Thursday, August 28, 2014

'मैंने धनुष नहीं तोड़ा'

कल अचानक उच्च प्राथमिक स्कूल की उस कक्षा का हास्य प्रसंग स्मरण हो आया जिसमें सामान्य निरीक्षण के लिए जिला शिक्षा अधिकारी धमकते हैं और बिना यह जाने कि 'परशुराम संवाद' छात्रों को पढ़ा दिया गया या नहीं, विद्यार्थियों से परशुरामी धमक के साथ पूछ बैठे कि 'धनुष किसने तोड़ा'? उस स्कूल के हिन्दी अध्यापक कुछ ज्यादा ही लेट लतीफ थे। सो पाठ्यक्रम में लगा रामचरितमानस का उक्त प्रसंग तब तक पढ़ा नहीं पाए थे। बेचारे विद्यार्थी आकळ-बाकळ होकर एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे, हिन्दी अध्यापक भी हक्का-बक्का! मरता क्या नहीं करता, कक्षा के उस होशियार विद्यार्थी को आंखों से इशारा किया जो हमेशा अगला पाठ पढ़ कर आया करता था। अध्यापक यह भूल गये कि अभी 'परशुराम संवाद' का नम्बर कई दिन बाद आना है। विद्यार्थी को लगा कि सचमुच कोई गड़बड़ हो गई है, किसी ने कुछ तोड़-तुड़ा दिया होगा और अध्यापक जी चाह रहे हैं, उक्त इल्जाम वह अपने मत्थे ले ले। विद्यार्थी अपना हित-अहित जानने-समझने लग गया था, सो तुरन्त खड़ा हुआ और करबद्ध होकर अधिकारी को जवाब दे दिया—'साब! मैने नहीं तोड़ा, फलाना सहपाठी ज्यादा कुचमादी है, हो सकता है उसने तोड़ा होगा।' माजरे को समझ पाने पर पूरी कक्षा भयभीत और स्तब्ध थी। अचानक आई इस विपदा से 'कुचमादी' की छाप लगवा चुके विद्यार्थी को भी कोई जवाब नहीं सूझा।
उक्त कक्षाकक्ष के प्रसंग का ही दृश्य देश के राजमंच पर कल उस समय अचानक उपस्थित हो गया जब देश के गृहमंत्री ने संवाददाताओं के मुखातिब होकर स्पष्टीकरण दिया कि 'जिस दिन मेरे या मेरे परिवार के किसी व्यक्ति पर कोई भी आरोप साबित हो जाएगा उस दिन मैं राजनीति को ठोकर मारकर घर बैठ जाऊंगा।' अचानक आन पड़े इस बयान से देश ही नहीं पत्रकार तक हतप्रभ रह गये कि इस स्कूप को वे अब तक हासिल क्यों नहीं कर पाए। पत्रकारों पर घड़ों पानी तब और गिरा जब राजनाथ ने बात को खोलते हुए खुद ही बताया कि पिछले पन्द्रह-बीस दिनों से बेटे पंकज पर रिश्वत लेने का आरोप चलाया जा रहा है। इस संबंध में प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष से बात की तो उन्होंने भी इस 'अफवाह' पर आश्चर्य जताया। देश की कक्षा कल उसी तरह स्तब्ध थी जैसे उस दिन उक्त उच्च प्राथमिक स्कूल की वह कक्षा!
अब जो बात उघड़ी है उसमें कहा जा रहा है कि सत्ता के ऊपरी माले (मंजिल) में कई दिनों से यह चर्चा गर्म थी कि गृहमंत्री के बेटे पंकजसिंह ने एक मोटे पुलिस अधिकारी से मोटी पोस्टिंग के लिए मोटी रकम ली है। कहते हैं कि प्रधानमंत्री को जब इसकी भनक लगी तो बाप-बेटे को तलब कर पिता के सामने बेटे को घुड़क दिया कि ली गई रकम तुरंत लौटा दो और आगे के लिए भी खबरदार कर दिया। कहते हैं कि राजनाथसिंह बेटे के इस प्रकरण के चलते नोएडा विधानसभा उपचुनाव के टिकट में सांधा नहीं लगवा सके, जो कल तक टिकट खुद बांटा करते थे।
राजमंच पर अचानक दृश्यमान हुए इस प्रसंग के पीछे की बात यह बताई जा रही है कि सत्ता के इस ऊपरी माले में घमासान दो नम्बर के लिए शुरू हो गया है। नम्बर एक तो एक ही है। दो नम्बर के लिए राजनाथ पिछले वर्ष सितम्बर से डील में लगे हुए थे और पार्टी अध्यक्षी छोड़ गृह मंत्रालय हासिल कर मोटा-मोटी सफल भी होते दीख रहे थे। कहा जा रहा है कि जो दो नम्बर का पाया हड़पने में लगे हैं वही राजनाथ-पंकज को नम्बरी साबित करने में जुटे हैं। ' खाऊंगा और खाने दूंगा' की हुंकार भरने वाले मुखिया वह तरतीब क्यों नहीं बताते कि बिना खाए कैसे तो पार्टी जिन्दा रहेगी और कैसे उसको चलाने वालों की विलासिताएं। राजनाथ को पार्टी अध्यक्ष बनते ही लग गया होगा कि आसन्न आम चुनावों के लिए हजारों करोड़ रुपयों का इन्तजाम उनके बस का नहीं है। सो पार्टी अध्यक्ष की 'म्यूजिकल चेयर' पर बैठते ही टेडीबियर को तत्काल मोदी की ओर फेंक दिया। और मोदी मानों उसे लपकने को ही तैयार बैठे हों।
आम-आवाम अधिकांश जानता है कि राजनीति का यह कोरपोरेट व्यवसाय बिना हजारों करोड़ रुपये की व्यवस्था के चल नहीं सकता और इसकी पूर्ति केवल सफेद धन से नहीं हो सकती। फिर क्यों तो ईमानदारी का यह नाटक प्रधानमंत्री कर रहे और क्यों गृहमंत्री? बात दूसरे नम्बर की है तो आडवाणीजी की तरह उपप्रधानमंत्री घोषित क्यों नहीं करवा लेते। पर इसमें भी बड़ा पेंच यह है कि नरेन्द्र मोदी अटलबिहारी जैसे उदार तो हैं नहीं, पर राजनाथ भी आडवाणी जैसे कहां बन पाए हैं।

28 अगस्त, 2014

No comments: