रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल और इस हड़ताल के विरोध में कुछ नागरिकों के प्रदर्शन और अनशन का पटाक्षेप कल चुटकी में हो गया। दोनों ही तरफ से जो उफान देखा गया उससे तो लगता था कि इस बार मामला कुछ खिंचेगा। लेकिन यह किसी को नहीं पता था कि आनन-फानन में ही सब कुछ निबट जायेगा। डॉक्टरों की मांगों को सरकार ने तुरत-फुरत मान लिया, डॉक्टर आश्वस्त हो गये और हड़ताल वापस ले ली। चूंकि आन्दोलनरत नागरिकों का विरोध डॉक्टरों की हड़ताल से ही था सो इन्हें अनशन और आन्दोलन वापस लेने का कारण मिल गया। एक बारगी सुकून लौट आया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह की नौबत फिर नहीं आएगी। लेकिन उम्मीदें यदि शत-प्रतिशत पूरी हों तो फिर उम्मीदें नहीं कहलाएंगी।
उपरोक्त कहे अनुसार सब कुछ इतना आसान हो तो समाज, देश और दुनिया की सभी मुश्किलें खत्म हुई समझो। विनायक ने जैसा कि कल ही अपने सम्पादकीय में बताया और इससे पहले भी पीबीएम की समस्याओं के माध्यम से और अन्य आम समस्याओं के बहाने एक से अधिक बार बताया कि उपरोक्त तरह के समाधान तात्कालिक ही होते हैं। असल कारण ज्यों के त्यों अपने-अपने काम में लगे रहते हैं, इसीलिए इस तरह के समझोताई उपाय स्थाई समाधान नहीं देते।
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सितम्बर, 2013
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