Tuesday, August 18, 2015

कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की समस्या पर फिर-फिर

शहर की सबसे बड़ी समस्या कोटगेट और सांखला रेल फाटकों पर उच्च न्यायालय ने सूबे की सरकार को फिलहाल सक्रिय कर रखा है। सरकार की उच्च स्तरीय दो बैठकें हो चुकी हैं। रेल अंडरब्रिज, रेल बाइपास, और एलिवेटेड रोड जैसे समाधान के तीन विकल्पों में से सरकार एलिवेटेड रोड को व्यावहारिक मान रही है। राज्य सरकार ने एलिवेटेड रोड की योजना के साथ आरयूआइडीपी के उस सैम्पल सर्वे का हवाला भी दिया है जिसमें शहर के आम बाशिन्दों ने लगभग एक राय से एलिवेटेड रोड वाले समाधान को ही उचित कारगर माना है। रही बात शहर के कुछ खास बाशिन्दों की तो उन्होंने बाइपास की खूंटी को क्यों पकड़े रखा है उसकी पड़ताल में नहीं जाना है। लगभग दो हजार करोड़ की इस बाइपास योजना के लिए सरकार कभी तैयार होगी, लगता नहीं है। उच्च न्यायालय ने बाइपास सम्बन्धी कोई आदेश दे भी दिया तो प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय में चली जायेगी और मामला फिर कई वर्षों तक अधरझूल में लटक जाएगा। ऐसे में शहर के आम बाशिन्दों को कुछ खास बाशिन्दों के निजी स्वार्थों को साधने या सनकों को खुजलाने की बिना पर इस समस्या को भुगतते रहने से अब इनकार कर देना चाहिए।
आज के सन्दर्भ में बात करें तो कोई भी सरकार किसी एक शहर की एक समस्या के समाधान पर दो हजार करोड़ रुपये खर्च करने को तैयार नहीं होगी, वह भी बीकानेर जैसे छोटे शहर के लिए। 'विनायक' इस समस्या के समाधान पर लिखता रहा है। इसके समाधानों पर जो पहले लिखा है उसी को पाठकों से फिर साझा करना जरूरी लगता है। रेल अण्डरब्रिज पर अब विचार लगभग नहीं हो रहा है। इसीलिए रेल बाइपास और एलिवेटेड रोड पर दो माह पूर्व ही जो चर्चा इस कालम में की गई थी, पाठकों के मनन के लिए इसे दुबारा प्रकाशित करने में कोई संकोच नहीं है। ऐसा इसलिए भी जरूरी लगा कि उच्च न्यायालय इस समस्या पर 1 सितम्बसर को फिर सुनवाई करेगा। तब तक हम इसके व्यावहारिक समाधान पर मुखर नहीं होंगे तो हो सकता है मामला उस रास्ते पर चला जाए जिसे नापने की समय-सीमा ही नहीं होती। नतीजतन लम्बे समय तक इस समस्या को भुगतने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होना है।
रेल बाइपास
रेल बाइपास की बात सबसे पहले 1976 में जारी बीकानेर शहर के मास्टर प्लान में सामने आयी थी। उसमें सुझाव था कि शहर के बीच से गुजरने वाली रेल लाइन को हटाकर शहर के पश्चिम-दक्षिण में नई रेल लाइन डाली जा सकती है, इस योजना में वर्तमान बीकानेर रेलवे स्टेशन को हटाकर दो नये स्थानों के प्रस्ताव दिए गए जिनमें एक घड़सीसर में सुझाया गया और दूसरा मुक्ताप्रसाद नगर के पास। इसके बाद जननेता रामकृष्णदास गुप्ता ने रेल बाइपास की मांग को लेकर पिछली सदी के आखिरी दशक के मध्य में लम्बे समय तक आन्दोलन चलाया और कोटगेट पर उनके कई दिनों के धरने के बाद मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत और रेलमंत्री सीके जाफर शरीफ बीकानेर आए और रेल बाइपास पर सहमति जता कर आन्दोलन को खत्म करवा गये।
एक अन्य समाधान, सुझाव ये भी रहा है कि रेल लाइन भी हट जाए और स्टेशन भी यहीं रहे। तो रेलगाड़ी कोई बस तो है नहीं जहां मरजी आए जैसे ले गये। इस स्टेशन पर गाड़ी आकर लौटेगी तो इंजन को भी आगे-पीछे करना होगा। ऐसे में कम से कम आधा घंटा और अतिरिक्त लगेगा। यानी यहां से गुजरने वाली हर गाड़ी का समय सवा से डेढ़ घंटा बढ़ जाना है। मेड़ता रोड होकर जयपुर की ओर जाने वाली गाडिय़ां इस तरह की परेशानी पहले ही भुगत रही हैं।
1976 में प्रस्तावित उस बाइपास योजना में वर्तमान स्टेशन को हटाकर जिन दो स्थानों पर नए स्टेशन बनाने प्रस्तावित थे, वे दोनों स्थान अब बसावट में लिए हैं। वहीं रेलवे अब इस समाधान पर दो विकल्पों के साथ ही सहमत हैएक तो यह कि वर्तमान रेलवे लाइन कायम रहे और सवारी गाडिय़ों को बीकानेर से लालगढ़ पुराने ट्रेक से ही गुजारा जायेगा, बाइपास से केवल मालगाडिय़ां गुजरेंगी। इस विकल्प में स्टेशन यहीं रह सकता है। इस योजना में रेल फाटकों की समस्या का खास समाधान इसलिए नहीं मिलना क्योंकि वैसे भी इस रूट पर अब ज्यादातर सवारी गाडिय़ां ही चल रही हैं, अधिकांश मालगाडिय़ों की दिशा बदल दी गई है। दूसरे विकल्प के तौर पर रेलवे का कहना है कि शहर से गुजरने वाली इस लाइन को हटाना ही है तो वर्तमान स्टेशन को नाल गांव ले जाना होगा। ऐसे में शहर के बाशिन्दें क्या इसके लिए तैयार होंगे। दूसरा, इस शहर से गुजरने वाली सभी गाडिय़ों का समय पैंतीस से पैंतालीस मिनट बढ़ जायेगा। सवारी गाडिय़ों के समय को लगातार कम करने के प्रयासों को भी इससे झटका लगेगा।
एक और बड़ी अड़चन यह है कि रेलवे इस पूरी योजना में एक पैसा भी नहीं लगाएगा। जमीन अधिग्रहण और नई लाइन डालने का खर्चा तो राज्य सरकार को उठाना ही हैवहीं नाल में नये स्टेशन को विकसित करने का खर्च भी राज्य सरकार को वहन करना होगा। ऐसे में देखना यह होगा कि यहां के जनप्रतिनिधि क्या वर्तमान रेलवे स्टेशन को नाल ले जाने के लिए यहां की जनता को सहमत कर पायेंगे और ये भी कि योजना पर आने वाले भारी भरकम खर्च के लिए राज्य सरकार को तैयार कर लेंगे?
एलिवेटेड रोड
व्यावहारिक समाधान एलिवेटेड रोड ही माना गया है। 2006-07 में राजस्थान अरबन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (आरयूआइडीपी) के दक्ष तकनीकी आयोजकों को राज्य सरकार की ओर से शहरी समस्याओं की पड़ताल करने और उनका व्यावहारिक समाधान देने को कहा गया। बीकानेर के कोटगेट और सांखला रेल फाटकों की बड़ी समस्या पर उनका ध्यान गया। उनके द्वारा अपने तईं किए इस काम के दौरान कोई राजनीतिक हस्तक्षेप था और ही कोई हित विशेष के दबाव थे। उन्होंने इन दो रेल फाटकों की समस्या का बहुत ही व्यावहारिक समाधान एलिवेटेड रोड के रूप में तब सुझाया जब शहर के राजनेता और अन्य मुखर लोग बाइपास का राग अलाप रहे थे। उन्होंने केवल परियोजना बनाई बल्कि मॉडल बना कर शहर में प्रदर्शित किया और आमजन से इस एलिवेटेड रोड पर राय चाही। उस दौरान सकारात्मक हजारों अनुशंसाओं के बीच बहुत थोड़े लोगों ने यह कहकर विरोध जताया कि इससे महात्मा गांधी रोड के व्यापार पर विपरीत असर पड़ेगा। शहर के असरकारी लोगों के प्रभाव के चलते तब मात्र चौबीस करोड़ के इस प्रोजेक्ट को ठण्डे बस्ते में पहुंचा दिया गया।
पाठकों की सुविधा के लिए एक बार पुन: उस प्रोजेक्ट की जानकारी साझा कर रहे हैं-लगभग 26 फीट चौड़ाई की यह डबललेन एलिवेटेड रोड महात्मा गांधी रोड स्थित रिखब मेडिकल स्टोर वाले बड़े चौक से चढ़कर फड़बाजार चौराहे से सांखला फाटक की ओर घूमनी है। इसके बाद वहां से नागरी भण्डार तक पहुंचकर दो शाखाओं में विभक्त होकर एक शाखा रेलवे स्टेशन जाने वाले यातायात के लिए मोहता रसायनशाला के आगे उतरती तो दूसरी शाखा अन्दरूनी शहर की ओर जाने वालों के लिए फोर्ट स्कूल के पास राजीव मार्ग पर।
