Tuesday, October 28, 2014

यह कैसा संतुलित मंत्रिमंडल

कल के प्रदेश मंत्रिमंडल विस्तार को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की हेकड़ी की पुष्टि कह सकते हैं। हरियाणा-महाराष्ट्र में सफलता के बावजूद मोदी एण्ड शाह ऐसासिएट्स की वसुंधरा को लेकर यह उदारता पहेली से कम नहीं है, कारण क्या रहे जल्द ही सामने जाएंगे। यह विस्तार वसुंधरा की इच्छानुसार ही हुआ है, अगर यही होना था तो केन्द्र में सरकार बनने के बाद से जुलाई से लेकर अब तक प्रदेश के शासन-प्रशासन का डेरा डांग पर क्यों अटकाए रखा। खैर यह बड़ों के शगल है, इनमें फिलहाल उलझेंगे तो अपने मुद्दे पर लापरवाही मानी जायेगी।
कल के मंत्रिमंडल विस्तार पर सुबह के अखबारों में विस्तार से विश्लेषण है। राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय के बीच झूलते इन अखबारों के स्थानीय संस्करणों के किसी कुणे-खांचे में बीकानेर की उपेक्षा की सुबकी जरूर दिखी लेकिन रस्म अदायगी के तौर पर ही।
200 विधायकों की इस विधानसभा में मंत्रिमंडल 30 से ज्यादा का नहीं हो सकता। सांवरलाल जाट, जिन्हें इससे बाहर होना है, के बाद मंत्रिमंडल के 26 सदस्य रहते हैं। कहने को तो चार मंत्रियों की गुंजाइश शेष है। इसलिए बीकानेर जैसे मंत्रिमंडल में अप्रतिनिधित्व वाले जिलों को उम्मीद नहीं छोडऩी चाहिए, लेकिन ऐसे 'बापड़े' जिलों की संख्या दस है। सात संभागों और तैतीस जिलों के इस प्रदेश की सरकार में प्रत्येक जिले का प्रतिनिधित्व संभव है और ही व्यावहारिक। संभाग संतुलन की बात करें तो बीकानेर संभाग के चार मंत्री बना दिए गये हैं जो उचित है, लेकिन बीकानेर जिले से एक भी मंत्री नहीं होना और चूरू से दो होना अखरता है। कहने को कहा जा सकता है कि संतुलन आना-पाई के हिसाब से नहीं बिठाया जा सकता। अनुभव, योग्यता, मुख्यमंत्री के भरोसेमन्द होने जैसे कारक काम करते हैं। संतुलित मंत्रिमंडल तो कभी रहे ही नहीं, जातिवर्गीय हिसाब से और ही क्षेत्र के हिसाब से। असल संतुलित तो तब माना जायेगा जब जातिवर्गीय और क्षेत्रवार मंत्रिमंडल में स्थान तय हो, यदि ऐसा हो तो राजपूत, वैश्य, ब्राह्मण वर्ग के हिस्से एक-एक मंत्री पद भी नहीं आता, जबकि ये वर्ग हमेशा तीन-तीन, चार-चार मंत्री पद लिये होते हैं। हां इस मामले में जाट और अनुसूचित जनजाति वाले तेज पड़ते हैं जो जनसंख्या में अपनी हिस्सेदारी से कम प्रतिनिधित्व कभी होने ही नहीं देते। शेष तो चाहे अल्पसंख्यक हों या मूल ओबीसी या अनुसूचित जाति वालों को अधिकाशत: झुनझुना झलाया जाता रहा है। 49 प्रतिशत महिलाओं के लिए तय 33 प्रतिशत तो जब विधानसभा में ही लागू नहीं किया तो मंत्रिमंडल में उम्मीद करना संभव कहां। ये सब बातें अपनी जगह हैं और अपने जिले की उपेक्षा अपनी जगह। उक्त तसल्लियों से संतोष कर लेंगे तो बळ पड़ते जाली-झरोखों के इस युग में मन और सांस दोनों मसोस कर ही रहना होगा। कहते हैं कि बिना रोए मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती, जिसमें हमारा जिला तो उस बच्चे के समान है जिसे हर समय ही जैसे अमल (अफीम) में रखा जाता है। इसलिए इस अपेक्षा पर चुप रहे तो भुगतना होगा। वैसे भी इस शहर और जिले के साथ बहुत छल हुए हैं। केन्द्र और प्रदेश दोनों की सरकारों में इस शहर और जिले को कुछ खास कभी हासिल नहीं हुआ और हुआ भी है तो बी.डी. कल्ला और देवीसिंह भाटी जैसे लोग लम्बे समय तक काबिज रहे जिनको अपने क्षेत्र से मोह है और ही इनके पास विकास की दृष्टि है। ऐसे लोग केवल और केवल अपने अफसराना और सामन्ती मिजाज को पोखने के लिए पद हासिल करते और भोगते रहे हैं।
इस बार की उपेक्षा के कारणों की पड़ताल करें तो केन्द्र सरकार की तर्ज पर 65-70 पार के विधायकों को मंत्रिमंडल से बाहर रखने की हाइकमान की एक मात्र शर्त को वसुंधरा द्वारा मान लेने भर से दोनों वरिष्ठ गोपाल जोशी और किसनाराम नाई बाहर रह गये। सिद्धीकुमारी का अति महत्त्वाकांक्षी होना संभवत: वसुन्धरा को भाया नहीं। चार में से तीन तो इस तरह सलट गये बाकी रहे डॉ. विश्वनाथ। अनुसूचित जाति के जरूरी तीन विधायक मंत्री हो लिए हैं सो कहा जा सकता है कि इससे ज्यादा इस वर्ग को नहीं दिया जा सकता। हालांकि यह तर्क राजपूत, ब्राह्मण और वैश्य में काम नहीं करता है।
अन्यथा हाकेबाज के रूप में कुख्यात बीकानेर इस मुद्दे पर चुप रहा तो पांच साल यूं ही गुजर जाने हैं, हाके किए तो डॉ. विश्वनाथ के तौर पर ही सही सरकार में हक हासिल कर लेंगे। जून माह के 'सरकार आपके द्वार' के दौरान दी गई रेल फाटकों, सूरसागर, सिवरेज, तकनीकी विश्वविद्यालय, पीबीएम अस्पताल आदि समस्याओं के समाधान की बीटणियां चूसते-चूसते छलनी ही होगी। ऐसे में सावधानी यह जरूरी है कि बीटणियों के टुकड़ों को कहीं निगलना ही शुरू नहीं कर दें।

28 अक्टूबर, 2014

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