Wednesday, June 12, 2013

आडवाणी और भाजपा

पचास-साठ की उम्र में हुई मौत पर होने वाली बैठक में आए किसी बुजुर्ग से यह कहते अकसर सुना जा सकता है किगये रा कारज करो, है जकां रा जतन करोयानी जो चला गया है उसकी मृत्यूपरांत की औपचारिकताएं पूरी करो और जो पारिवारिक जिम्मेदारियां वो छोड़ गया है उन्हें पूरा करने का प्रयास करो।
परसों जब लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी पदों से इस्तीफा दिया तभी से उक्त जुमला भाजपाई शीर्ष से महसूस किया जा रहा था। राजनाथसिंह को जब से पार्टी की कमान दुबारा सौंपी गई है तभी से भाजपा शीर्ष का एक धड़ा इसी मानस में था कि आडवाणी को कोई ज्यादा भाव नहीं देना है। आडवाणी को भी इसका अहसास था। इसीलिए गोवा मीटिंग के समय उनके पेट में बळ पड़ने लगे थे। लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि उन्हें दूध की मक्खी ही समझ लिया जाएगा। समाज के सभी हिस्सों में बढ़े मीडियाई दखल का ही परिणाम है कि इस चुनावी वर्ष में पार्टी की दूसरी पीढ़ी पर बड़े-बुजुर्गों की बेअदबी के आरोप में बचने के लिए आडवाणी के इस्तीफे पर केवल दिखावे भर की ढका-ढुकी हुई है। आडवाणी के इस्तीफे को ज्यादा भाव ना देने का सन्देश चौबीस घंटे के भीतर ही पूर्व कार्यक्रमानुसार राजनाथसिंह ने बांसवाड़ा जाकर और अरुण जेटली ने विदेश यात्रा में जुट कर दे दिया था। इसी से शुरू में उल्लेखितहै जकां रा जतन करोकी पुष्टि होती है।
मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के कई घरों मेंअनुत्पादकबड़े-बुजुर्गों की आडवाणी जैसी गत देखने को मिल ही जाती है। आडवाणी ने जो भी अपनी हैसियत बनाई वह पार्टी के प्रति उनके पूर्ण समर्पण, निष्ठा और कर्मठता से ही बनी। 1980 के बाद या भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद से ही पार्टी में इस तरह के लिहाजों पर अवसरवादिता हावी होती चली गई। जबकि पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में आडवाणी का योगदान कम उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता।
भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुकाबले की परिकल्पना में मुख्यतः यही है कि जिससे भिड़ना है, पहले उससे इक्कीस होवें। शायद इसी के मद्देनजर संघ की राजनीतिक इकाई भाजपा अच्छे-बुरे प्रत्येक मामले में मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से इक्कीस होना चाहती है। इसके परिणाम के रूप में बंगारू लक्ष्मण, दिलीपसिंह जुदेव, कर्नाटक भाजपा और रेड्डी बन्धु प्रकरण बानगी रूप में सामने आए।
85 उम्र पार के आडवाणी परआरोपहै कि इस उम्र में भी वे प्रधानमंत्री पद के महत्त्वाकांक्षी हैं। अगर हैं भी तो इसमें गलत क्या है? वे ना केवल पूर्ण स्वस्थ हैं बल्कि पार्टी के किसी भी कम उम्र के शीर्ष नेता से ज्यादा सक्रिय हैं। क्षेत्रविशेष में काम करने वाले की उस क्षेत्र के शिखर तक पहुंचने की आकांक्षा को किस बिना पर गलत ठहराया जा सकता है? आडवाणी भी यही आकांक्षा तो कर रहे हैं। सामाजिक संरचना में उच्च जातीय वर्ग को प्राथमिकता देने वाले संघ और भाजपा, दोनों को ही सिंध के वैश्य परिवार से आने वाले लालकृष्ण आडवाणी से परेशानी का कारण समझ से परे का है।

12 जून, 2013

No comments: