तकनीकी विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की मांग को लेकर कांग्रेस ने आज कई नामी-अनामी और कागजी संगठनों के साथ बीकानेर बन्द का आह्वान किया है। इस विश्वविद्यालय प्रकरण पर 'विनायक'
पहले भी चर्चा कर चुका है। कांग्रेस ने अपने आखिरी बजटीय पिटारे से जो प्रलोभन बांटे थे उसमें इसकी घोषणा की गई थी। विनायक यह भी बता चुका है कि स्थानीय कांग्रेसी दिग्गजों, छुटभैयों की गैर मुस्तैदी और भाजपाई विधायकों की लापरवाही के चलते यह सतमासी विश्वविद्यालय मृतप्राय अवस्था में है। सूबे की नई मुखिया वसुंधरा राजे, जो अपने इस नये कार्यकाल का आज पहला बजट पेश कर रही हैं, और यह सम्पादकीय जब आपकी आंखों के सामने होगा तब इसी अखबार के पहले पन्ने पर छपने वाली बजटीय घोषणाओं में इसका उल्लेख तक न हो- आशंका तो ऐसी ही है। क्योंकि वसुंधरा अपनी औपचारिक-अनौपचारिक हथाइयों में एक से अधिक बार यह मंशा जाहिर कर चुकी हैं कि फिलहाल वे ऐसे उपायों पर जिसमें प्रशासन मुस्तैद हो, उसकी कार्यप्रणाली में कसावट आए इसलिए किसी सान्ताक्लॉजी घोषणाओं की बजाय ढांचागत सुधारों पर ज्यादा जोर देंगी।
बात एकबार फिर तकनीकी विश्वविद्यालय की जरूरत पर कर लेनी चाहिए। पिछले दस वर्षों में प्रदेश में तकनीकी महाविद्यालय कुकुरमुत्तों की तरह खुले हैं और वे सभी फिलहाल सूबे के एकमात्र कोटा स्थित तकनीकी विश्वविद्यालय से ही सम्बद्ध हैं। कुछ तो इस पर अत्यधिक कार्यभार के चलते और कुछ सरकारी कामकाजों में बरती जाने वाली ढिलाई के चलते-इसके सभी कामकाज में शिथिलता की शिकायतें आम हैं इसलिए और भू-भाग की दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रदेश में कोटा से दूसरी दिशा में एक और ऐसे विश्वविद्यालय की जरूरत न केवल सम्बन्धित विद्यार्थियों के लिए सुविधाजनक होगी बल्कि अभिभावक वर्ग भी राहत महसूस करेगा। और यह भी कि राजनीतिक तौर पर लगभग उपेक्षित यह क्षेत्र तकनीकी विश्वविद्यालय की घोषणा से सुकून का अनुभव भी करेगा। हालांकि इसकी जरूरत न मानने वालों का तर्क यह भी है कि इन तकनीकी पाठ्यक्रमों के प्रति लगातार बढ़ते मोहभंग में इसकी जरूरत भी रहेगी कि नहीं।
खैर यह तो हुआ एक, दूसरा यह भी कि इस मुद्दे पर बीकानेर में पैदा किए गए इस दिखावटी उद्वेलन का छिपा ऐजेन्डा क्या है, जिस स्ववित्तपोषित सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज का दर्जा बढ़ाकर विश्वविद्यालय बनाने की मांग की जा रही है उसकी प्रतिष्ठा पिछले दस वर्षों में लगातार कम हुई है, इसके कारणों में माना जा रहा है कि बीकानेर के तमाम प्रभावी नेताओं ने इसे अपने चेहतों को खपाने का 'हब' मान लिया और सभी ने इस और इससे सम्बन्धित महाविद्यालय में जरूरत और बिना जरूरत के काबिल और नाकाबिलों की भरमार कर दी। कुछ तो इन पाठ्यक्रमों के प्रति मोह कम होने और कुछ इसकी प्रतिष्ठा कम हो जाने के चलते विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों का रुझान कम होते चले जाने से इस स्ववित्तपोषित इकाई पर आर्थिक संकट दिखने लगा है। बिना जरूरत के लगभग दो सौ कर्मियों को निकाल बाहर करना पड़ा। हो सकता है इनमें कुछ काबिल भी खेत रहे हों। अलावा इसके इस महाविद्यालय के कार्यकलापों में अनियमितता और घोटाले भी चर्चा में रहे हैं।
इस महाविद्यालय को यदि विश्वविद्यालय का दर्जा मिलता है तो इसे एकाधिक स्रोतों से धन मिल सकेगा और इन नेताओं के खपाये गये सभी के पुनर्वास का रास्ता भी खुल जायेगा। प्रतिष्ठा इसकी बने या न बने नेताओं को इससे कोई मतलब नहीं है।
इन सब पर विचार न करके या उन पर कपड़ा डाल एकजुटता का आभास देकर इस आन्दोलन को बढ़ा कर दिखलाने के मकसद को भी समझा जाना चाहिए। तकनीकी विश्वविद्यालय बीकानेर में खुले, इस पर किसे एतराज हो सकता है लेकिन सार्वजनिक धन की बर्बादी रुक सके और चतुराई के साथ उसे परोटा जाए, जरूरत इसकी है।
एक प्रश्न यहां और उठाया जा सकता है कि इससे भी बड़े और जरूरी कोटगेट और सांखला फाटक की समस्या के समाधान पर ऐसी ही एकजुटता बीकानेर कब दिखाएगा ताकि इसके 'व्यावहारिक समाधान' को हासिल किया जा सके।
14, जुलाई, 2014
1 comment:
हाे सकता है कि निजी कॉलेज खोलने की तैयारी हो रही हो , इसकी जगह
Post a Comment