चुनावी साल की गहमागहमियां अजब गजब होती हैं। सूबे के मुखिया लगभग एक साल से इस रंग में दिखाई दे रहे हैं तो अपने न्यास अध्यक्ष हाजी मकसूद की नींद अब उघड़ी लगती है। वैसे उन्होंने पिछले वर्ष भी कई घोषणाएं की थीं उनमें से कितनी सिरे पहुंची? मंगलवार को की गई घोषणाओं के साथ पिछला तलपट भी बता देते तो ज्यादा अच्छा होता। खैर कुछ ना होने से तो कुछ होना ही ठीक। पूरी होगी तो ठीक, ना होगी तो अभी कौन-सी हुई है। साल के अन्त में चुनाव होने हैं, हो सकता है पार्टी न्यास अध्यक्ष को ही बीकानेर (पूर्व) से मैदान में उतार दे। वैसे मैदान बीकानेर पूर्व का आसान नहीं है। बीकानेर पश्चिम का मैदान हाजी मकसूद के लिए आसान हो सकता है, और भी आसान तब जब कल्ला बंधु रणनीतिक ईमानदारी से उनके साथ हों। तौबा-तौबा यह क्या राय देने लगे, बीकानेर पश्चिम को इस नजर से देखना ईमान से डोलना नहीं हो जायेगा! ये अखबार वाले ‘रायबहादुरी’
में कुछ ज्यादा ही आगा-पीछा सोचने-उगलने लगते हैं, बिना यह सोचे कि इससे किसी का ‘आगा-पीछा’ भी हो सकता है। चलो तौबा कर लेते हैं।
पिछले वर्ष की और इस वर्ष की घोषणाओं को अमलीजामा पहनाए बिना विधानसभा चुनावों में पूर्व-पश्चिम दोनों के कांग्रेसी उम्मीदवारों को लाभ होने वाला नहीं है, फिर वह चाहे कल्ला हो या कोई और। 30 जून तक न्यास शहरों में लगा है। उसके पूरे लवाजमें को फुरसत ही नहीं है। बचा जुलाई-अगस्त माह क्योंकि सितम्बर में कभी भी आचार-संहिता लागू हो जानी है। काम कम नहीं है, अभी तो ये सब घोषणाएं ही हैं, योजनाएं बननी हैं, तकमीना बनना है, टेण्डर नोटिस निकलने हैं, वर्क आर्डर जारी होने हैं और मौके पर कुदाल भी लगनी है। इतना कुछ होने पर मतदाता के पिघलने की सम्भावनाएं बनती है। ऊपर से ‘मौका विरोध’ अलग से बड़ी बाधाएं होंगी। मकसूद जी ये सब मुख्यमंत्री की तरह जुझार हुए बिना नहीं होने वाला है!
उधर दूसरी ओर अपने महापौर भानी भाई मुलाकातों में अपने किए की विरुदावली कहते ही हैं पर यह सब किया धरा वोटों में परिवर्तित तब तक नहीं होना है जब तक ‘होने का भान’ मतदाताओं को ना हो। कहा भी जाता है कि कामों के होने से भी उनके होने का ढिंढोरा ज्यादा कारगर होता है। प्रमाण ढूंढ़ना है तो 2008 के चुनावों से पहले के कामों के ढिढोरे की प्रतिध्वनि सुन लें और उसका हुआ असर आपने देखा ही है। डॉक्टरद्वय कल्ला और तनवीर ने तो भुगता भी है।
काम तो शहर में इन वर्षों में 2008 के कामों से ज्यादा हुए हैं ऐसा विनायक एक से अधिक बार पहले भी बता चुका है। लेकिन कांग्रेस राज में हुए कार्यों के होने की फिजां नहीं बन पा रही है। फिजां बनाने की चतुराई कांग्रेसी नहीं आजमाएंगे तो अगले चुनावों में कम से कम शहर की दोनों सीटों पर उन्हें कुछ हासिल होना-जाना नहीं है। चुनावों में गांवों की हवा का असर शहरों में भले ही ना हो शहरी हवा का असर गांवों में भी होता है, यह किसी से छुपा नहीं है। हाजी मकसूद और भानी भाई दोनों को समझ लेना चाहिए कि अब समय ना घोषणाओं का है और ना ही किए की विरुदावली गाने का और ना ही अभिनन्दन करवाने का। शहर में सरकार के कांग्रेसी नुमाइंदे आप ही हैं; ना बीडी कल्ला हैं और ना ही तनवीर मालावत।
6 जून,
2013
No comments:
Post a Comment