Monday, November 24, 2014

लोकतंत्र की बाड़ेबन्दी

लोक में एक कहावत प्रचलित है-चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर, कटना खरबूजे को ही है। यह कैबत ज्यों कि त्यों चाहे नगर निगम के पार्षद मण्डल पर सटीक चाहे बैठे, भाव को जाहिर कर ही देती है। मण्डल (बोर्ड) चाहे भाजपा का बने या कांगे्रस का, निगम के बजट का तीस प्रतिशत ही आम-अवाम के काम आना है। सत्तर प्रतिशत का 'जीमण' होना निश्चित है। ऐसे में कटना जनता के हिस्से के धन को ही है।
कल से सुन रहे हैं कि पार्षद चुनाव के संभावित जीतोकड़ों के कयास लगाये जाने लगे हैं। दोनों पार्टियां को अपने टिकट से खड़े उम्मीदवारों पर ही भरोसा नहीं है। भाजपा ने तो हाइकमान के निर्देशों का पालन करते हुए अपने उम्मीदवारों की बाड़ेबन्दी कर ली है। दो-तीन दिनों के जरूरी सामान की अटैची के साथ पार्षद निर्दिष्ट स्थानों पर घेर लिए गये हैं। कहने को इस बाड़ेबन्दी को पार्षद प्रशिक्षण शिविर का नाम दिया गया है। लेकिन असल मकसद उन्हें विचलन से बचाना है। इन तथाकथित शिविरों में सभी तरह के घोटों का इन्तजाम किया जा रहा है, जिसको जो-जो पुजवाना है वह इन तीन दिनों में मजे से पुजवा सकता है।
बीकानेर की बात करें तो सुन रहे हैं कांग्रेस ने मतदान पूर्व ही 'मारो-मारो' के हाके शुरू कर दिए, यानी उन्होंने तो मुनादी ही करवा दी कि जो पार्षद उनके पाळे में आयेगा उसे इस नवाजिश के लिए एक करोड़ से नवाजा जायेगा। इस बाकाडाक में कितना सच और कितना है झूठ कह नहीं सकते, लेकिन लगता है निगम पार्षद मण्डल में दोनों ही पार्टियों को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो चांदी सही निर्दलीयों की पूछ तो बढ़ ही जायेगी।
देश का लोकतंत्र इस मुकाम तक पहुंच जाएगा? ऐसा आजादी के किसी आकांक्षी ने नहीं सोचा होगा। पार्टियों को अपने अधिकृत उम्मीदवारों पर ही भरोसा खत्म हो गया। चुनाव जीतने का मकसद कहने को जनसेवा है, असल में तो स्वसेवा रह गया है।
बीकानेर नगर निगम का वर्तमान मण्डल और महापौर दोनों कांग्रेस के थे, छह सौ नौकरियों के अलावा इस मण्डल की कोई उपलब्धि नहीं गिनवाई जा सकती। सौ में से तीस प्रतिशत खर्च भी गुणवत्तापूर्ण नहीं हुआ। यही बात नगर विकास न्यास अध्यक्ष रहे मकसूद अहमद के कार्यकाल के बारे में कही जा सकती है। ऐसे में जनता कांग्रेस को नकारती है तो क्या गलत करती है। लेकिन जनता की बड़ी प्रतिकूलता यही है कि उसके पास विकल्प के तौर पर वही भारतीय जनता पार्टी है जो कांग्रेस की भद्दी कॉपी के रूप में हाजिर है।
राज चाहे कांग्रेस का हो या भाजपा का, जनता की प्रतिकूलता में कहीं कोई अन्तर नहीं देखा जाता बल्कि भाजपा की केन्द्र सरकार का छह महीने का चाल-चलन देखें तो उसकी सारी कोशिशें समर्थों और सबलों को लाभ पहुंचाने की रही हैं। अलबत्ता उसने नया तो कुछ किया ही नहीं, अब तक या तो कांग्रेस के किए को ही ढोया है या कांग्रेस जिन सबलों और समर्थों के लाभ के निर्णयों को लेने में झिझक रही थी उन निर्णयों को भाजपा बेधड़क ले रही है।
कांगे्रस और भाजपा, इन दो ही विकल्पों में आम-अवाम की मजबूरी है कि वह कुएं से निकलकर खाड में गिरे या खाड से निकल कर कुएं में। इस स्थिति के लिए बड़ा जिम्मेदार देश का तथाकथित बौद्धिकवर्ग और चौथे स्तम्भ का दम्भ लिए मीडिया या पत्रकारिता है, जो फिलहाल कहार की भूमिका में ही नजर रहे हैं। इनमें से अधिकांश बल पड़ते केवल पालकियां ही बदल रहे हैं, कभी कांग्रेस पालकी तो कभी भाजपा पालकी।

24 नवम्बर, 2014

No comments: