Wednesday, March 4, 2015

बीकानेर को ठन-ठन 'गोपाल' : 'सिद्धि' भी 'अर्जुन' नहीं

कोलायत विधायक, भंवरसिंह भाटी विधानसभा में जब-तब जनहित या कहें क्षेत्रहित के मुद्दे उठाते रहे हैं। हाल में हुई वर्षा से किसानों को हुए नुकसान के मुआवजे का मुद्दा कल ही उन्होंने उठाया। बीकानेर के कृषि विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने की पैरवी परसों उन्होंने पूरी तैयारी और तथ्यों के साथ की थी। पता नहीं उन्हें यह भनक थी या नहीं लेकिन राजस्थान पत्रिका के दूसरे पृष्ठ पर आज यह खबर लगी है कि केन्द्रीय विश्वविद्यालय के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने और अपने बेटे के इलाके की जमीनें चिह्नित कर केन्द्र सरकार को सूचित कर दिया है। वसुंधरा राजे और दुष्यंत सिंह अपने चुनाव क्षेत्रों के लिए कुछ करें तो इन पर किन्हें एतराज हो सकता है, आखिर यह उनका धर्म भी है। लेकिन ऐसे निर्णय करते समय मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे व्यक्तित्व को पूरे प्रदेश पर विहंगम दृष्टि जरूर डालनी चाहिए कि कोई अन्य क्षेत्र अपनी उपेक्षा से कराह तो नहीं रहा है।
बीकानेर क्षेत्र अपनी जायज अपेक्षाओं के मामले में हमेशा उपेक्षित रहा है, सूबे के और इलाके भी रहें होंगे। बात अपने क्षेत्र की ही करेंगे। आजादी बाद से इस क्षेत्र को जो भी हासिल हुआ वह आखिरी नम्बर पर ही हुआ यानी जब सरकारों को लगने लगता कि अब कुछ नहीं किया तो अति हो जायेगी। इसके उदाहरण दसियों हो सकते हैं और जब-तब गिनाए भी जाते रहे हैं। पुरानी बातों को छोड़ भी दें तो पिछले वर्ष जून में 'सरकार हमारे द्वार' आयी थीं-जिसके तहत मुख्यमंत्री बीकानेर संभाग में लगभग एक पखवाड़ा रहीं। खूब बातें हुई, बात में उम्मीदों की बुनाई भी थी। केन्द्र के मंत्रियों के साथ नाल हवाई अड्डे का सिविल टर्मिनल उद्घाटित हुआ, जो तब से धूल ही फांक रहा है। वसुंधरा राजे को जो फीडबैक मिला उसमें शहर की सबसे बड़ी कोटगेट-सांखला रेल फाटक समस्या, अंदरूनी शहर में सीवर व्यवस्था की योजना को पुन: बनाना, सूरसागर का कोई व्यावहारिक उपयोगी हल, सिरेमिक हब, मेगा फूडपार्क, तकनीकी विश्वविद्यालय को अमली जामा पहनाना और केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय जैसे मुद्दे शामिल थे। इन सभी पर मीडिया ने जिस तरह सुर्खियां दीं उससे जिले के बाशिन्दे तब दिवास्वप्न अवस्था में पहुंच गये और लगने लगा कि यह सब अब तो हुआ ही समझो। लेकिन आज हम वैसी जाग से उठे महसूस कर रहे हैं, जैसे किसी ने टंगड़ी मार कर उठाया हो।
शहर या कहें क्षेत्र का दुर्भाग्य ही है कि जिन्हें जिताकर भेजते हैं वह या तो अकर्मण्य साबित होते हैं या वे केवल अपने या अपनों के हितों को साधने में लग जाते हैं-उन्हें इस क्षेत्र से मतलब होता है और ही अपने चुनाव क्षेत्र से। अन्यथा गोपाल जोशी, सिद्धीकुमारी के रहते उन्हीं की पार्टी के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया पिछली विधानसभा के आखिरी दिन तकनीकी विश्वविद्यालय के विधेयक का विरोध नहीं करते और पैंतीस साल से यह शहर जिन बीडी कल्ला को ढो रहा है, वे यदि इस पर सावचेत रहते तो इस विधेयक को पहले ही रखवा के पारित करवा लिया जाता। कल्ला इतनी हैसियत तो पार्टी में बना ही चुके हैं कि अपनी सरकार के रहते क्षेत्र के किसी सार्वजनिक काम के लिए अड़ सकते। भंवरसिंह भाटी अब जिस तरह मुद्दे उठा रहे हैं, याद करके बताएं कि इस तरह मगरे के शेर देवीसिंह ने कभी उठाएं हैं क्या? वे भी अपनी पार्टी में कल्ला जैसी ही हैसियत पा चुके हैं। हां, उन्होंने यहां के विकास में बाधा बन धरने जरूर दिए। यह अलग बात है कि इन धरनों में छिपा उनका राग अपने निज हित का था या अपनों के हित का।
पत्रिका के आज के 'समाचार' में बीकानेर (पश्चिम) की विधायक सिद्धीकुमारी के बयान का पुछल्ला भी जुड़ा है। जिसमें उनसे कहलवाया गया है कि वे केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के मामले का पूरा अध्ययन कर मुख्यमंत्री से बात करेंगी। अध्ययन वे कितना करेंगी इसकी तो वे खुद जानें, मुख्यमंत्री से वे बात करेंगी इसमें जरूर संशय है। जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री के सामने हमारी विधायक सिद्धीकुमारी की घिग्घी बंध जाती है। ऐसे में वह कितनी बात कर पायेंगी  वह भी तब जब मामला दुष्यन्तसिंह के संसदीय क्षेत्र से जुड़ा हो? मामला केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय का है, अत: हमारे अड़वौ सांसद अर्जुनराम मेघवाल का भी कोई धर्म बनता है। देखते हैं उनका बल जागता है कि नहीं। बीकानेर के मतदाताओं को अब भी समझ लेना चाहिए कि उन्हें किस तरह के लोगों को चुन कर भेजना चाहिए। नहीं समझेंगे तो भुगतेंगे ही !

4 फरवरी, 2015

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