दिल्ली गैंगरेप में बलात्कारियों और दिल्ली पुलिस का माजना ही सामने नहीं आया है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और धर्मगुरु बने आसाराम बापू ने भी अपना आपा दिया है। आसाराम बापू पर पहले कई आरोप भी लगे हैं। वे न अपने किये पर शर्मिन्दा होते हैं और न कहे पर। जबान उनकी फिसल भी जाय तो उसी फिसलन पर रपटते रहने की आदत है उन्हें। यानी हेकड़ी इतनी कि अपने अंट-शंट कहे को उचित ठहराने के लिए और ज्यादा अंट-शंट कहते रहते हैं। गैंगरेप पीड़िता पर दिये उनके बेहूदा बयान की जब आलोचना होने लगी तो वे कल अपने आलोचकों को कुत्ता कहने से भी नहीं चूके। उनके बयान के बाद ही पता चला कि गैंगरेप पीड़िता का परिवार आसाराम का अनुयायी रहा है और पीड़िता के पिता के अनुसार उन्हें अब आसाराम से वितृष्णा हो गई है। गैंगरेप पीड़िता को आधा दोषी मानना और यह कहना कि यदि वह उन दरिन्दों को भाई मान कर गिड़गिड़ाती तो उसकी यह गत नहीं होती। इस पर पीड़िता के पिता ने आसाराम को जवाब यह दिया—समर्पण भगवान के सामने किया जाता है, दरिन्दों के सामने नहीं’ इस सामान्य धार्मिक भाव की जानकारी यदि आसाराम को नहीं है तो वे काहे के धर्मगुरु हुए! आसाराम के कहे और पीड़िता के पिता के जवाब पर फेसबुक पर आज हिन्दी के साहित्यकार-चिन्तक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने स्टेटस लिखा है-
‘जो इतनी बुनियादी
बात नहीं जानता, जो बलात्कार को दो हाथ से बजती ताली बताता
है, फिर भी स्वयं को संत कहलाता है, उनके लिए उस वीर पुत्री के संतप्त पिता का यह सुझाव सर्वथा
विचारणीय है कि ‘डूब मरो चुल्लू
भर पानी में।’
आज के अधिकांश संत, बाबा आदि-आदि एक ऐसे व्यवसाय में संलिप्त हैं जिसमें ऐसे लोगों को दूहा जाता है जैसे भोली-भाली धर्मभीरु जनता या योग्यता से अधिक पाने के लालची और खोटे-बुरे करने वाले यानी वे जिन्हें अपने किए की एवज में कुछ धर्म करके जमा-खर्च बराबर करना हैं। लालची और खोटे-बुरे करने वाले की तो वही जानें, लेकिन संत-बाबाओं के इस धंधे का शिकार जो आम-अवाम होता है वह शुद्ध रूप से इन बाबाओं की चार सौ बीसी में आता है। ये अधिकांश संत और बाबा ऐसी बातें करीने से कहना सीख लेते हैं, जिन्हें सामान्यतः अच्छा माना जाता है, कुछ धर्म ग्रन्थों की आड़ लेते हैं तो आजकल कुछ योग की भी। इन सबमें इनका अपना कुछ नहीं होता है और शुरू कर देते हैं दुकानदारी! अधिकांश बाबा और संत महंगी गाड़ियों और हवाई जहाजों में घूमते हैं, आलीशान भवनों और आश्रमों में रहते हैं, इनमें से कइर् तो अनैतिक और अवैध गतिविधियां करते अकसर पकड़े भी जाते हैं।
कुछ विशेष प्रकार की बातों के अलावा जब भी यह कुछ और बात बोलने की कोशिश करते हैं तो देश और समाज का इनका अधकचरा ज्ञान उजागर होने लगता है। एक अन्य धर्मगुरु रविशंकर ने भी सरकारी स्कूलों को इसलिए बंद करने की सलाह दे दी कि इन स्कूलों में अपराधी पैदा होते हैं।
एक और धर्मगुरु नये-नये प्रकाश में आए हैं कुमार स्वामी। अखबारों में आत्मश्लाघा में बड़े-बड़े विज्ञापन देते हैं। अपने आयोजन को ‘दुख निवारण समागम’ का नाम देते हैं। एक दिन अपने प्रवचनों में बिना किसी भय से बड़ा झूठ बोलते हैं कि ‘इन्दिरा गांधी की जिस दिन हत्या हुई थी मैं उनके पास उनके ड्राइंगरूम में था, उन्होंने मुझे गम्भीर मुद्दों पर चर्चा करने के लिए बुलाया था, जब वह बाहर निकलने लगीं तो मैंने मना किया कि अभी मत जाओ, लेकिन वह निकल गईं और मारी गई’ यह कहते हुए उन्हें इतना भी भान नहीं है कि वह प्रधानमंत्री
निवास की बात कर रहे हैं जहां हर आगमन की सूचना दर्ज होती है। जांच की जाय तो झूठ पकड़ा जा सकता है। लेकिन उन्हें पता है कि ऐसा होगा नहीं और अपने भक्तों पर प्रभाव जमा लेंगे।
9 जनवरी, 2013
2 comments:
bahut accha
accha bahut accha
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