुतबा अव्वल रहे। सो आइएएस के पद को मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं आयुक्त से अब केवल आयुक्त और शेष आयुक्तों को उनकी जिम्मेदारियों की पूंछ के साथ अब उपायुक्त कहा जायेगा। ये उपायुक्त राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी यानी (आरएएस) भी हो सकते हैं या विभागीय सेवा से पदोन्नत होकर आया कोई अधिकारी भी।
नारायण चौपड़ा जब पार्टी की ओर से महापौर के तौर पर मनोनीत किए गये तब उनसे उम्मीद की गई थी कि वे अपने पूर्ववर्ती महापौर भवानीशंकर शर्मा को अपने से अच्छा नहीं कहलाएंगे। लेकिन लुंज-पुंज व्यक्तित्व के चलते चौपड़ा अपने सात महीनों के कार्यकाल में अभी तक खास उम्मीदें नहीं जगा पाएं हैं या कह सकते हैंगाड़ी चीलों पर ही चाल रही है। केन्द्र में प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी खुद द्वारा जगाई उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं तो प्रदेश में वसुंधरा राजे शुरू से राज को कोप भवन में बैठी सी हांक रही है और स्थानीय निकाय में महापौर कुछ खास करने का आत्मविश्वास ही नहीं दिखा पा रहे।
बीकानेर नगर निगम की बात करें तो जिन सरकारी और स्वायत्तशाषी महकमों से आमजन का सीधा और ज्यादा वास्ता पड़ता है, उनमें स्थानीय प्रशासन के अलावा पुलिस, नगर विकास न्यास और नगर निगम हैं। इन  तीनों को आमजन में इनकी खराब साख के आधार पर क्रम दें तो सबसे खराब साख नगर निगम की बताई जाती है। फिर दूसरे नम्बर पर नगर विकास न्यास और इन तीनों के बीच पुलिस महकमें की साख फिर भी ठीक मानी जाती है।
ऐसी साख के चलते निगम के प्रति आश्वस्ति बहाली का काम वही महापौर कर सकता है जो दृढ़इच्छा शक्ति वाला हो, उसे सरकार का पूरा सहयोग मिले और जो अपने शहर से बेहद लगाव रखता हो। बहुत ही निराशा से कहना पड़ रहा है कि अब तक ऐसा कोई व्यक्तित्व इस स्थानीय निकाय का अध्यक्ष बना और ही महापौर हुआ। ऐसी उम्मीदें वर्तमान महापौर नारायण चौपड़ा से करना उनको कुछ ज्यादा ही आंकना होगा।
निगम के अधिकांश छोटे-बड़े अधिकारी और कर्मचारी सभी आत्मविश्वास से दफ्तरी इस तरह करते हैं कि सर्वे-सर्वा वही हैं। चुनकर आने वाले पार्षदों में अधिकांश अपने आर्थिक स्वार्थों की भूख के साथ आते हैं, ऐसे में, उनकी दिखाऊ इज्जत निगम का वही अधिकारी-कर्मचारी करता है जिसकी सेटिंग उनसे हो लेती है। बाकी तो अवाम में से जिसका भी निगम से काम पड़ जाए वे या तो दलालों की भूमिका निभाते वकीलों के मार्फत काम करवा लें तब तो ठीक अन्यथा उसे दादी-नानी तक याद आए तो कहें। ऐसे माहौल में यदि महापौर की इस सन्देश के साथ सक्रियता हो कि उसके व्यक्तिगत हित जीरो हैं, इसके बाद वह अपने पार्षदों को साधे तब ही जाकर निगम के अधिकारी-कर्मचारी महापौर के अनुकूल होने की मंशा में सकते हैं अन्यथा निगम कार्मिक तो अपने को श्मशान की वह डोकरी ही मानते हैं जो स्थाई है। ठीक उस डोकरी के जवाब की ही तरह कि ' श्मशान आया गया रा है' की तर्ज पर भूंडाण सब चुने हुए प्रतिनिधियों के माथे नाखते हैं, फिर वह चाहे पार्षद हो या महापौर। इन्हें ये भी पता है कि अगली बार इनमें से चौथाई भी नहीं लौटने। ऐसे में महापौर वही कुछ कर पाएगा जो इन सब को साधने की कूवत रखता हो। इन चुने पार्षदों में कोई है भी ऐसा!

2 जुलाई, 2015

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