Monday, November 3, 2014

कालेधन पर हाथ खड़े करने की मुद्रा

'सरकार कहती है कि हमने चूहे पकडऩे के लिए चूहेदानियां रखी हैं। एकाध चूूहेदानी की हमने भी जांच की। उसमें घुसने के छेद से बड़ा छेद पीछे से निकलने के लिए है। चूहा इधर फंसता है और उधर से निकल जाता है। पिंजरे बनाने वाले और चूहे पकडऩे वाले दोनों ही चूहे से मिले हुए हैं। वे इधर हमें पिंजरा दिखाते हैं और उधर वे चूहे को पिछला बड़ा छेद दिखा देते हैं। हमारे माथे पर सिर्फ चूहेदानी का खर्च चढ़ रहा है।'
हरिशंकर परसाई का यह पुराना व्यंग्य कल फेसबुक मित्र नवमीत को तब प्रासंगिक लगा जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल आकाशवाणी से 'मन की बात' करते कालेधन पर सफाई देने लगे। मोदी ने इस पर विवशता जताते हुए कह रहे थे कि उन्हें नहीं पता कि विदेशों में भारतीयों का कितना कालाधन जमा है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछली सरकार को भी नहीं पता था। पिछले आठ वर्षों से आडवाणी से लेकर योग-धंधी रामदेव अरबों-खरबों के कालेधन को विदेशों में जमा होने के आंकड़े दे रहे थे, मोदी उनसे क्यों नहीं पूछ रहे हैं कि वह सूची कहां गई? इसी तरह के धन की एक सूची होने का दावा आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल भी करते आए हैं। मोदी ने कल के 'मन की बात' उद्बोधन में वादा किया कि देश का कोई धन अवैध रूप से विदेशों में जमा है तो पाई-पाई वापस ले आएंगे। विदेशों में जमा कालेधन को लेकर पिछले आठ-दस साल से सुगबुगाहट चल रही है। इसके लिए कांग्रेसनीत पिछली सरकार ने कोई गंभीरता दिखाई हो, लगता नहीं है। इसी बिना पर मोदी भी अपने चुनाव अभियान में जनता को भ्रमित करने में सफल हुए और तीस वर्ष बाद कोई एक पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में सरकार बनाने में सफल हुई। सभी जानते हैं महंगाई, भ्रष्टाचार, कालाधन, चीन-पाकिस्तान की सीमाओं और स्त्री सुरक्षा में घोषित असफल पिछली सरकार से ऊबे मतदाताओं ने मोदी की बातों पर भरोसा किया। शासन संभालने के बाद संभवत: मोदी को लगने लगा कि इनमें से किसी भी समस्या से पार पाना उनके बस में नहीं है। इसलिए वे कभी स्वच्छ भारत अभियान चलाकर, कभी 'मन की बात' करके जनता का ध्यान असल मुद्दों से हटाने में जुटे हैं। इसे इस तरह भी देखना होगा कि विदेशों में जमा कालेधन की बात करना भी क्या देश में उससे ज्यादा जमा कालेधन से ध्यान बांटना तो नहीं है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि देश में जितना वैध व्यापार हो रहा है उससे ज्यादा अवैध तौर पर होता है। छिट-पुट व्यापार का अधिकांश हिस्सा सरकार को दिखाए जाने वाले दस्तावेजों में दर्ज ही नहीं होता। अलावा इसके निजी क्षेत्र के देश के बड़े उत्पादक कारखानों से भी इस तरह का अवैध व्यापार हो रहा है। यह अवैध व्यापार केवल देश में विक्रय होने वाले उत्पादों का हो रहा है, बल्कि इन्हीं कारखानों के उत्पादों का बड़ा हिस्सा अवैध रूप से विदेशों में जाता है। देशी-विदेशी ऐसे सभी लेन-देन हवाला के जरीये होता है और भुगतान विदेशी बैंकों में सीधे ही जमा करवा दिया जाता है। आजादी बाद से शुरू हुआ इस तरह का व्यापार हर व्यवस्थाओं में फलता-फूलता है। नई आर्थिक नीतियों के इन बत्तीस वर्षों में तो यह कितने गुणा बढ़ा कह नहीं सकते। कांग्रेस हो या भाजपा या इनके पिछलग्गू दल? इसे इसलिए पोषते रहे कि इनकी जरूरतों का धन ऐसा धंधा करने वाले ही उपलब्ध करवाते हैं अनुमानों को सही मानें तो मोदी का पिछला चुनाव अभियान दस हजार करोड़ का था, इतनी रकम की बिन्दियों को गिनना तो दूर आम-अवाम ऐसी बातों पर माथा ही नहीं लगाता। वह मान चुका है कि यह उनके बस का नहीं है, लेकिन केवल यह मान लेने भर से काम चलने वाला नहीं। देश की प्रत्येक चल-अचल संपत्ति में प्रत्येक भारतीय का बराबर मालिकाना है, इसे समझना और फिर विचार कर उसकी खैर लेने का उसका पूरा हक है।
मीडिया पर भरोसे की भैंस पाडा जनेगी। इन वर्षों में सर्वाधिक विचलन मीडिया में ही आया है और मोदी के आने के बाद तो उसकी स्थिति और भी दयनीय होकर लबादा उठाकर चलने वाले भर की रह गई है। मीडिया व्यापार के वशीभूत हो गया है और व्यापार का कोई दीन-धर्म रहा नहीं। सचेत आम-अवाम को ही होना होगा और यह मजबूरी त्यागनी होगी कि कम बुरे को चुने। क्योंकि बुराई सांप के बच्चे के मानिंद है और कैबत है कि सांप के बच्चे का क्या तो छोटा-बड़ा होना, डसेगा तो छोड़ेगा जहर ही। यह नेता और राजनीतिक पार्टियां इस कालेधन वालों के लिए यदि पिंजरा बनायेगी तो दूसरी ओर से उनके निकलने का प्रावधान पहले रखेगी अन्यथा इनकी विलासिता और अय्याशी कैसे चलेगी और कैसे चुनावों में करोड़ों-अरबों लगाकर आम-अवाम को प्रलोभन देंगे।

3 अक्टूबर, 2014

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