Thursday, November 27, 2014

मोदीजी ! यूं तो घर भी नहीं चलते हैं

काठमांडू, नेपाल में चल रहे सार्क शिखर सम्मेलन का एक फोटो कल से सोशल साइट्स पर और आज के अखबारों में काफी सुर्खियां पाए हुए हैं। दक्षिण एशियाई आठ देशों के मुखिया कल जब इस सम्मेलन के मंचासीन थे तब भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों में दूरी साफ दिख रही थी। यहां तक कि राजनय की सामान्य औपचारिकता भी नदारद थी। जो फोटो प्रचारित हुए हैं उनमें नवाज शरीफ जब अपने उद्बोधन के लिए मोदी के पीछे से होकर पोडियम की ओर जा रहे थे तब मोदी किसी पत्रिका में मुंह गड़ाए बैठे रहे और जब शरीफ लौटे तब भी उनका रुख ऐसा ही था।
यद्यपि मुम्बई हमले की कल की बरसी पर मोदी ने अपने उद्बोधन में जो कहा, उसे इस अवसर पर कहा ही जाना चाहिए था लेकिन उन्होंने जो हाव-भाव अपनाया उसे राजनयिक अपरिपक्वता ही कहा जायेगा।
पड़ौसी देश का मसला घर के पड़ौसी के किसी मसले से ज्यादा पेचीदा होता है। घर के पड़ोसी से छुटकारे का अन्तिम विकल्प घर बदलना हो सकता है लेकिन प्रतिकूल पड़ौसी देश के होते ऐसा विकल्प भी नहीं होता। इस बात से सभी भिज्ञ हैं कि पाकिस्तान बनने से लेकर आज तक उसके अन्दरूनी हालात बद से बदतर होते गये हैं। वहां के चुने शासकों के पास भारत की तरह सम्पूर्ण सत्ता नहीं होती, वहां तो जब तब सेना ही सत्ता पर काबिज हो लेती है। पिछले बीस-तीस वर्षों से मामला बदतर इसलिए भी है कि वहां चुनी हुई सरकार और सेना के बाद उग्रवादियों का तीसरा केन्द्र प्रभावी हो गया है जिन्हें देश के धार्मिक कट्टरवादियों के सहयोग के साथ सेना का अपरोक्ष संरक्षण भी हासिल है। सभी जानते हैं कि वहां कभी चुनी सरकार होती भी है तो उसे सेना और उग्रवादियों के दबाव में ही शासन चलाना होता है और यह भी कि अपने शासन पर हावी रहने के लिए सेना चाहती रही है कि भारत के साथ तनाव बना रहे, इसके लिए वह उग्रवादियों को हर तरह से सहयोग करती और भारत के विरुद्ध भड़काती रहती है।
समझदार और चतुर पड़ोसी के रूप में भारत की ऐसे में जिम्मेदारी बनती है कि पाकिस्तान ने जैसे-तैसे ही चुनी सरकार यदि गई और काम कर रही है तो उसका मनोबल तोडऩे या कुचेरनी करने से उसे बचना चाहिए अन्यथा वहां की किसी भी बदमजगी का खमियाजा परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर भारत को ही उठाना होता है। मोदी उन नवाज शरीफ को कहां गिराना चाहते हैं जिन्हें अपनी ताजपोशी के समय उठाया था। भारत-पाक संबंधों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी रखने वाले सभी जानते हैं कि पिछले पचीस वर्षों में पाकिस्तान में जितने राजनेता हुए उनमें नवाज शरीफ ही हैं जो चाहते रहे हैं कि भारत के साथ रिश्ते सुधरे और इसके लिए वे प्रयासरत भी रहे हैं। यह बात अलग है कि सेना की बेरुखी और अन्दरूनी परिस्थितियों के चलते वे अपने इस ऐजेन्डे में बहुत सफल नहीं हो पाते। ऐसे में भारत से इस समझदारी की उम्मीद की जाती है कि नवाज जैसे शासक के लिए प्रतिकूलताएं पैदा करें। सार्क शिखर सम्मेलन में कल के जैसे दृश्य उन पाकिस्तानियों को शह देंगे जो नहीं चाहते कि भारत के साथ रिश्ते सुधरें।
इधर, मोदी के भी अपने बोए ही उन्हें विचलित करते हैं। पिछले वर्ष जून में सत्ता संभालने के बाद नवाज शरीफ अपनी आस्था के चलते अजमेर शरीफ आए तो भारत सरकार की ओर से राजनय औपचारिकता के चलते जयपुर में उन्हें भोज दिया गया, लाजमी है, मेजबानी का यह औपचारिक तकाजा होता है कि मेहमान को वही खिलाया जाय जिसे वह पसंद कर सके। इस भोज के बाद मोदी के नेतृत्व में भाजपाइयों द्वारा ही उन्हें परोसी बिरियानी को 'चिलगम' कर दिया गया। पाठक परिचित ही होंगे कि बिरियानी एक तरह का आमिष पुलाव ही है और पुलाव सामान्यत: हर खाने में होता है। अब इनसे पूछें कि मोदी की ताजपोशी के समय जब नवाज भारत आए थे तब क्या यह बिरियानी नहीं परोसी गई थी।
मोदीजी आपने कभी घर नहीं चलाया तो सही लेकिन सार्क सम्मेलन के मंच पर कल जो आपने किया उस तरह से विदेश नीति नहीं चल सकती। हो सकता है नवाज के प्रधानमंत्री रहते ऐसी ही परिस्थितियों में कल फिर उनके साथ आपको 'सलीका' निभाना पड़े।

27 नवम्बर, 2014

2 comments:

Unknown said...

Remarks are quite unique in a way ,,but Modiji's behavior is also conducted by the people ,he is ruling ,,he is behaving like a super hero ,,and that is what the public needed ..heeeeeeeeeeeeee

Unknown said...

When hw will fall down ,,UDTE UDTE,,,we too willlllllllll