Monday, March 16, 2015

अपने नहीं, पार्टी के इलाज में लगे थे केजरीवाल!

देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से ऊब की उपज आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल बेंगलुरु में दस दिन की प्राकृतिक चिकित्सा करवाने के बाद आज नई दिल्ली लौट रहे हैं। कहने को वे अपनी खांसी, सांस की तकलीफ और बेकाबू शर्करा के इलाज के लिए गये थे लेकिन लग रहा है माजरा दूसरा ही है।
चार मार्च की जिस दोपहर अरविन्द को बेंगलुरु रवाना होना था उसी दिन पार्टी के राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक हुई जिसके मुख्य ऐजेन्डे में पार्टी के उद्देश्यों को ज्यादा गंभीरता से लेने वाले योगेन्द्र यादव और प्रशान्त भूषण को उक्त समिति से बाहर करके यह सूचना देना था कि अगली कार्यवाही इन्हें पार्टी से बाहर करने की होगी। कहते हैं उस दिन केजरीवाल रिमोट के द्वारा होमियोपैथी शैली में पार्टी का इलाज करने में जुटे रहे और देर रात बेंगलुरु के लिए निकले।
अरविन्द द्वारा उस दिन होमियोपैथ शैली में पार्टी को दी दवा की पोटेंसी इतनी अधिक हो गई कि जब दस दिन तक वे प्राकृतिक चिकित्सा ले रहे थे, वह दवा लगातार ऐग्रेवेट होती रही यानी स्टिंगों और असंतोष के रूप में बार-बार फूटती रही। वहीं जिस सोशल मीडिया से आम आदमी पार्टी परवान चढ़ी उसी में केजरीवाल गिरोह की इतनी छिछालेदर हुई कि सफाई देने आये आशीष खेतान जैसे चतुर माने जाने वाले पार्टी प्रवक्ता भी दो दिन में मैदान छोड़ भागे।
मनीष सिसोदिया, आशुतोष, संजयसिंह, गोपाल पाण्डे जैसे लोग केवल नियन्ता हो लिए हैं बल्कि दादुर वक्ता के रूप में बेनकाब भी होने लगे। पार्टी को संशय में डालने वाली यह बिसात किसकी खुराफात थी यह तो स्पष्ट नहीं है लेकिन अरविन्द केजरीवाल इस बिसात पर मुग्ध हो गये तभी सब कुछ को अंजाम दिया जाने दिया।
आम आदमी पार्टी की पालकी पर सवार कर दिए गये अरविन्द केजरीवाल की स्थिति बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती, समाजवादी पार्टी के मुलायमसिंह और द्रविड़ मुनेत्र कषगम के एम. करुणानिधि जैसी बीच में झूलती दिखाई देने लगी है। ऊपर जिन सिसोदिया, आशुतोष पाण्डे, संजयसिंह और खेतान जैसों के नाम आए हैं लगता है उन्होंने केजरीवाल की पालकी के 'कहारों' की भूमिका चुन ली है। इन सबकी बातों और कार्यशैली से लगता भी है कि इससे ज्यादा की क्षमता उनमें है भी नहीं।
दिल्ली प्रदेश जैसे पंगु शासन की बागडोर वहां की जनता ने 'बहुत बड़ी उम्मीदों' से ऐसों को सौंप तो दी लेकिन लगता नहीं है कि ये 'डगमग' लोग इस पंगु शासन को हांक भी पाएंगे। दिल्ली का शासन चल तभी पाता है, जब केन्द्र की सरकार उनकी बैसाखियों को सहारा दे। आम आदमी पार्टी की प्रतिकूलता यह भी है कि उन्हें नरेन्द्र मोदी जैसे काइंया प्रधानमंत्री और राजनाथसिंह जैसे उन के हाजरिया गृहमंत्री के समय जनता ने शासन सौंपा है। फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पार्टी भीतरी असंतोष का इलाज 'ऐग्रेवेटÓ होने के बावजूद इतना कुछ तो कर पाएगी कि जनता इतनी भी निराश हो कि वह वापस भाजपा जैसे कुएं और कांग्रेस जैसे खड्ड में गिरने को मजबूर हो।
स्वस्थ होकर आज लौट रहे अरविन्द केजरीवाल से उम्मीद तो यह की जाती है कि पिछले ग्यारह दिनों के डेमैज को कन्ट्रोल करेंगे। लेकिन उन्होंने यह सब होने दिया इसी से उम्मीदें टूटती लगती हैं कि कुछ खास नहीं कर पाएंगे। शायद यह भी हो कि वे कुछ करना भी चाहें। यदि ऐसा ही होता है तो मान लेना चाहिए कि यह पार्टी भी कांग्रेस और भारतीय जनता पाटी की गत को प्राप्त करने में ज्यादा देर नहीं लगाएगी।

17 मार्च, 2015

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