Thursday, September 11, 2014

सब यूं ही चलेंगे

पाठक यदि ठठेरे की बिल्ली की मन:स्थिति में हों तो सुबह-सवेरे की अखबारी खबरों की ठक-ठक में ठिठके रह जाएं। वैसे शाम के अखबार भी कोई अलग ठक-ठक नहीं करते। कुल जमा बात यह कि यदि खबरें पढऩे की आदत बना ली है तो ये अखबार जो पुरसेंगे वही तो भला पाठक पढ़ेंगे ! मारकाट, दुर्घटनाएं, दुष्कर्म, हड़ताल, प्रदर्शन, ज्ञापन प्राकृतिक आपदाओं के अलावा बहुत कम खबरें होती हैं जो सुकून देती हों। हां, कुछ कथावाचकों, सन्तों और प्रवचनकारों के हवाले से कहें अथवा विज्ञप्तियों के माध्यम से ऐसी कुछेक खबरें अलग मिजाज की लग जाती हैं, लेकिन इन सबकी कही पर अमल जो दस-बीस प्रतिशत भी होने लगे तो अखबारों को अपनी तासीर ही बदलनी पड़े या फिर तो पृष्ठों की गिनती तक घटानी पड़ जाए।
देश के पर्यावरण और वन मंत्री प्रकाश जावडेकर की कार्यगति के समाचारों से शुरू करें तो इन तीन महीनों में ही उन 240 परियोजनाओं को उन्होंने हरी झंडी दिखा दी जिन्हें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली माना गया। जबकि ऐसी ही कुछ आपत्तियों के चलते संप्रग सरकार के बदल-बदल कर बने तीन मंत्रियों ने दुस्साहस नहीं किया। खैर, जिन्होंने सरकार बनवाने में सहयोग किया उन कॉरपोरेट घरानों का इतना हक तो बनता ही! पर्यावरण के नुकसान के नतीजे तो आयेंगे तब भुगतेंगे। हो सकता है यह पीढ़ी भुगते ही , अगली पीढिय़ों की वह खुद जानें।
प्रदेश के वकीलों की जजों से ही खींचातानी चल रही है, भुगत वादी-परिवादी रहे हैं। रास्ता कोई निकले इसकी कोई गुंजाइश नहीं दीख रही। वैसे भी क्या फर्क पड़ता जिन मुकदमों के निपटान में पन्द्रह से बीस वर्ष ये लगाते रहे हैं उनमें दो चार महीनों की हड़ताल करने से कोई सांधा तो लगना नहीं है। सरकार भी तमाशबीन बनी हुई है। लेकिन न्यायपालिका को सामान्यतया कुछ खास गिनने वाले ये प्रशासनिक अधिकारी भी कभी-कभार बीड़ में ही जाते हैं। सूबे के प्रमुख शासन सचिव हड़ताल के सिलसिले में तलब किए गये। न्यायालय में पेश होना उन्हें शायद तौहीन लगता होगा सो अधीनस्थ को भेज दिया। सामान्यतया ऐसी नजाकत में उलझने वाले जजों ने भी भौंहें तान ली तो प्रमुख शासन सचिव एक्सरे करवाने चल दिए। अब भई एक्सरा ही क्यों सोनोग्राफी करवाओ, एमआरआई करवाओ इससे आगे की भी कोई जांच होने लगी है तो वह भी लगे हाथ करवा लेनी चाहिए। इस बिना पर ही सही, हेकड़ी तो कायम रहनी ही चाहिए।
उधर विधि-विद्यार्थी मुकुल व्यास ने जोधपुर उच्च न्यायालय में बीकानेर के कोटगेट, फड़ बाजार की अव्यवस्थाओं को लेकर जो जनहित याचिका लगाई उससे संबंधित जवाब नगर विकास न्यास और बीकानेर नगर निगम को कल देना है सो दो दिनों से सम्बन्धित क्षेत्रों में कुछ छूं-छां हो रही। जनता भी यही सोच कर तसल्ली कर रही है कि नहाए उतना ही पुण्य। समस्याओं को तो चांके पर लौटना ही है और हो सकता है मुकुल व्यास भी इत्ते में तसल्ली कर लें और समय लेकर मामला न्यायालय में दफ्तर दाखिल हो जाए। वैसे शहर के नेता, जनप्रतिनिधि चाहते तो इस न्यायालयी हुड़े के बहाने प्रशासनिक अधिकारियों से इस क्षेत्र हेतु कुछ स्थाई सुधार करवा सकते थे। लेकिन ऐसी इच्छाशक्ति और दृष्टि वाले जनप्रतिनिधि और राजनेता इस शहर को अभी मिले ही कहां हैं। मुकुल व्यास जैसे लगातार सक्रिय नहीं रहे तो महीना तो क्या पन्द्रह दिन बाद ही इस क्षेत्र का अवलोकन कर लें पहले से भी बदतर हालत में मिलेगा। स्थाई कब्जे तो फड़ बाजार में लगातार हो ही रहे हैं बल्कि कई तो दस-दस फुट करके तीन बारी आगे बढ़ गए हैं! खैर, इस सून में सब यूं ही चलेगा-नेता भी, प्रशासन और ये अखबार भी।

11 सितम्बर, 2014

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