Saturday, July 18, 2015

राजनीति में बढ़ता अनर्गल प्रलाप

व्यक्तिगत छिछालेदर में गर्त की कोई गहराई नहीं होती। भारत की वर्तमान व्यावहारिक राजनीति इसी बात की पुष्टि करती है। पिछली सदी के सातवें-आठवें दशक से बात शुरू करें तो इन्दिरा गांधी को नापंसद करने वाले राजनीति-निष्ठावानों ने उनके लिए अश्लील और अनर्गल कहना शुरू किया। ऐसा सालों चलता रहा लेकिन औपचारिक तौर पर या कहें प्रकाशित कर कहने की हिम्मत वे लोग नहीं जुटा पाते थे, यद्यपि गुपचुप पेम्फलेट तब भी निकाले गए। पिछले लगभग बीस वर्षों से इस तरह की प्रवृत्तियां दुस्साहसिक हो गई हैं। विशेषकर पिछले दो-तीन आम चुनावों में इस तरह की छीछालेदर की विकरालता देखने को मिली केवल बहुरंगी मुद्रण में बल्कि सोशल साइट्स पर लिखी गई और फॉटोशॉप कर लगाई गई घिनौनी पोस्टों की जैसे बाढ़ गई। देखा गया है कि इस तरह की अधिकांश करतूतों की कोई प्रामाणिकता नहीं होती।
पिछले आम चुनावों से पहले तक ऐसी लप्पा-लप्पी अनधिकृत तौर पर चलती रही। पिछले आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव अभियान को आक्रामकता से चलाया और जुमलों की बरसात शुरू की जो प्रभावी भी रही। चूंकि यह सब पार्टी सुप्रीमो की तरफ से हो रहा था इसलिए माहौल दूषित होने लगा। उनके अनुसरण में ऐसे वे जो अब तक दबे-छुपे ऐसा करते रहे थे, चौफालिया होने लगे। प्रतिक्रिया में उनके विरोधी भी 'मैदान' में उतरने से नहीं चूके।
नरेन्द्र मोदी ने चुनाव अभियान में अन्य कई जुमलों के साथ पाकिस्तान और चीन से निबटने के लिए छप्पन इंच का सीना होने का जुमला फेंका था, जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता भी सौंप दी। सत्ता हासिल करने के बाद उन्हें एहसास हो गया होगा कि देश को चलाना गुजरात को हांकने से ज्यादा दुश्कर है... छप्पन इंच के सीने की बात मोदी ने संभवत: तब के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह पर तंज में कही थी। मोदी राज के पिछले डेढ वर्ष में पड़ोसी देशों की सीमाओं पर हो रही हरकतें बता रही हैं कि 'डेढ़ पसलीÓ के मनमोहनसिंह के समय से तथाकथित छप्पन इंच सीने वालों के समय में दुश्वारियां बढ़ी हैं।
अब कल ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी के छप्पन इंचीय जुमले को याद कर चुनौती दी है। उधर मोदी जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गिरधारीलाल डोगरा की जन्मशती पर डोगरा के दामाद और वर्तमान में वित्तमंत्री अरुणी जेटली की तारीफ करते समय बताने लगे कि कैसे-कैसे दामाद होते हैं। उनका इशारा सोनिया के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की तरफ था। उनके हिसाब से जमीन के सौदों में बड़े आरोपी रॉबर्ट का अब तब छुट्टा घूमना उनके शासन की असफलता को बयां नहीं करतावह भी तब जब राजस्थान और हरियाणा में रॉबर्ट ने गड़बडिय़ां कीं हों और दोनों राज्यों के साथ केन्द्र में भी भाजपा की सरकार हो? या ये राजनीतिक दल आरोप केवल जनता को भरमाने के लिए ही एक-दूसरे पर लगाते हैं!
यह बात अलग की तारीफे-काबिल दामादों का जिक्र करते हुए मोदी ने नेहरू के दामाद फिरोज गांधी का जिक्र नहीं किया। फिरोज गांधी कांग्रेसी सांसद होते हुए संसद में नेहरू सरकार की नीतियों और आर्थिक अनियमितताओं को लेकर जब तब परेशानी में डालने से नहीं चूकते थे। मोदी ने कल जब दामाद महिमा पर अपना बखान शुरू किया तो सोशल साइट्स पर कइयों ने उनकी पत्नी जसोदा बेन का फोटो लगा जसोदा बेन के पिता के दामाद को भुंडाया।
कहने का भाव इतना ही है कि यह सब करतूतें मूल्यों का हनन हैं जिनसे बचना चाहिए। यदि कोई अपराधी है, फिर वह किसी का भी दामाद, बेटा, पति या बहू, बेटी, पत्नी हो उसे बिना पक्षपात और द्वेष के न्यायिक प्रक्रिया के तहत शीघ्र लाया जाना चाहिए। दूसरी बात ये कि जो नेता शीर्ष पर बैठे हैं कम-से-कम उन्हें तो ऐसे अनर्गल जबानी जमा-खर्च से बचना चाहिए फिर वह चाहे नरेन्द्र मोदी हों या राहुल गांधी।

18 जुलाई, 2015

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