Tuesday, January 29, 2013

किशोर न्यायबोर्ड का फैसला


दिल्ली गैंगरेप के छः आरोपियों में से एक किशोर है। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (किशोर न्यायबोर्ड) ने कल जब से यह फैसला दिया तब से ही टी.वी. और सोशल साइट्स पर उद्वेलन है। इस छठे अपराधी ने जिस दिन अपराध किया था-उस दिन उसकी उम्र 17 साल 6 महीने और 24 दिन ही थी। किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार वह नाबालिग है और न्याय क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इस अधिनियम की धाराओं और व्यवस्था के चलते यह किशोर इसी 4 जून 2013 को रिहा हो जायेगा।
दूसरी और पुलिस का कहना है कि अपराध में इस किशोर का उस युवती के साथ केवल सर्वाधिक बर्बरतापूर्ण व्यवहार था बल्कि दुष्कर्म भी इसने दो बार किया। और यह भी की लोहे की छड़ से युवती की आंतों को सर्वाधिक घायल भी इसी किशोर ने किया था-जिसके चलते उसकी मौत हुई है।
जब से यह घटना हुई है तभी से किशोरवय और बालिग-नाबालिग की उम्र निर्धारण सीमा पर बहस-चर्चाएं हो रही हैं। कुछ का मानना है अपराधों के मामले में बालिग होने की उम्र 16 वर्ष मान ली जानी चाहिए। यह एक बहुत गम्भीर मुद्दा है और इस पर सभी आयामों से विचार किया जाना चाहिए। जो स्थितियां इस मामले में दरपेश रही हैं उससे यह तो तय है कि वर्तमान किशोर न्याय अधिनियम अधूरा है और उसमें तत्काल कुछ परिवर्तन की जरूरत है। यदि वह किशोर आजाद होता है तो इसका नकारात्मक सन्देश जायेगा। समाज में अपराध बुद्धि के बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो खुद इस तरह के अपराध नहीं कर पाते पर वह आस-पास के किशोरों को इसके लिए दुष्प्रेरित भी करते हैं। ऐसा आए दिन देखने-जानने में आता है।

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