Saturday, June 15, 2013

पीबीएम पर गोधे के बहाने ‘जुगनू पुराण’

कल जब यह खबर आई कि पीबीएम अस्पताल की ऊपरी मंजिल में गोधा चढ़ गया तो खयाल पीबीएम अस्पताल का कम और गोधों से जुड़ी बातों का ज्यादा आया। लोक में एक कैबत हैठठेरे (बर्तन बनाने वाले) की बिल्लीठक-ठक से ना तो डरती है और ना ही चौकन्ना होती है। इसी प्रकार पीबीएम में होने वाली घटनाओं को लेकर बीकानेरी लगभगठठेरे की बिल्लीहो गये हैं। हमारे हमपेशा (पत्रकार) लोगों को भी ऐसा लगेगा तो वे भी पीबीएम की दुर्दशा पर ना खबर बनाएंगे और ना ही सम्पादकीय लिखेंगे।
अभी पिछले दिनों ही शहर में आवारा पशुओं और विशेष रूप से गोधों के खिलाफ एक अभियान चलाया गया था। ना केवल प्रशासन बल्कि शहर के मीडिया के साथ कुछ मौजिजों को भी सक्रिय देखा गया। तब लगने लगा था कि शहर जल्द ही इन आवारा पशुओं से मुक्त हो जाएगा। शहर से इन दिनों गुजरा जाए तो लगेगा यही कि यह अभियान भी अन्य सरकारी अभियानों की कतार में जा लगा है। मीडिया वालों ने भी अपने को दूसरी कथाओं-घटनाओं में व्यस्त कर लिया और रहेमौजिजतो उन्हें तो वैसा और उतना ही करना होता है जितना मीडिया वाले निर्देश करते हैं। मीडिया वालों को कोई नई स्टोरी मिल जाए तो इन मौजिजों को नए किरदार में ढाल देने में देर नहीं लगाते औरमौजिजवैसा ढलने में!
बात तो हमेंजुगनूकी करनी थी लेकिन बरास्तापीबीएम के गोधेपहुंच गये मीडिया से होते हुए मौजिजों तक। कोई तीस-पैंतीस साल पहले की बात है तब शहर के कोटगेट क्षेत्र में गोधे तो कई थे, सबके कोई ना कोई नाम भी दिए हुए थे, पर स्मृति में अमर जो हुआ उस गोधे का नामजुगनूथा। अब पता नहीं यह नाम उसका रात में चमकने वाले जीव जुगनू पर रखा गया या 1973 में धर्मेन्द्र-हेमामालिनी अभिनीत प्रमोद चक्रवर्ती की फिल्मजुगनूपर। इस फिल्म में धर्मेन्द्र को अत्यंत बुद्धिमान धूर्त के रूप में प्रस्तुत किया गया था। हो सकता है उस गोधे से पीड़ितों ने इसी (फिल्मी किरदार) से प्रेरित होकर जुगनू नाम रख दिया हो।
तब फलों-सब्जियों के गाड़े कोटगेट क्षेत्र की ओर आने-जाने वाली सभी सड़कों के दोनों और बहुतायत में लगते थे! जुगनू की आदत थी कि दूर खड़े किसी एक गाड़े पर रखी फल या सब्जी की ढेरी को टारगेट करता और उसे हासिल करने को कूच कर देता। फिर चाहे कोई उस पर लट्ठ बरसाए या पानी, जुगनू बिना अपना लक्ष्य हासिल किए नहीं मानता। गाड़ेवालों को उससे बड़ी शिकायत यह थी कि उसका एक कवा (ग्रास) पांच किलो से कम का नहीं होता था। रोजमर्रा के और दिन में एक से अधिक बार के इन हमलों से बचने की गाड़ेवालों ने तजबीज भी निकाल ली। जिसे भी लगता कि जुगनू कूच कर गया है, वह चिल्लाने लगता किजुगनू रह्यो है’, ‘जुगनू रह्यो है जरूरी नहीं यह हुंकार कोई गाड़ेवाला ही दे, गाड़ेवालों के शुभचिन्तक दुकानदार भी चेता देते थे। फिर क्या था लक्ष्य की सीध में आए सभी गाड़ेवाले ग्राहकों को छोड़, गाड़ा लेकर दूसरी दिशा में दौड़ने लगते। जुगनू जब तक जवान था तब तक इस स्थिति में भी लक्ष्य हासिल करने से नहीं चूकता। लेकिन जैसे-जैसे वह बूढा होने लगा, दौड़ने की ताकत खत्म हो गई और वह निढाल पड़ा रहने लगा। लेकिन देखा गया यह भी कि तब भी कुछ गाड़ेवालेप्रीतनिभाते थे, निढाल बैठे जुगनू को अपने खराब फल और सब्जियां परोस देते।
पीबीएम की दुर्दशा और फिस्स हुएआवारा पशु विरोधी अभियानके बहाने हमेंजुगनू पुराणबांचना था सो बांच दिया।

15 जून, 2013

3 comments:

maitreyee said...

बिल्कुल सही

maitreyee said...

बिल्कुल सही

Www.nadeemahmed.blogspot.com said...

bahut sahi likha h sir aapne