pk फिल्म की बात शुरू करने से पहले यह बताना जरूरी है कि यह फिल्म वर्तमान हिन्दी सिनेमा के शो-मैन विधु विनोदा चौपड़ा और राजकुमार हिरानी की फिल्म है जिनकी पहचान लोकप्रिय सिनेमा के दक्ष फिल्मकारों के रूप में है और यह भी कि ये दोनों ही जन्मना हिन्दू हैं। अभिजात जोशी, आमिर खान और अनुष्का शर्मा की हैसियत चौपड़ा-हिरानी की पूर्ववर्ती फिल्मों के चेतन भगत, संजय दत्त, करीना कपूर, विद्या बालन की तरह दक्ष 'औजारों' से ज्यादा नहीं है। फिल्मों से उगाही का एक माध्यम चूंकि अब सेलिब्रिटि का नाम हो गया है सो प्रचार-प्रसार के लिए इस फिल्म को भी आमिर खान की बताया गया।
इस पूर्व-पीठिका के साथ इस फिल्म पर बात कर लेते हैं। शुरुआत फिल्म के अन्त से करें जिसमें नायक आमिर खान यानी 'पीके' दूसरे ग्रह के प्राणी के रूप में अपनी अगली पीढ़ी के साथ उडऩतश्तरी से दुबारा पृथ्वी पर उतरने के बाद जो पहली चार हिदायतें देता है वह हमारी इस मानव सभ्यता का आईना है।
पहली हिदायत में 'पीके' अगली पीढ़ी के रणबीर कपूर को बताता है कि यहां नंगा घूमना मना है। लड़ाई-झगड़ा यहां भले ही खुले-धाड़े होता हो पर प्रेम छुपकर ही किया जा सकता है।
दूसरी हिदायत में बताया कि यहां भाषा को लेकर भ्रम बहुत हैं। बोले गये शब्दों का असल भावार्थ जानने के लिए बोलने वाले का चेहरा पढ़ना भी जरूरी है अन्यथा सम्प्रेषण अनर्थकारी हो सकता है।
तीसरी हिदायत वैसे तो खुल कर नहीं बताई गई है, लेकिन जिस तरह बतायी गयी है वैसे में उन प्रत्येक को सम्प्रेषित हो जाती है जिन्हें निदेशक बताना चाह रहा है। इससे ज्यादा खोल कर बताया जाता तो फिल्म को 'ए' सर्टिफिकेट मिल जाता। फिल्मकार इसके माध्यम से सम्प्रेषित यही करना चाहता है कि हम सभ्य और आधुनिक होने के चरम पर चाहे पहुंच गये हों लेकिन स्त्री और पुरुष दोनों ही एक-दूसरे की देह की पहेली आज तक नहीं सुलझा पाए हैं। पुरुष ने स्त्री की और स्त्री ने पुरुष की देह अबूझ बना रखी है। व्याभिचार, बलात्कार व दैहिक शोषण इसी अबूझ पहेली की परिणतियां हैं।
चौथी और अन्तिम हिदायत पर गौर करने की फिलहाल सबसे ज्यादा जरूरत है—पीके अगली पीढ़ी से कहता है कि कोई भी यह कहे वह भगवान से सम्पर्क करवा सकता है तो तुरन्त यू-टर्न ले लेना यानी घूम कर भाग लेना, सर्वाधिक झमेला इसी में है।
फिल्म की मूल थीम भी धार्मिक पाखण्डों के इर्द-गिर्द घूमती है। अत: इस चौथी हिदायत का आना लाजिमी था और फिल्म को लेकर विवाद भी तथाकथित हिन्दुओं द्वारा इसीलिए पैदा किया गया। विवादास्पद इसमें इतना ही है कि इस फिल्म को जिस सेलिब्रिटि के नाम से प्रचारित किया गया वह आमिर खान मुसलमान हैं और निदेशक और पटकथाकार ने जिन पाखण्डों के इर्द-गिर्द इस फिल्म की बुनावट की उनमें से अधिकांश पाखंड हिन्दू धर्म से सम्बन्धित हैं। हो सकता है आमिर की जगह अक्षयकुमार या संजय दत्त इस भूमिका में होते तो उन्हें विवाद खड़े करने का बहाना न मिलता। फिल्मकारों की भी मजबूरी हो सकती है कि नायक का जैसा चरित्र उन्हें घड़ना था उसके लिए सटीक आमिर खान ही हो। विरोध का झण्डा जिन्होंने प्रभावी तरीके से उठाया वह आर्य समाजी संन्यासी और योग-धंधी रामदेव हैं। अचम्भे की बात यह है कि रामदेव उन दयानन्द सरस्वती की चलाई संन्यास परम्परा से हैं जिन्होंने ऐसे पाखण्डों की भर्त्सना निर्ममता से की थी।
पांच-छह शताब्दी पूर्व इसी देश में कबीर भी हुए हैं जो जन्मना मुसलमान थे और जिन्होंने धार्मिक पाखण्डों को मनुष्यता में बाधक बताया। वे अपने जन्मना सम्प्रदाय से ज्यादा हिन्दुओं में स्वीकार्य हुए, उनके नाम से हिन्दुओं में समृद्ध निर्गुण भक्ति धारा चली जो जैसी-तैसी आज भी कायम है।
समाज 'सभ्य' और आधुनिक होने के साथ-साथ क्या असहिष्णु और अतार्किक होता जाता है? इस फिल्म का विरोध जिस तरह से हो रहा है उससे तो यही लगता है। 'पीके' औसत से ऊपर की एक मनोरंजक फिल्म है, समय निकाल सकें तो इसे इसी रूप में देखना चाहिए। हालांकि इस देश में देखा यही गया है कि जिसे वर्जित किया जाय या जिसका विरोध हो उसके प्रति उत्सुकता बढ़ जाती है। इसी मन:स्थिति का आर्थिक लाभ इस फिल्म को भी हो ही रहा है।
रही बात ऐसी फिल्मों से कुछ सीख लेने की तो हम चाहे किसी प्रवचन को सुनकर निकलते हों या सिनेमाहॉल से—दिमाग को झाड़-पोंछकर निकलना हमारी फितरत में है। पाखण्डों का खण्डन करने वाली न तो यह पहली फिल्म है और न ही अच्छी बातों की सीख देने वाले प्रवचनकारों की कोई कमी है। बावजूद इस सब के हम अपने समाज में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं देखते.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई के दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व संघी से धर्मगुरु बने रविशंकर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन से शुरू इस फिल्म की लगता है रिलीज टाइमिंग गलत हो गई, चूंकि हाल ही में फुस हुए संघ परिवार के 'लव जिहाद' मुद्दे को इस फिल्म में खारिज किया गया है सम्भवत: विरोध करने वालों को यही नहीं झल रहा।
चार सौ करोड़ मील दूर स्थित ग्रह से आये बताये गये उस अनजान प्राणी का नाम उसकीअजनबीपन की हरकतों को शराब पीने के बाद की हरकतों से जोड़ कर 'पीके' दे दिया गया। जबकि उसे पीने की आदत से दूर बताया गया है। इस फिल्म को दुराग्रह दृष्टि से देखने वालों से आग्रह है कि इसे पूर्वाग्रहों को बिना पिए ही देखें।
1 जनवरी, 2015
4 comments:
aaj ke samay m bikaner m deep chand ji patarkarita ko naya aayam de rahe h salam deepjin aapko
:-)
बहुत सधी हुई और संतुलित समीक्षा के लिए आपका आभार! लेकिन ग़ालिब फिर भी प्रासंगिक हैं: या रब ना वो समझे हैं.....
सही
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