भाजपा नेता यशवंत सिन्हा बिहार से हैं और जदयू के चलते बिहार में इनकी दाल गलनी नहीं है। इसलिए नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही सही यदि राजग में भांगा होता है तो राजग का दूसरा सबसे बड़ा दल जनता दल यूनाइटेड अलग हो जायेगा। और हो सकता है सिन्हा को लगता है कि उनकी पावली पांच आने में चलने लगे जिसकी उम्मीद कम ही लगती है। स्थानीय बोली में पुरुष मानसिकता की एक कहावत है कि ‘भाई के मरने का दुःख नहीं, भौजाई का नखरा तो भंग ही जायेगा’, ठीक इसी मानसिकता में सिन्हा आ गये लगते हैं। क्योंकि झारखंड में झारखंडी पार्टियों के प्रभुत्व और आदिवासी नेताओं के चलते उन्हें अपनी उम्मीदें हरी होती नहीं लगती है तो बिहार में नीतिश से गठबंधन के चलते केन्द्र में कुछ हो या न हो और बिहार में सरकार भी चली जाए तो पूछ सिन्हा की बढ़ेगी? और कम से कम बिहार में पार्टी की निर्भरता यशवन्त सिन्हा पर आ जायेगी| सिन्हा शायद अंगूरों को इसी टकटकी से देख रहे हैं नहीं मिले तो खट्टा तो उन्हें कहा ही जा सकता है।
29 जनवरी, 2013
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