सभी जानते हैं कि फिलहाल महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड से गुजरने वाले यातायात में सत्तर प्रतिशत वह है जिन्हें इन दोनों ही बाजारों से कुछ लेना देना नहीं होतावे या तो स्टेशन या अन्दरूनी शहर से आकर पब्लिक पार्क की ओर जाते हैं या उधर से लौटते हैं। इन सत्तर प्रतिशत गैर ग्राहकीय यातायात के चलते इस बाजार में तीस प्रतिशत ग्राहकीय यातायात को कितनी परेशानी उठानी होती है इसका भान शायद किसी को नहीं है। एलिवेटेड रोड यदि बनती है तो सत्तर प्रतिशत गैर ग्राहकीय यातायात एलिवेटेड रोड से 'बाइपास' कर जायेगा और वह तीस प्रतिशत ग्राहकीय यातायात केवल इतमीनान से इन बाजारों में खरीदारी कर सकेगा बल्कि जिन ग्राहकों ने जाम से घबराकर महात्मा गांधी रोड और स्टेशन रोड आना बन्द कर दिया, वे भी खरदीदारी के लिए पुन: इस बाजार में आने की हिम्मत जुटाने लगेंगे।
महात्मा गांधी रोड और सांखला फाटक तक स्टेशन रोड लगभग चालीस से चौवालीस फीट चौड़ी हैऐसे में छब्बीस फीट की एलिवेटेड रोड के दोनों तरफ हवा-रोशनी की पर्याप्त गुंजाइश रहेगी वहीं एलिवेटेड रोड के लगभग पांच फीट एकल खम्भों के बीच छायादार पार्किंग बन जायेगी। ऐसे में दुकानों के आगे खड़े वाहनों से दुकानों तक पहुंचने में ग्राहकों को जो बाधा आती है, उसमें बहुत कमी जायेगी। अलावा इसके रिहायश से लगभग बाजार में तबदील हो चुके इन मार्गों के इर्द-गिर्द के भवनों की दूसरी-तीसरी मंजिलों पर अच्छे-खासे शो-केस विकसित हो सकते हैं जो एलिवेटेड रोड से गुजरने वालों को लुभाए बिना नहीं रहेंगे।
ऐतिहासिक कोटगेट से लगभग सात-आठ सौ फीट दूर दिशा बदलने वाली इस एलिवेटेड रोड से कोटगेट के सौन्दर्य-दर्शन में कुछ खास अन्तर नहीं आना है।
रेलवे के तकनीकी लोग भी यह मानते हैं कि सबसे 'फिजिबल' एलिवेटेड रोड ही है। एलिवेटेड रोड के जो अन्य विकल्प सुझाये गये हैं वे तकनीकी और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर व्यावहारिक नहीं हैं। दूसरा, उनके लिए कुछ निजी और सरकारी भवनों का अधिग्रहण कर तोड़कर हटाना होगा जबकि आरयूआइडीपी की सुझाई एलिवेटेड रोड में एक भी भवन का एक इंच भी नहीं टूटना है।
रही बात निर्माण के दौरान व्यापारियों को होने वाली असुविधा की तो अब निर्माण हेतु इतने एडवांस साधन लिए हैं कि आस-पड़ोस को कोई खास दिक्कत नहीं होती। खम्भे ढालने के काम के लिए बीच सड़क पर बारह फीट एरिया को दोनों तरफ से बन्द करके गलियारा बनाया जा सकता है और इस शर्त पर ठेका दिया जा सकता है कि मिक्सचर प्लांट कहीं दूर लगे और काम रात आठ बजे से सुबह आठ बजे के बीच ही हो। इस तरह इस अस्थाई गलियारे के दोनों तरफ बारह से पन्द्रह फीट का रास्ता भी सामान्य आवागमन के लिए निर्माण के दौरान चालू रहेगा।
पिलर ढलाई के बाद जिन प्रि-स्ट्रेस गर्डर पर सड़क बनेगी, ये गर्डर यदि आरसीसी के ढलने हैं तो शहर से बाहर ढलेंगे अन्यथा प्रोजेक्ट में परिवर्तन कर इन गर्डरों को स्टील का बनवाया जा सकता है और इन गर्डरों को भी रात्रि में ही फिट किया जा सकता है। ऐसे में दो-ढाई वर्ष थोड़ी बहुत दिक्कत होनी है तो बाद में इसका सुख भी भोगेंगे।
एलिवेटेड रोड की आरयूआइडीपी योजना में थोड़ा परिवर्तन करके बजाय मोहता रसायनशाला तक ले जाने के, ग्रीन होटल के आगे इसे उतारा जा सकता है, इससे एक सुविधा यह होगी कि इससे गंगाशहर से जेलवेल होकर आने वाले यातायात को एलिवेटेड रोड की सुविधा बिना बाधा के हासिल हो जायेगी।
जरूरत अब रेल बाइपास और एलिवेटेड रोडइन दोनों में से किसी एक पर एकराय बनाने की है ताकि साथ में खड़े होकर एक सुर में कोई निर्णय करवा सकें। समाधान का खर्चा राज्य सरकार को ही उठाना है। ऐसे में रेलवे का कोई खास लेना देना आर्थिक तौर पर नहीं है। जो निर्माण पर खर्च रेलवे को करना है उसका भुगतान भी राज्य सरकार रेलवे को करेगी ही।

18 अगस्त 2015

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