Friday, February 20, 2015

रेल बाइपास : झक है या मचले लाल का खिलौना !

बीकानेर शहर के सन्दर्भ से बात करें तो आज सुबह के अखबारों में एक निराशाजनक समाचार पढऩे को मिला। बीकानेर मण्डल की रेल प्रबन्धक मंजू गुप्ता का स्थानान्तरण हो गया है। इस समाचार को निराशाजनक इसलिए कहा क्योंकि इसी पन्द्रह फरवरी को एडिटर्स क्लब के उन्मुखी कार्यक्रम में कोटगेट और सांखला रेल फाटक समस्याओं के एक आंशिक समाधान पर सकारात्मक रुख दिखाते हुए उन्होंने आश्वस्त किया था कि इसे वे यथासंभव जल्द क्रियान्वित करेंगी। यह आंशिक समाधान था सांखला फाटक पर कोयला गली की ओर एक और बेरियर लगाना। यह बेरियर लगने से कोयला गली से नागरी भण्डार की ओर जाने वाले एकतरफा यातायात को सांखला फाटक पर आकर उलझना नहीं पड़ता। नये अधिकारी की प्राथमिकताओं में यह होगा कि नहीं, कह नहीं सकते। क्योंकि इन पदों पर आने वाले अधिकांश अधिकारी अपने कामों से काम रखते हैं और जन जुड़ाव से बचते हैं।
इस आंशिक समाधान का उल्लेख राजस्थान पत्रिका के पन्ने पलटने पर इसलिए भी जरूरी लगा कि पत्रिका ने आज इस समस्या पर जो एक पूरा पृष्ठ दिया है, उससे यही निकलकर आया कि इस समस्या के समाधान का जिन पर दारमदार है, उनमें अधिकांश के सुझाएसमाधानों में बाइपास बनाना अब भी है। ऐसे में पहले सियारामशरण गुप्त की कविता पंक्ति 'मैं तो वही खिलौना लूंगा मचल गया दीना का लाल' याद आयी, फिर लोक में प्रचलित 'झक झालने की' कैबत।
रेलवे पहले भी बाइपास को अव्यावहारिक बता चुका है। उनके इनकार में तार्किकता भी है, इसी पन्द्रह को मंजू गुप्ता ने उक्त कार्यक्रम में फिर साफ किया कि इन फाटकों से उपजी समस्या का जिम्मा रेलवे का नहीं है। उन्होंने खोलकर बताया कि रेलवे की जिम्मेदारी इतनी बनती है कि उसकी गाडिय़ां बिना बाधा के गुजर जाएं, रेल फाटक जैसे प्रावधान रेलवे इसीलिए करता है। इन फाटकों से कोई समस्या है तो उनके समाधान का उत्तरदायित्व नागरिक शासन-प्रशासन का है। इसके लिए समाधान ओवरब्रिज, अण्डरब्रिज के अलावा एलिवेटेड रोड भी हो सकता है। आज के पत्रिका पृष्ठ संयोजन में भी कमोबेश ऐसी ही बात उन्होंने अपने कथन में दोहराई।
पैंतीस साल से शहर की राजनीति भोग रहे डॉ. बी.डी. कल्ला के बाइपासी बयान से कोई आश्चर्य नहीं हुआ। वैसे भी उन्होंने अपने और अपनों के अलावा इस शहर की चिन्ता कब की और अब भी उनके द्वारा बाइपास की झक को पकड़े रखने को दीना के लाल का मचलना कहें या असलियत से अनभिज्ञता या फिर इस राग के भीतर छीपा कोई अन्य राग। लगातार दो चुनाव हार कर वे लगभग राजनीति के हाशिए पर हैं। ऐसी बात करने के मानी यही है कि उन्हें इस शहर की समस्याओं से लेना देना अब भी नहीं है।
रही बात सांसद अर्जुनराम मेघवाल की तो उनके लगभग छह साल के कार्यकाल से लगता है कि उन्होंने अपना राजनीतिक गुरु बी.डी. कल्ला को मान रखा है और वैसी ही राजनीति वे करते हैं। अपने क्षेत्र की खैर-ख्वाही जितनी कल्ला की रही कमोबेश वैसी ही मेघवाल की रही है। अन्यथा अपने क्षेत्र के लिए उन्होंने कुछ उल्लेखनीय किया हो तो बताएं। मेघवाल के बयान को लीपापोती से ज्यादा नहीं माना जा सकता है। या यह कहें कि इस समस्या की विकरालता का उन्हें भान ही नहीं है।
स्थानीय विधायक गोपाल जोशी के कहे का विश्लेषण करें तो कहा जा सकता है कि याद पड़ता है और किसी से सुना कि अपनी दुकान में तई पर बैठ सिकोरा पकड़ इन्होंने कभी जलेबियां बनाई हो, लेकिन आज छपा उनका बयान जलेबी से कम नहीं। पाठक चाहें तो उनके बयान को पढ़कर इसकी पुष्टि कर सकते हैं। वैसे जोशी जो कभी बाइपास की बात करते-करते बीच में अण्डरब्रिज की बात करने लगे थेऔर अभी कुछ माह पूर्व उनका यह भी बयान आया कि कोटगेट और सांखला फाटकों का व्यावहारिक समाधान एलिवेटेड रोड ही है। आज अचानक क्या हुआ कि शहर की इस जरूरी समाधान खोजती समस्या पर वे गुलांचियां खाने लगे।
एलिवेटेड रोड पर पत्रिका स्वयं भी भ्रमित कर रही है।  2007-08 की अपनी फाइलें टटोलते तो योजना को वे पुख्ता तौर पर रख सकते थे। तब पत्रिका ने इस समाधान की योजना को विस्तारपूर्वक समझाया था। तब की आरयूआइडीपी की इस योजना में एलिवेटेड रोड महात्मा गांधी रोड स्थित लक्ष्मीनारायण मन्दिर से शुरू होकर फड़बाजार चौराहे पर आकर घूमती और सांखला फाटक के ऊपर से गुजर कर नागरी भण्डार के आगे दो भागों में बंटनी थी। उसकी एक शाखा मोहता रसायनशाला के आगे समाप्त होती और दूसरी राजीव गांधी मार्ग पर जाकर। यह एक ऐसी योजना है जिसमें किसी का कुछ टूटता और भंगता और समाधान भी चोखा! शहर के वर्तमान हलर-फलरियों की बातों से अब यह आशंका बलवती हो चली है कि इस समस्या को कम से कम बीस साल तो और भुगतना ही होगा! नई पीढ़ी आयेगी और सामूहिक विवेक से कोई निर्णय लेगी तभी कुछ होना जाना है। तब तक चाहें तो आंशिक समाधान के तौर पर सांखला फाटक के पास कोयला गली में अतिरिक्त बेरियर लगवाया जा सकता है ताकि यातायात का उलझाड़ कुछ तो कम हो। जैसा कि ऊपर बताया गया कि मण्डल रेल प्रबन्ध मंजू गुप्ता इस पर सकारात्मक रुख जता चुकी हैं।

20 फरवरी, 2015

No comments: