Saturday, April 13, 2013

नरेन्द्र मोदी और जगदीश टाइटलर


1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली सहित देश के कई भागों में फैले सिख विरोधी दंगों में हजारों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस सिखसंहार में तीन शीर्ष कांग्रेसी नेताओं की भूमिका भी दोषपूर्ण मानी जाती रही, हरिकिशनलाल भगत, सज्जनकुमार और जगदीश टाइटलर। भगत का निधन हो चुका है, सज्जनकुमार लम्बे समय सेराजनीतिक निकालाभोग रहे हैं लेकिन वह हैं अभी भी कांग्रेसी, और जगदीश टाइटलर अपनी पार्टी में उस भूमिका में नहीं हैं जहां वह हो सकते थे, वह कांग्रेस में लगभग उपेक्षित हैं। इसी बुधवार को अदालत ने सीबीआई की उस क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया जिसे टाइटलर के 1984 के दंगों के लिए बेदाग होने का दस्तावेज मान लिया गया था। सीबीआई की यह क्लोजर रिपोर्ट 84 के दंगों में टाइटलर की भूमिका की जांच से सम्बन्धित है। बुधवार के अपने आदेश में अदालत ने तीसरी बार जांच करने का आदेश दिया है।
दूसरी और गुजरात के भाजपाई मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से खुद को पीएम इन वेटिंग घोषित किया है तब से 2002 के गुजरात दंगों की चर्चा भी गर्म होने लगी है। कांग्रेस ने गुजरात दंगों में मोदी पर लगे आरोपों को झाड़ना शुरू कर दिया, सुबूतों को मिटाने और गवाहों के मुकराने जैसा कुछ करके मोदी चाहे अदालतों  से बरी हो जाएं, नैतिक दोष तो उनका इतिहास में दर्ज हो ही गया है। कमोबेश ऐसी ही करतूतें और स्थिति उक्त तीनों कांग्रेसियों की भी रही और है।
पिछले कुछ दिनों की घटनाओं, फैसलों और बयानों के सन्दर्भ में केन्द्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष वैंकया नायडू के भी कल बयान आए हैं। मोइली ने कहा है कि टाइटलर पर आरोप मोदी की तुलना में कम गंभीर हैं। इस बयान में टाइटलर के दोषी होने की स्वीकारोक्ति तो है ही। मोइली केवल जाने-माने कानूनवेत्ता हैं बल्कि उनकी गिनती संजीदा राजनेताओं में भी होती है। इस तरह की बयानबाजी के बीच वैंकया नायडू ने भी कांग्रेस से प्रतिप्रश्न किया है कि 2002 के दंगों को लेकर वे यदि मोदी पर कार्रवाई चाहते हैं तो टाइटलर पर चुप्पी क्यों साध रखी है। वैंकया के इस प्रतिप्रश्न में यह अन्त-र्निहित ध्वनि है ही कि कांग्रेसी यदि 1984 के दंगों को लेकर टाइटलर के खिलाफ मुखर हो जाये तो भारतीय जनता पार्टी भी 2002 के दंगों के लिए मोदी के खिलाफ दिए जाने वाले बयानों पर एतराज नहीं करेगी।
इन दोनों नरसंहारों को लेकर कांग्रेस और भाजपा दोनों में कांग्रेस की भूमिका ज्यादा संजीदा कही जा सकती है। कांग्रेस आलाकमान या कोई शीर्ष कांग्रेसी नेता भगत, सज्जन और टाइटलर की ढाल नहीं बने। इसके ठीक उलट गुजरात दंगों की तो बात दूर भारतीय जनता पार्टी नरेन्द्र मोदी कीपीएम इन वेटिंगकी स्वयंभू घोषणा को लेकर हीकांई लगाऊं-कांई लगाऊंकी स्थिति में है। ना तो वह यह कह पा रही है कि नरेन्द्र मोदी भाजपा के पीएम इन वेटिंग है और ना ही वह इस का खुलकर खण्डन कर पा रही है भाजपा के लिए यह गंभीर चिन्तन का विषय होना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी को यदि पार्टी की कठपुतलिया बागडोर दे दी गई तो क्या वह पार्टी को गुजरात भाजपा की तर्ज पर ही नहीं हांकने लगेंगे?
13 अप्रैल, 2013

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