Saturday, October 18, 2014

वसुन्धरा राजे के सर्वाधिक मुश्किल दिन

केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद से भारतीय प्रशासनिक सेवा के राजस्थान कैडर के कई काबिल अधिकारियों को केन्द्र में बुला लिया गया है। इन बड़े अधिकारियों की ऐसी आवाजाही हमेशा से होती रही है। तब भी जब दोनों सरकारें एक पार्टी की रही हों और तब भी जब दोनों जगह अलग-अलग पार्टियों की सरकारें रहीं। सामान्यतया इस तरह की आवाजाही में केवल दोनों तरफ से सरकारों की जरूरतों का ध्यान रखा जाता रहा है बल्कि सम्बन्धित अधिकारी की इच्छा-मंशा को भी महत्त्व दिया जाता रहा है। पिछले चार महीनों में राजस्थान और केन्द्र दोनों में भाजपा की सरकारें होने के बावजूद ऐसा सद्भाव कहीं नजर नहीं रहा है। इस बार की ऐसी आवाजाही सुर्खियां बटोरने लगी है तो कुछ तो ऐसा है जो सहज नहीं है।
केन्द्र में मोदी की सरकार आते ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विश्वस्त सुनील अरोड़ा को केन्द्र में बुला लिया गया। प्रदेश में नई सरकार बनाने से पहले ही प्रदेश के मुख्य सचिव के रूप में मुख्यमंत्री वसुन्धरा के जिन विश्वस्त राजीव महर्षि का नाम चर्चा में आया, सरकार बनने के बाद उन्हें यह महती जिम्मेदारी मिल भी गई। इस पद पर आया अधिकारी प्रशासन की धुरी हमेशा ही रहा है। राजीव महर्षि की तुलना वीबीएल माथुर से की जा सकती है। तब के मुख्य सचिव माथुर दिसम्बर 1992 से दिसम्बर 1993 तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल एम. चन्नारेड्डी के समय प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया के साथ शासन के भी लगभग मुखिया हो गये थे। हालांकि महर्षि को वैसा खुला मैदान तो नहीं मिला और लगता है वे वैसे आकांक्षी भी नहीं हैं। केन्द्र में मोदी की सरकार के आने के बाद से वसुन्धरा के बांध दिए हाथों के चलते मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा। ऐसे में अकेले वसुंधरा के पास ही पैंतालीस महकमे हैं। इन सभी महकमों को महर्षि ने केवल बखूबी साध रखा है बल्कि कई अन्य महकमों की देखरेख की जिम्मेदारी भी इन परिस्थितियों में महर्षि को ही निभानी पड़ रही थी।
सरकार बनाने के बाद वसुंधरा के तीन-चार अनुकूल माह थे, उन्हें तब अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर लेना चाहिए था। इस बीच लोकसभा चुनाव गये। वसुंधरा ने सोचा ही नहीं होगा कि प्रदेश में लोकसभा की सभी पचीस सीटें जितवाने के बाद भी उन्हें इन परिस्थितियों में से गुजरना होगा। केन्द्र में पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार बनने और पार्टी के मुखिया के रूप में मोदी के 'दाएं' अमित शाह के काबिज होने के बाद से वसुन्धरा को अपमान के घूंट भी पीने पड़ रहे हैं। 19 अक्टूबर को यदि महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव परिणाम भाजपा के अनुकूल गये तो वसुन्धरा की स्थिति और टाइट हो जानी है, ऐसे में राजे को या तो टूटना होगा या फिर झुकना।
यद्यपि राजीव महर्षि के दिल्ली जाने की खबरें पहले से ही आने लगी थीं लेकिन आदेश वसुंधरा की सिंगापुर यात्रा के दौरान होने के अन्य मतलब भी निकाले जा सकते हैं। मंत्रिमंडल का विस्तार यदि जल्द ही नहीं होता और महर्षि को केन्द्र में पहले हाजिरी देनी पड़ गई तो वसुन्धरा के लिए समस्याएं बढ़ेंगी हीं।
शासन चलाने के लिए मुख्यमंत्री विशेष जिम्मेदारी वाले पदों पर अपने भरोसे के अधिकारी रखते रहे हैं। ऐसे में वसुंधरा राजे की बिना अनुकूलता का ध्यान रखे निर्णय होना उन्हें सन्देश-विशेष दिया जाना भी कहलायेगा।
इन सभी परिस्थितियों के मद्देनजर आगामी कुछ दिन विशेष उद्वेलन के हैं। प्रदेश में अनेक जगह स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं और इस महीने के अन्त तक विधायक से सांसद बने सांवरलाल जाट को मंत्री पद भी छोडऩा होगा। क्योंकि बिना विधायकी के मंत्री पद पर उन्हें छह माह हो जायेंगे। जाट के पद छोड़ते ही मंत्रिपरिषद के जरूरी बारह सदस्य नहीं रहेंगे। वसुंधरा के जयपुर लौटने के बाद आज देखना यह है कि वह महाराष्ट्र-हरियाणा के चुनाव परिणामों तक चुप रहती हैं या अपनी अनुकूलताएं बिठाने के लिए अभी से सक्रिय होंगी। राजस्थान प्रशासनिक सेवा और राजस्थान पुलिस सेवा के अधिकारियों की आईं तबादला सूचियों के बाद लम्बे समय से लम्बित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की सूची भी आनी है। ऐसे में हो सकता है इस बनी-बनाई सूची में कुछ परिवर्तन फिर हों।

18 अक्टूबर, 2014

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