Saturday, September 13, 2014

स्मार्ट सिटी : हमारे सांसद और विधायकों की उनींदी

देश के केन्द्रीय मंच में नरेन्द्र मोदी के प्रवेश के साथ कुछ सपनों की पदचाप और कुछ दु:स्वप्नों की आहट महसूस की जाने लगी, देश में बढ़ती असहिष्णुता जैसे दु:स्वप्नों की आज बात नहीं करेंगे और सपनें मोदी ने इतने दिए हैं कि उनका उल्लेख एक बार में नहीं किया जा सकता। दरकते सपनों के लिए शाश्वत कथन है कि सपने कभी सच नहीं होते, कोई-सा अपवादस्वरूप सच हो भी जाए तो उसे सपनों के सम्बन्ध में दी गई स्थापना की पुष्टि ही मान लिया जाना चाहिए। मोदी के आने के बाद दरकते अधिकांश सपनों के बावजूद मोदी से उम्मीदें लोगों की कायम है। इसे हमें मोदी की प्रदर्शन क्षमता की सफलता मानना चाहिए।
आज हमारे इस रोने में राग यह है कि मोदी के घोषित सौ 'स्मार्ट सिटी' की सूची की चर्चा केवल कई दिनों से चल रही है बल्कि कहा जा रहा है कि अब तो इसे अन्तिम रूप ही दिया जाने लगा है। ज्यादा असमंजसता इसलिए भी है कि इस सूचीबद्धता के दौरान हमारे सांसद ने ऐसी कोई विज्ञप्ति फ्लैश की कि वे बीकानेर का नाम स्मार्ट सिटी घोषणा सूची में दर्ज करवाने में लगे हैं। इस चुप्पी के तीन मानी हो सकते हैं, पहला यह कि वे सून में हैं और उन्हें पता नहीं कि ऐसी कोई सूची बन भी रही है। दूसरा मतलब ये मान सकते हैं कि सूची में बीकानेर का नाम प्राथमिकता से ही गया है इसलिए बिना वजह हाके क्यों। तीसरे में सांसद महोदय इस चतुर-चुप्पी से काम चला रहे हों कि सूची में शहर को शामिल करवाने की पार तो पडऩी नहीं। इसलिए इस मुद्दे पर गूंगे बने रहने में ही सार है। अचम्भा ज्यादा विचलित करने वाला यह है कि सभी पार्टियों के शहर के वे नेता, छुटभैये, हलर-फलरिये और विज्ञप्तिबाजों को भी इस मुद्दे पर सांप कैसे सूंघ गया है। पिछले एक महीने से इससे मुत्तालिक छिट-पुट खबरें रही हैं लेकिन इस मुद्दे पर इन उल्लेखितों में से किसी के भावों ने जोर करना शुरू नहीं किया।
इस मुद्दे पर विधायकों को भुंडाने में कुछ संकोच इसलिए है कि मामला केन्द्र के पाले में है सो वे हाथ और पल्ला झाड़ देंगे। वैसे शहर के दोनों ही विधायक इस मुद्दे पर बयानों की रस्म अदायगी भर ही कर देते तो पार्टी स्तर पर अनुशासनहीनता में तो हरगिज नहीं आता क्योंकि शहरों का नाम तय करने में सम्बन्धित प्रदेशों की भूमिका भी है। सिद्धीकुमारी को तो चलो कुछ करना-धरना नहीं क्योंकि विधायकी को वह संभवत: बपौती मान बैठी है लेकिन गोपाल जोशी क्या चुप इसलिए हैं कि मुख्यमंत्री कहीं बुरा मान जाए और मंत्रिमंडल पुनर्गठन की सूची से नाम काट दे। लोक में कैबत यह भी है कि 'जागो तभी सवेरा' इस कैबत की तर्ज पर ही सही इनमें से कुछ लोग 'स्मार्ट सिटी' के बाशिन्दे होने की आकांक्षा का एहसास भर करवा दे तो तसल्ली होगी।
वैसे नहीं पता कि इस सूची में होने के मानदंड क्या तय किए गए हैं। लेकिन राजस्थान के सन्दर्भ से बात करें तो जिन तीन शहरों जयपुर, जोधपुर, कोटा को इस योजना के तहत 'कृतार्थ' करने की कवायद हो रही ये तीनों पहले से पर्याप्त स्मार्ट भले ही सही, अच्छे-खासे स्मार्ट शहर तो हैं ही हैं। इन शहरों का चुनने का कारण यह भी हो सकता है कि अच्छे-खासों को स्मार्ट बनाने में ताण कम आयेगी और कम हींग-फिटकरी से रंग चोखा जायेगा। जायज और ज्यादा सार्थक तो यह होता कि बीकानेर, भरतपुर अजमेर जैसे संभागीय मुख्यालयों को इसके लिए चुना जाना चाहिए था ताकि इनका डोळिया कुछ तो सुधरता। 'कुछ' इसलिए कहा कि भ्रष्टाचार पर बिना अंकुश के लागत के बड़े हिस्से की रकम काली होकर सम्बन्धितों की जेब में जानी है और जितनी लगनी है उसका कूटळा ही होना है, क्योंकि सभी जानते हैं कि सरकारी कामों का गुणवत्ता से वास्ता कम ही होता है। खैर, उम्मीद करते हैं कि हमारे सांसद अर्जुनराम मेघवालविधायकद्वय गोपाल जोशी और सिद्धीकुमारी इस मुद्दे पर सक्रियता भले ही  दिखाएंस्वांगी तौर पर ही सही, सफाई तो देंगे ही।

13 सितम्बर, 2014

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