Monday, April 15, 2013

चुनावी बिसात पर बीकानेर पूर्व


सूबे के आगामी विधानसभा चुनावों में अब लगभग सात महीने ही शेष हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों  पार्टियों के मुखियाओं के जबानी जमा खर्च परवान पर हैं, वसुन्धरा राजे और अशोक गहलोत दोनों यात्राओं पर हैं और दोनों ही एक-दूसरे पर आरोपों में कोई कमी नहीं रख रहे हैं, एक कह रही हैं प्रदेश को लूटा जा रहा है तो दूसरे आगाह कर रहे हैं कि लूटेरे वापस आ रहे हैं। हालांकि जिन्हें लूटे जाने की बात हो रही है वे केवल तमाशबीनों की भूमिका में हैं बेचारे।
बीकानेर की बात करें तो यहां कि सातों सीटों में बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र को छोड़ शेष में खदबदाहट भले हो पर उबाल कहीं देखने में नहीं आ रहा है। बीकानेर पश्चिम की बात फिर करेंगे। आज बीकानेर पूर्व की बात कर लेते हैं।
पिछले चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी के रूप में पूर्व राजघराने की सिद्धीकुमारी 60591 वोट लेकर विजयी हुईं थी। कांग्रेस से प्रत्याशी थे डॉ. तनवीर मालावत जो पेशे से डॉक्टर हैं पर धंधा जमीनों का और बिल्डिगों का करते हैं। डॉ. तनवीर को क्षेत्र की जनता ने स्वीकार नहीं किया, बल्कि जिस अल्पसंख्यक समुदाय से वे हैं, वोटों की संख्या से लगता है कि उनके समुदाय ने भी उन्हें पूरी तरह से नहीं स्वीकारा। वह 37653 वोटों के लम्बे अन्तर से हारे थे। कांग्रेस के टिकट दिये जाने के ऐके एन्टोनी के बनाए फार्मूले की बात करें तो डॉ. तनवीर मालावत कांग्रेस का टिकट मांगने की पात्रता भी खो चुके हैं, क्योंकि तय मानकों में एक यह भी है कि पार्टी का जो अधिकृत उम्मीदवार पन्द्रह हजार से ज्यादा मतों से हारा हुआ है, उन्हें टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। विनायक ने पहले भी अपना अनुमान बता दिया था कि डॉ. तनवीर शायद आगामी चुनाव न लड़ने का मन बना चुके हैं, लेकिन इस अनिच्छा की वे घोषणा नहीं करेंगे, वह दावेदारी भी करेंगे और अपनी चर्चा भी वे करवायेंगे अन्यथा राजनीति करने का उनका व्यावसायिक मकसद पूरा नहीं होगा। तनवीर चाहेंगे और पुरजोर प्रयास करेंगे तो टिकट ले भी आयेंगे पर डॉ. तनवीर भी जानते हैं और ऐसा है भी कि अगले चुनाव के नतीजे भी लगभग पिछले चुनावों के नतीजे जैसे ही रहेंगे।
बीकानेर की कुल सात सीटों में से बीकानेर पूर्व को कांग्रेस यदि अल्पसंख्यकों की मान चुकी है और आगामी चुनावों में यदि इसी आधार पर पार्टी को प्रत्याशी तय करना है तो संभावित उम्मीदवारों की पंक्ति में और भी कई नाम लिए जा सकते हैं, न्यास अध्यक्ष मकसूद अहमद, हाजी मोहम्मद सलीम सोढा। यदि पार्टी किसी युवा को टिकट देना चाहें तो आजम कायमखानी, शब्बीर अहमद और मकबूल सोढ़ा भी दावेदारी तो कर ही सकते हैं। वैसे कल्ला बन्धु भी अपनी और से गुलाम मुस्तफा और अब्दुल मजीद खोखर का नाम चला सकते हैं और मौके की नजाकत को देख कर उसके लिए जोर भी लगा सकते हैं।
कल्ला बन्धुओं की मंशा बीकानेर पूर्व की सीट जिताने से ज्यादा इसमें रहेगी की चुनाव में इससे उन्हें क्या लाभ होना है और कल्ला चुनाव जीत जाएं और कांग्रेस की सरकार बनती है तो बीकानेर पूर्व से जीते कांग्रेसी उम्मीदवार से सत्ता में भागीदारी में उन्हें प्रतिकूलता ना हो। अपने पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम को लेकर उच्चतम न्यायालय से बैरंग लौटने के चलते सीपी जोशी का सूबे की राजनीति मेंकरारबढ़ता नहीं दिखता है, इससे बाबू जयशंकर को अपनी दावेदारी केजैककी गुंजायश शायद न लगे और मन मसोस कर रह जाएं।
उक्त सबसे अलग कांग्रेस यदि बीकानेर पूर्व की सीट को लेकर गंभीर है और उसका मकसद सीट निकाल ले जाना हो तो वह विश्वजीत सिंह हरासर को भी टिकट दे सकती है। विश्वजीत ने पिछले चुनाव में इसी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय लड़ कर न केवल अपनेअन्ताको चुनौती दी बल्कि 9997 वोट लेकर अपनी ठीक ठाक उपस्थिति भी दर्ज करवा दी थी। सामन्ती काल की बात करें तो सिद्धीकुमारी के पूर्वजों के विश्वजीत के पूर्वजठिकानेदारथे और ठिकानेदार राजा को अन्ता यानि अन्नदाता कहते रहे हैं। कांग्रेस और विश्वजीत दोनों ही इस सीट को लेकर गंभीर हों तो हो सकता है बीकानेर छावनी क्षेत्र के बारूदी असले में वर्षों पहले लगी आग के समय बारूद से भरे ट्रकों को आग से दूर ले जाकर हीरो की अपनी छवि बना चुके विश्वजीतसिंह अपनेअन्ताको आगामी चुनाव मेंठिकानेलगा दें।
15 अप्रैल, 2013

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