Saturday, September 14, 2013

हिन्दी दिवस

हिन्दी के एक वरिष्ठ व्याख्याता चौदह सितम्बर के लिए कहा करते हैं कि यह हिन्दी दिवस हम गायों के लिए बच्छबारस की तरह है। यानि साल का यह एक ही दिन है जब हमारी कोई पूछ होती है। उनका यह गहरा तंज बहुत कुछ कह जाता है। आजादी बाद 1949 से 14 सितम्बर को देश भर के सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यालयों के राजभाषा विभाग इस दिन छोटा-मोटा कोई कार्यक्रम करते हैं, हिन्दी के किसी व्याख्याता, अध्यापक या लेखक को मंच पर बिठाते हैं, अपने किसी उस सहकर्मी को हिन्दी प्रयोग के लिए सम्मानित करवाते हैं, जिसका इस प्रयोजन से पहले कभी सम्मान नहीं हुआ। दो-तीन भाषण होते हैं। कहीं कुछ प्रतियोगिताएं भी आयोजित कर ली जाती हैं। रस्म अदायगी पूरी। और इस तरह हिन्दी से एक साल के लिए छुुटकारा मिल जाता है और दफ्तर अपने रोजमर्रा के ढर्रे पर लौट आता है।
गैर सरकारी या गैर संस्थानिक तौर पर इस दिन कोई आयोजन शायद ही होते हों। होते भी हैं तो इक्का-दुक्का ही कहीं होते होंगे। आजादी से पूर्व राष्ट्रभाषा कहलाने वाली हिन्दी को 14 सितम्बर 1949 से राजभाषा का दर्जा मिल गया। तब से लेकर अब तक हिन्दी ने जो भी स्थान हासिल किया वह अपने बूते ही किया। इसमें अखबारों और फिल्मों का योगदान मान सकते हैं या फिर रोजगार को। देश के बड़े भू-भाग में अनेक बोलियों के बावजूद आम बोल-चाल की भाषा हिन्दी हो गई इसलिए इन क्षेत्रों में रोजगार के लिए आने वाले अहिन्दी भाषी हिन्दी को ठीक उसी सहजता से अपना लेते हैं जैसे हिन्दी भाषी क्षेत्रों के लोग अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में जाकर वहां की भाषा-बोली को लेते हैं। लेकिन जिस विदेशी भाषा अंग्रेजी का स्थान हिन्दी को या अन्य भारतीय भाषाओं को लेना था वह सम्भव होना तो दूर उलटा अंग्रेजी का ना केवल लगातार प्रभाव बढ़ता जा रहा है बल्कि अब तो यह माना जाने लगा है कि उसके बिना अच्छा कॅरियर ही हासिल नहीं हो सकता, ऐसा है भी।
प्रथम राजभाषा के रूप में देश में आज भी प्रतिष्ठापित अंग्रेजी को इस तरह आज भी सरकारी संरक्षण प्राप्त है और कोर्पोरेट और निजी क्षेत्र में कम्प्यूटरों के आने के बाद से इसका महत्त्व और भी बढ़ गया। अधिकांश कार्यालयी काम-काज और लेखा-जोखा कम्प्यूटरों पर होने लगा है, चूंकि कम्प्यूटर विदेश में विकसित हुए इसलिए उनमें अनुकूलता भी विदेशी भाषाओं के लिए ही ज्यादा पायी जाती है। हालांकि देश में नित-नये ऐसे प्रोग्राम विकसित किए जाने लगे हैं जिनसे इन कम्प्यूटरों पर भारतीय भाषाओं में काम सुगमता से किया जा सके। लेकिन फिर भी अभी वह स्थिति आने में शायद समय लगेगा जिसमें इन कम्प्यूटरों को भारतीय भाषाओं में भी अंग्रेजी की तरह बरता जा सके। देश के सभी न्यायालयों, सभी ऊपरी दफ्तरों और मंत्रालयों की भाषा पहले से ही अंग्रेजी है। शेष उन कार्यालयों में जहां हिन्दी को बढ़ावा दिया जा रहा था वहां भी भारतीय भाषाओं में काम करने के प्रोत्साहनों को कम्प्यूटरों के जाने से धक्का ही लगा। भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटरों पर काम करने में दिक्कतें पेश आती रहती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ना केवल हिन्दी को बल्कि सभी भारतीय भाषाओं को कम से कम अपने देश में सम्मानजनक दर्जा हासिल हो यह दर्जा यूं ही हासिल नहीं होगा। अपनी-अपनी भाषाओं को लगातार परिष्कृत और गुणवत्ता सम्पन्न बनाए जाने के साथ ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्रामों को भी लगातार विकसित करते जाना होगा जो देश की भाषाओं के लिए अनुकूलता बढ़ाते रहें।

14 सितम्बर, 2013

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