Wednesday, January 28, 2015

संघ और उसके अनुषंगियों को आईना दिखा ही गये बराक ओबामा

प्रधानमंत्री मोदी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तित्व से बेहद आतंकित हैं। मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब ऐसा आभास नहीं हुआ लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद से ऐसा लगने लगा था, जिसकी पुष्टि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की हाल की यात्रा के दौरान हो गई।
नेहरू बहुत रईस घराने से थे लेकिन मोहनदास कर्मचन्द गांधी की संगत में उन्होंने साफ-सुथरी सादगी को अपना लिया था जिसे उन्होंने अन्त तक अपनाए रखा। नेहरू के बारे में किंवदन्ती के रूप में प्रचलित है कि उनकी पोशाक फ्रांस के पेरिस से ड्राइक्लीन होकर आती थी। इस बात की पुष्टि आज तक भले ही हो पायी हो लेकिन, सुना जाता है कि नेहरू की ऐसी किंवदन्तियों से आतंकित हमारे नरेन्द्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से अपनी किसी पोशाक को शायद ही दूसरी-तीसरी बार पहनते हैं। यही नहीं, बराक ओबामा से सोमवार को जब वे हैदराबाद हाउस मिलने गये तब जो सूट इन्होंने पहना, इसका कपड़ा विशेष तौर से विदेश से बनकर आया जिसकी धारियां रोमन में लिखे उनके नाम 'नरेन्द्र दामोदरदास मोदी' से बनी थीं।
सोशल साइट्स पर परसों से ही इस पर तरह-तरह की पोस्टें रही हैं लेकिन, तीन से साढ़े नौ लाख रुपये तक की कीमत के बताए जाने वाले इस सूट की असली कीमत की पुष्टि आज के अखबारों में छपी सम्बन्धित खबर से भी नहीं पायी है।
मोदी अपने स्वांग भरते वक्त शायद यह भूल जाते हैं कि आम-अवाम को कैसे-कैसे सपने दिखाकर वे सत्ता में आए हैं। उन्होंने जो पांच मुख्य वादे किये वे सब अभी तक केवल धरे हैं बल्कि उन्हें पूरा करने की कोई कवायद भी नजर नहीं रही। महंगाई, कालाधन और भ्रष्टाचार के अलावा सीमा पर चीन और पाकिस्तान की हरकतें छप्पन इंचीय सीने के बावजूद जारी रही हैं। जबकि पैंतीस-छत्तीस इंच के सीने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आने से पहले उनके यहां रहने तक कोई हरकत करने के लिए पाकिस्तान को डपटा था। उसकी समय सीमा पूरी होने की मुनादी पाकिस्तान के कारिन्दों ने कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल इलाके में कल बराक के एयरफोर्स-वन हवाई जहाज पर पांव रखते ही कर दी। इस मुनादी में हमारे शहीद हुए दो में से एक वे कर्नल एम.एन. राय भी शामिल थे जिन्हें चौबीस घण्टे पहले ही बराक ओबामा की उपस्थिति में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने वीरता के लिए युद्ध सेवा मेडल देकर सम्मानित किया था।
तीन दिन की यात्रा के बाद बराक भारत को क्या ले-दे गये हैं इसका मोटामोट जिक्र कल इसी कालम में कर दिया था- हालांकि 2002 से 2014 तक अमेरिकी वीजा मिलने की पीड़ा मोदी अपने हावभाव में नहीं छुपा पा रहे थे। इसका एक उदाहरण तो यही है कि अन्दर घुसू चेष्टा में पूरी यात्रा के दौरान वे अमेरिकी राष्ट्रपति को बराक कहकर सम्बोधित करते रहे जबकि बराक उन्हें मि. प्राइम मिनिस्टर के सम्बोधन से ये सन्देश लगातार देते लग रहे थे कि अपनी मर्यादा में रहें।
ऐसा नहीं है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका गुजरात के 2002 के दंगों को भूल गया हो। मोदी को वीजा देना और संवाद कायम करना मात्र कूटनीतिक शिष्टाचारों का निर्वहन है। इसकी पुष्टि बराक ओबामा ने जाते-जाते अपने अन्तिम उद्बोधन में कर दी। सिरीफोर्ट प्रेक्षागृह में संबोधन का विश्लेषण करें तो साफ जाहिर है कि भारत में राज करने वाली भारतीय जनता पार्टी, उसकी पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसके अनुषंगी संगठनों और खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करतूतों से वे भलीभांति वाकिफ हैं।
बराक बहुत चतुराई से पूरी संघ जमात को आईना दिखा गये कि इस देश में आप जो करने की मंशा रखते हैं उससे विकास संभव नहीं है। गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए मिलजुल कर रहेंगे तभी तरक्की संभव है। उन्होंने देश में प्रचलित चार मुख्य धर्मावलम्बियों के नायकों यथा हिन्दू कैलाश सत्यार्थी, मुस्लिम शाहरुख खान, सिख मिलखासिंह और ईसाई मैरीकॉम का सांकेतिक उल्लेख कर सीख भी दे गये हैं कि सामूहिक तरक्की की सोच ही सर्व स्वीकार्य है। समझदार के लिए इशारा काफी होता है और जो समझने की ठान बैठें हों उन्हें कैसे भी नहीं समझाया जा सकता।

28 जनवरी, 2015

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