Tuesday, June 11, 2013

‘सुराज संकल्प’

भाजपाई शीर्ष पर छाए घटा-घनघोर के साये में वसुन्धरा राजे आज बीकानेर संभाग में हैं। 2003 की परिवर्तन यात्रा की तर्ज पर सुराज संकल्प यात्रा का यह बीकानेरी चरण है। उस और इस यात्रा में एक बड़ा अन्तर यह है कि वह यात्रा लगभग जमीनी थी और यह लगभग हवाई। 2003 की यात्रा तथाकथित रथ से पूरी की गई तो यह उड़नखटोले में। कहने को इस यात्रा में भी रथ नाम की दो बसें हैं लेकिन वसुन्धरा अधिकांश रास्ता हैलिकॉप्टर से ही नाप रही हैं। वसुन्धरा ही क्यों सूबे के मुख्यमंत्री गहलोत के यात्रा प्रबन्धन में भी उनके पिछले कार्यकाल से भारी अन्तर है। व्यस्तता एक बड़ा कारण बताया जा सकता है या हो सकता है।
विनायक ने कुछ दिन पहले अपने संपादकीय में जिक्र किया था कि वसुन्धरा की इस यात्रा को लेकर आमजन में 2003 वाला उत्साह नहीं है। वैसे इस यात्रा का नामसुराज संकल्प यात्राही फिस्स होता इसलिए लग रहा है क्योंकि गहलोत के इस सावचेत कार्यकाल को कुराज के रूप में स्थापित अभी तक नहीं किया जा सका है। कहने को तो गहलोत की सन्देश यात्रा और वसुन्धरा की सुराज संकल्प यात्रा दोनों ही भीड़ के मामले में ठीकठाक हैं। टीआरपी (टारगेट रेटिंग पॉइन्ट) के इस जमाने में सब कुछ मैनेज किया जा सकता है और किया भी जा रहा है। यात्राओं की इन जनसभाओं में उत्साहहीन लोगों का जमावड़ा इसका प्रमाण है। सर्वे और शोध किया जाय तो क्षेत्रविशेष की दोनों दलों की इन सभाओं के अधिकांश चेहरे समान हो सकते हैं। इन सभाओं की भीड़ को दोनों ही पार्टियों ने विधानसभा चुनावों की पार्टी टिकट से जोड़ दिया है। टिकट के जो भी दावेदार हैं उन्हें अपनी दावेदारी को एक टग इन सभाओं में अपने बूते लाई भीड़ से भी लगानी है। इस तरह जुटायी गई भीड़ वोटों में कितनी परिवर्तित होनी हैं सभी जानते हैं। पर दिखावे के इस जमाने में यह सब होना ही है।
अखबारों के माली हित में एक काम और होने लगा है, टिकट के दावेदारों में से प्रत्येक अपनी पोटी अनुसार स्वागत में विज्ञापन छपवाने लगे हैं। आज के विज्ञापनों में नरेन्द्र मोदी के चेहरे की बढ़ोतरी देखी जा सकती है, मोदी हाल ही में भाजपा चुनाव अभियान समिति केविवादास्पदप्रमुख बनाए गए हैं।पार्टी विद डिफरेंसका दावा करने वाली भाजपा अपनी प्रतिद्वंद्वी की ही तीसरी चौथी कॉपी के रूप में दीखने लगी है। उतावलापन इतना है कि अच्छे-बुरे किसी भी मोर्चे पर भाजपा कांग्रेस से उन्नीस दिखना ही नहीं चाहती!
वसुन्धरा आज जिले की दो विधानसभा सीटों को कवर करेंगी। भाजपा के लिए जिले की सातों सीटें आसान मानी जा रही हैं। पिछले चुनाव में जब भाजपा ने सरकार खोई थी तब भी उसने यहां की सात में चार सीटें जीत ली थीं। लगता है इस जिले में तो कम से कम भाजपा 2008 से बदतर स्थिति में नहीं है। वसुन्धरा इस जिले की सीटों को कुछ चतुराई से डील करें तो स्थिति बेहतर भी हो सकती है। ऐसा करना वसुन्धरा के लिए मुश्किल नहीं है। यह अलग बात है कि पार्टी से उन्हें फीडबैक किस तरह का मिल रहा है, क्योंकि इस तरह के अधिकांश फीडबैकआग्रह-दुराग्रहसे मुक्त नहीं होते। यही स्थिति पार्टी के शीर्ष तक है। तभी आडवाणी तक को कल कहना पड़ा कि पार्टी अब निजी एजेन्डे वाली पार्टी रह गई है।


11 जून, 2013

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