Tuesday, April 16, 2013

अशोक गहलोत का ‘नेनो’ दौरा


इसी अठारह को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीकानेर आने की संभावना है। अवसर होगा बीकानेर-पुरी रेलगाड़ी को हरी झण्डी दिखाकर रवानगी का। गहलोत का जो कार्यक्रम बताया जा रहा है उसके अनुसार वे यहां घंटा-दो घंटा ही रुकेंगे। गहलोत केवल सूबे के मुखिया हैं बल्कि इसी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों का कांग्रेसी दारमदार पूरा उन पर ही है। राजनीतिक हवाएं पूरी तरह आश्वस्त नहीं करती हैं कि गहलोत तीसरी बार और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद हासिल कर लेंगे। इस तरह की परिस्थितियों में उस बीकानेर क्षेत्र को मात्र घंटा-दो-घंटा देना, जहां की सात में से एक भी विधानसभा सीट ऐसी नहीं है जिसके लिए यह कहा जा सके कि कांग्रेस वहां डंके की चोट जीत जाएगी। लगता है गहलोत के पास पहुंच रही इस क्षेत्र की रिपोर्ट भ्रामक है, यदि ऐसा नहीं है तो वह केवल झण्डी दिखाकर खुद भी रवाना क्यों हो रहे हैं। कहने को कहा जा सकता है कि संदेश यात्रा के दौरान तो उन्हें आना ही है, लेकिन क्या बीकानेर के लिए संदेश यात्रा का प्रवास पर्याप्त होगा! क्या वे अपने लगभग समकक्षी और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, पूर्व कैबिनेट मंत्री और राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. बीडी कल्ला पर भरोसा करते हैं कि वे क्षेत्र की सातों सीटों पर अपने प्रभाव से कांग्रेस का बेड़ा पार लगवा देंगे। वे यदि इस भ्रम है तो बड़ी भूल कर रहे हैं।

डॉ. कल्ला कभी ऐसी स्थिति में रहे ही नहीं कि अपनी सीट के अलावा आस पड़ोस की सीट पर ध्यान दे पाते, उनकी कोशिश यह रहती है कि उनकी अपनी जीत के लिए आस पड़ोस की किसी सीट की बलि भी ली जाय तो वे नहीं चूकते।

बीकानेर (पूर्व) की सीट के लिए कांग्रेस के पास कोई नेता नहीं है जो भाजपा की सिद्धिकुमारी को टक्कर भी दे सके। कल विनायक ने इसी कॉलम में जैसा लिखा कि विश्वजीत सिंह पर भरोसा किया जाय और पार्टी उसे पूरा सहयोग करे तो हो सकता है वे कांग्रेस के लिए यह सीट निकाल ले जाएं।

इसी तरह लूनकरणसर सीट पर भाजपा के मानिकचन्द सुराना अस्सी पार की इस उम्र में ताल ठोंकने को तैयार हैं, वीरेन्द्र बेनीवाल के पास प्रभावी मंत्रीपद होते हुए भी इस सीट पर उनकी जीत आसान नहीं है। हो सकता है वसुन्धरा पिछले चुनाव की तरह यह सीट भारालोद पार्टी को दे और सुराना को टिकट देने की गलती इस बार दोहराए।

देवीसिंह भाटी केवल कोलायत में अब भी चुनौतीहीन बने हुए हैं बल्कि पड़ोस की खाजूवाला सीट भी लगभग उनके प्रभाव क्षेत्र में है। इसीलिए खाजूवाला के वर्तमान विधायक डॉ. विश्वनाथ देवीसिंह की लगभग शागिर्दी मुद्रा में हैं। कांग्रेस के पास इस सीट को निकाल ले जाना वाला कोई उम्मीदवार फिलहाल नहीं है। सुषमा बारूपाल जिस तरह से राजनीति करती हैं, कांग्रेस के लिए सीट निकाल ले जाना उनके बस की नहीं है। पिछले चुनाव में सुषमा ने नहीं कांग्रेस ने विश्वनाथ को अच्छी टक्कर दी थी, लेकिन लगता नहीं कि सुषमा उसे दोहरा पाए!

नोखा की स्थिति तो यह है कि वहां विरोधियों की जरूरत ही नहीं है। हो सकता है रामेश्वर डूडी और कन्हैयालाल झंवर ही आपस में लड़ कर इस बार इस सीट का छींका भाजपा के लिए गिरा दें।

श्रीडूंगरगढ़ में हो सकता है वसुन्धरा राजे लूनकरणसर की तरह किसी अन्य पार्टी को यह सीट दे और किसनाराम नाई जैसे भारी भरकम उम्मीदवार को मंगलाराम के सामने फिर उतार दे। ऐसी स्थिति में जरूरी नहीं है कि मंगलाराम लगातार चौथी बार विधानसभा में पहुंच सकें।

गहलोत को बीकानेर क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना जरूरी है अन्यथा हो सकति है सात में से जो दो सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं वह भी पार्टी से झटक जाये। गहलोत सरकार फिर से बना लेंगे तो भी इस बार की तरह अगली बार भी विधानसभा में नम्बरों की जद्दोजेहद शायद करनी पड़े और करनी पड़ी तो बीकानेर क्षेत्र की उपेक्षा तब बहुत खळेगी। इसके अलावा भी आचारसंहिता से पहले इस शहर की कुछ सार-सम्हाल सरकार को तत्काल करनी चाहिए ताकि आगामी चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों को लाभ हो सके, इसे भी गहलोत को व्यक्तिगत तौर पर देखना चाहिए।

16 अप्रैल, 2013

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