Friday, March 13, 2015

धरती को मां भले न मानें, इसे नोचना तो छोड़ दें

हमारी संस्कृति में धरती को मां और परम्परा में इसे श्रद्धेय माना गया है। कुछ लोग आज भी जब सोकर उठते हैं तो जमीन पर पैर रखने से पूर्व छूकर नमन करते हैं और पैर रखने की मजबूरी जताकर क्षमा भी मांगते हैं। आदिग्रंथ माने जाने वाले वेदों में जिन देवताओं का मुख्यत: जिक्र आता है वे सभी प्रकृति रूप ही हैं, यथा-सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी। पृथ्वी को मां और आकाश को पिता माना गया। आजकल के पौराणिक देवताओं में से कइयों का उल्लेख वेदों में नहीं मिलता। धीरे-धीरे आस्था के आयाम बदलते गये और प्रकृति की जगह पौराणिक देवी-देवता आस्था के केन्द्र हो गये। भक्तिकाल में कई क्षेत्रों में लोक देवताओं का प्रादुर्भाव हुआ, वे अपने-अपने इलाकों में आज भी पूजनीय हैं। इस युग की बात करें तो मोहनदास कर्मचन्द गांधी ने धरती का हवाला इस रूप में दिया है- 'यह सबकी जरूरतें पूरी कर सकती है, पर लालच किसी एक का भी नहीं'
पिछले कुछ वर्षों से खनन घोटाले, जमीन घोटाले, अवैध खनन, भू-माफियाओं द्वारा अवैध निर्माण जैसे शब्द ज्यादा पढ़े-सुने जाने लगे तो यह ध्यान आया कि यह सब इस धरती के साथ हो रहा जिसे हम श्रद्धेय, पूजनीय या मां मानते रहे हैं। कोई भी सरकार हो, चाहे वह केन्द्र की हो या किसी प्रदेश-विशेष की और यह भी कि वह चाहे किसी भी दल की क्यों हो, ये सब अधिकृत-अनधिकृत तौर पर इसी धरती को नोचने और नुचवाने में लगे हैं।
ऊपर की बात करें तो भले माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को इसलिए आरोपी ठहराया गया है कि उन्होंने कोयला क्षेत्र की खानों के आवंटन में गड़बडिय़ा होने दीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में रहते अपनों को जमीनें कोडिय़ों के भाव में दिलवाते रहे हैं। केन्द्र में आते ही उनके पर्यावरण मंत्री ने लगभग तीन सौ ऐसी फाइलों पर इजाजत दे दी जिनसे धरती के चीरहरण की आशंका है।
राजस्थान की बात करें तो वसुन्धरा सरकार ने जहां कल उन भवन निर्माण परियोजनाओं को निरस्त कर दिया जिनकी इजाजत पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने दी थी। वहीं समाचार यह भी है कि इसी वसुंधरा सरकार ने नई खनन नीति आने की आहट में चार बड़ी कंपनियों को खनन क्षेत्र आवंटित कर दिए जो नई नीति के तहत संभव नहीं होता। राजस्थान ही क्यों पूरे देश से और खनन माफियाओं का चरागाह बने कर्नाटक से आए दिन ऐसी खबरें आती ही रहती हैं कि जिसका जितना और जहां बल पड़ता है वह इस धरती को नोचने में लग जाता है।
बीकानेर में भी कोलायत का क्षेत्र मगरा इसलिए कहलाता था कि यह लम्बा-चौड़ा सपाटी मैदान है, छुटपुट रेगिस्तानी वनस्पतियों के ऊपर से होते नजरों को दूर क्षितिज तक पहुंचने में कुछ समय लगता था। पिछले तीसे' वर्षों से इस इलाके में बढ़े वैध-अवैध खनन ने पूरे इलाके को कुरूप बना दिया है। अब जगह-जगह गहरे खड्डे हैं तो उनके आसपास मानव निर्मित वेस्टेज के टीले खड़े हैं। खनन की इस मिट्टी को शहरी जरूरत की पीओपी में तबदील करने में लगे कारखानों को जलावन की आपूर्ति इसी क्षेत्र के खेजड़ी तथा अन्य रेगिस्तानी पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर की जा रही है। इन पर अंकुश के लिए बने खनन, वन, कारखाना जैसे सरकारी विभाग अपनी हिस्सा-पांती को ही धर्म इसलिए मानने लग गये कि अधिकांश नेताओं और जनप्रतिनिधियों के आर्थिक हित भी इन्हीं अवैध कामों से जुड़े हैं।
पिछले वर्षों में बीकानेर का नाम भी राष्ट्रीय मीडिया में आया तो जमीनों को लेकर ही! कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया के दामाद रोबर्ट वाड्रा की कंपनियों ने इस क्षेत्र की जमीनों के सौदे ओने-पोने दामों में किए। कहते हैं इस 'बहती गंगा' में हाथ उन स्थानीय भाजपाइयों और कांग्रेसियों ने भी धोये जिन्होंने भू-माफिया का पेशा अपना रखा है।
कहते हैं ऐसी डीलों में सहयोगी रहे जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक हबीब गौराण ने अपने हाथ भी रंग लिए थे वह रंग अब उतरने लगा है। कहा जा रहा है कि उनके करतूती सहयोग के बदले ही उन्हें राज्य लोक सेवा आयोग का सदस्य और फिर उसका अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन कहा जाता है ना कि व्यक्ति का स्वभाव और हेकड़ी व्यक्ति को ले डूबती है, गौराण के साथ भी वही हुआ। हेरा-फेरी के स्वभाव के चलते बेटी को जज तो बनवा लिया लेकिन खुद हवालात की हवा खाने की दहलीज पर खड़े हैं।
अब भी मौका है इस धरती को उचित मान देने का कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा से लेकर हबीब खान गौराण का हश्र देख राजनेताओं और अधिकारियों दोनों को समझ लेना चाहिए कि जो ऐसे-ऐसे कुकर्मों में लगे हैं और जिनकी गिनती इन दोनों श्रेणियों में नहीं होती उन्हें भी ये राज-समर्थ अपने बचाव में बलि का बकरा बनाते देर नहीं लगाएंगे। ऐसा होता हम आए दिन देखते ही हैं।

13 मार्च, 2015

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