Monday, September 1, 2014

असली संकट असल परीक्षार्थियों के लिए ही है

स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने कल एक बड़ी कार्रवाई करते हुए सेना भर्ती परीक्षा में नकल कराने वाले अन्तर्राज्यीय गिरोह को पकड़ा है। उत्तरप्रदेश से जुड़े तारों के साथ सक्रिय इस गिरोह के मास्टर माइंड सेना में रहे लोग ही हैं। राजस्थान के लिए यह परीक्षा कल बीकानेर में ही होनी थी। नकल के नाम पर चालीस जनों से ढाई-ढाई लाख रुपये लेने की बात प्राथमिक तौर पर सामने आई है। मतलब एक करोड़ के इस गोरखधन्धे में राजस्थान के जोधपुर अजमेर के चार सहित कुल नौ लोग धरे गये हैं। पिछले बाइस वर्षों से इन करतूतों में लगे होने की बात स्वीकारने वाले अभिलाख सेना के रिटायर्ड सूबेदार हैं। नकल के लिए बस की व्यवस्था और इसे अंजाम देने वालों के बेड़े में तीन कारें भी शामिल बताई गई हैं। हो सकता है इनके अलावा सीरवाल और भी होंगे। इतना सब देखते हुए लगता नहीं है कि यह सब इन्होंने मात्र एक करोड़ के लिए ही किया हो। ऐसा 'धंधा' साल में एक-दो बारी ही हो पाता है। अलावा इसके प्रबन्धन में और कइयों के मुंह बन्द रखवाने के लिए भी मोटी रकमें खर्च करनी पड़ती होंगी। इस तरह के कामों में विशेष चतुराई के साथ अतिरिक्त सावचेती की भी जरूरत होती ही है। अन्यथा अभिलाख जैसे रिटायर्ड सूबेदार बाइस-बाइस वर्षों तक यह सब बिना अक्ल के निर्विघ्न सम्पन्न करवाते रहने में सफल नहीं हो सकते थे।
राजस्थान के सन्दर्भ से ही बात करें तो पिछले एक वर्ष में तय अधिकांश प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में व्यवस्था की पोल इसी तरह उघड़ती रही है, फिर वह चाहे स्वास्थ्य विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित होने वाली आरपीएमटी हो या राज्य लोक सेवा आयोग की प्री आरएएस सहित अन्य सरकारी नौकरी दिलवाने वाली परीक्षाएं ही क्यों हो। इस तरह की परीक्षाओं में तमाम गोपनीयता बरतने के बावजूद छीछालेदर होती रहती है। ऐसे में कोई छोटा समूह यह सब संभव करवा पाता हो लगता नहीं। कोई पूर्व व्यवस्थित गिरोह ऐसी सक्रियता के साथ साल के तीन सौ पैंसठ दिन सतत सक्रिय रहता होगा और उन्हें सूचनाओं और सम्पर्कों की कड़ी से कड़ी जोडऩे मे दिन-रात एक करते रहना पड़ता होगा। अलावा इसके इन चाक चौबन्द व्यवस्था वाली प्रिन्टिंग प्रेसों, जिनकी प्रतिष्ठा ऐसी कि कबूतर भी पर ना मार सके जैसी होती है, उनमें सेंध लगाकर कुछ हासिल करना कम जोखिम भरा और आसान नहीं होता। यानी हासिल करना और फिर उसके लिए ग्राहक ढूंढऩा वह भी गोपनीय तरीकों से, अन्दाजा लगाइए कितना मुश्किल होता होगा। ऐसा सब कुछ कोई सालाना पांच-दस लाख के लिए तो शायद ही करता होगा। कल पकड़े गये मामले में ही देखें तो क्या यह सचमुच एक करोड़ मात्र के लिए था, सन्देह है?
आधुनिकतम तकनीकों ने जिस तरह इन करतूतों को आसानी दे दी वैसे ही इन करतूतों से पार भी पाया जा सकता है। ये नकल कराने वाले यदि अक्ल का उपयोग इस तरह कर सकते हैं तो इन्हें रोकने के लिए अक्ल लगा कर परीक्षाएं करवाने वाले ये संस्थान नई तकनीक से इन परीक्षाओं को आयोजित क्यों नहीं करवा सकते।
परीक्षा शुरू होने से मात्र दो-तीन घण्टे पहले इन्टरनेट के माध्यम से पेपर को डाउनलोड करवाएं। हेवी डयूटी और हाई स्पीड लेजर और इंकजेट प्रिन्टरों के माध्यम से परीक्षा केन्द्रों पर इन्हें प्रिन्ट करवाया जा सकता है जो अब बहुत मुश्किल है और ही महंगा-सुरक्षित है सो अलग। सरकार को ऐसी व्यवस्था का तलपट निकालकर अभ्यास करवाना चाहिए ताकि असल परीक्षार्थियों को बार-बार पीडि़त प्रताडि़त होना पड़े।

1 सितम्बर, 2014

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