Friday, September 20, 2013

राजनीतिक कार्यकर्ता

बीकानेर (पश्चिम) विधानसभा क्षेत्र के लिएकार्यकर्ता सम्मेलननाम से कल कुछ लोगों को इकट्ठा किया गया। दिसम्बर के सम्भावित विधानसभा चुनावों के लिए जिले में दोनों मुख्य पार्टियों के उन उम्मीदवारों ने अपने-अपने तईं तैयारियां शुरू कर दी हैं जिन्हें भरोसा है कि पार्टी उन्हें ही फिर से चुनाव में उतारेगी। भाजपा के पास तो संघ के स्वयंसेवकों की टीम है जो उन-उन भाजपाई उम्मीदवारों के लिए निष्ठापूर्वक लग जाती है जिनके लिए उन्हें संघ से निर्देश मिलता है। यह भी देखा गया है कि ये स्वयंसेवक, संघ के नापसन्द भाजपाई उम्मीदवारों कीकारसेवाकरने में माहिर होते हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस के पास भाजपा जैसी निष्ठावान टीम नहीं है। उम्मीदवार को अपनी हैसियत और पोटी अनुसार अपने-अपनेकार्यकर्ताओंकी व्यवस्था करनी होती है। जिन्हें लम्बे समय से चुनावी अनुभव हैं उन उम्मीदवारों या उनके चुनाव प्रबन्धकों को ना केवल अच्छा-खासा अनुभव है बल्कि कांग्रेस में जनार्दन कल्ला और भाजपा में मानिकचन्द सुराणा के पुत्र जितेन्द्र सुराणा अच्छे चुनाव प्रबन्धकों में माने जाते हैं। इसी तरह देवीसिंह भाटी के दिवंगत पुत्र महेन्द्रसिंह को अच्छा चुनाव प्रबन्धक माना जाता था। ऐसे विभिन्न स्थाई उम्मीदवारों के इन चुनाव प्रबन्धकों को बारह महीने अपने काम में लगा रहना पड़ता है। ये प्रबन्धक अपने-अपने निष्ठावानों को परोटते भी हैं और उनके कहे से छोटा-मोटा काम भी करवा देते हैं। कांग्रेस में तो कम से कम ये लोग जुड़े ही इसीलिए रहते हैं कि कार्यकर्ता की छाप से आजीविका चला सकें। वहीं दूसरी ओर भाजपा में संघी कार्यकर्ताओं से यह सब विचार रूपी अफीम की पिनक से सम्भव करवा लिया जाता है, हालांकि भाजपा के कांग्रेसी कॉपी होने के बाद से कांग्रेसी प्रकार के कार्यकर्ताओं के समूह भी अलग काम करने लगे हैं। जितेन्द्र सुराणा की अगुवाई में मानिकचन्द सुराणा के और देवीसिंह भाटी के अपने-अपने कार्यकर्ता हैं जो ठीक कांग्रेसी संस्कृति के अनुसार बिना वैचारिक पिनक के जरूरत और समय अनुसार काम आते रहे हैं। ऐसी ही टीम गोपाल जोशी की भी है। इस तरह की टीमें पार्टी और विचारों से अलग व्यक्तिगत निष्ठा के आधार पर काम करती हैं। शाखा में जाने वाले भाजपाइयों को छोड़ दें तो विचार प्राथमिकता की संस्कृति दोनों ही पार्टियों में लगभग समाप्त हो चुकी है। इसीलिए गोपाल जोशी, मानिकचन्द सुराणा और देवीसिंह भाटी जैसे ही पार्टियां बदलते हैं, वैसे ही उनकेकार्यकर्ताभेड़ों की तरह उनके पीछे हो लेते हैं।
उम्मीदवारी मिलने के मामले में देवीसिंह भाटी जैसा आत्मविश्वास बीडी कल्ला में नहीं देखा जा रहा है तो बीडी कल्ला जैसा आधा-अधूरा आत्मविश्वास मानिकचन्द सुराणा में नहीं देखा जा रहा। देवीसिंह जैसी निश्चिंतता ना होने के बावजूद जनार्दन कल्ला पिछले एक साल से ज्यादा समय से अपने नये-पुराने कार्यकर्ताओं को सम्हालने-परोटने में लगे हुए हैं। पिछला चुनाव हार जाने के बाद से कल्ला-बन्धु कुछ ज्यादा ही सावचेती में देखे जा रहे हैं। सही भी है, आगामी चुनाव भी कल्ला यदि नहीं जीत पाते हैं तो कल्ला और कल्ला परिवार से प्रभावी राजनीति विदा हो लेगी। कल्ला के हारने की आशंकाएं हाल-फिलहाल तक कायम हैं। ये आशंकाएं खुद डॉ. कल्ला के हाव-भाव और कार्य-व्यवहार में पढ़ी जा सकती हैं।
इन चुनावों के चलते जहांकार्यकर्ताके नाम पर कइयों की दिहाड़ी मासिक मजदूरी का जुगाड़ हो जाता है तो कई ज्यादा चतुरकार्यकर्तासाल-छः महीनों का इंतजाम कर लेते हैं। आजकल तो बूथ प्रबन्धन के ठेके तक उठने लगे हैं, जो ठेका लेता है वही उसपार्टीके लिए कार्यकर्ताओं का जुगाड़ भी करता है। वाह रे लोकतंत्र तुझे इस मुकाम पर भी होना था!!!

20 सितम्बर, 2013

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