Tuesday, August 26, 2014

खनन में लूट-खसोट

उदयपुर में कल हुई प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में जो मुख्य फैसले हुए उनमें सरकारी कर्मचारियों की प्रोबेशन अवधि को दो वर्ष से एक वर्ष करना और इस दौरान उन्हें पूरा वेतन और छुटियां देने के फैसले की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन एक अन्य फैसला जिसमें खनन नीति में उदयपुर संभाग के लिए विशेष रियायतें दी गई हैं। साथ ही वहां के आदिवासी क्षेत्रों में खान आवंटन पर लगी रोक को हटाने का फैसला सही नहीं कहा जा सकता। खनन का धंधा दिन--दिन अराजक होता जा रहा है और जो इससे मालामाल हो रहे हैं, उनके असीम लालच को भी मानवीय नहीं कहा जा सकता। सामाजिक तौर पर आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के नाम पर आदिवासी इलाकों में इस तरह की छूटें देना वहां के प्राकृतिक और सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करना है। छत्तीसगढ़, ओडीशा और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में बेकाबू हुई माओवादी गतिविधियां इसी तरह की नीतियों का परिणाम हैं। तथाकथित सभ्य समाज आदिवासियों को सभ्य बनाने के नाम पर यह सब जो कर रहा है वह उनके साथ अमानवीय अत्याचार की श्रेणी में माना जाएगा और यही कारण है कि आदिवासियों के रोष का इस्तेमाल माओवादी संगठन अपने हिसाब से करने में सफल होते हैं। प्रदेश की सरकार को इस तरह के निर्णय करने से पहले इस नजरिए से भी विचार करना चाहिए।
बात खनन की हो रही है तो लगे हाथ उच्चतम न्यायालय के कल आए फैसले की चर्चा करलें जिसमें कोयला एक बार फिर सुर्खियों में है। जिस भाजपा ने कोयला खदान आवंटन में सप्रंग सरकार के चेहरे पर कालिख पोतने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी, कल के इस फैसले से खुद भाजपा-नीत राजग की अटल सरकार के चेहरे पर कालिख पुतती लग रही है। न्यायालय ने जो फैसला दिया है उसमें माना गया है कि 1993 के बाद कोयला खदानों के जो भी आवंटन इस दौरान हुए वे अवैध हैं। पांच वर्ष रही राजग सरकार ने 33 खदानों को आवंटित करने में जो करतूती तौर-तरीके अपनाए उन्हीं को बढ़ाते हुए आगे दस साल राज करने वाली कांग्रेस-नीत संप्रग की मनमोहन सरकार ने 174 आवंटन कर दिए। यानी लूट-खसोट के जिसको जितने मौके मिले, कोई पीछे नहीं रहा और ही अब कोई रहने वाला है। प्रदेश भाजपा सरकार के ऐसे फैसले इसके उदाहरण हैं। बीकानेर क्षेत्र में लिग्नाइट कोयले के खनन में अनियमितताओं से आर्थिक घोटाले और इससे पनप रहे माफियाओं की बदमजगियों के छिट-पुट समाचार बाकाडाक के माध्यम से जब-तब सुनने को मिल ही जाते हैं।
हम यह भूल जाते हैं कि खनिज सहित सभी तरह की प्राकृतिक संपदाओं के सृजन में सदियां नहीं, हजार-लाख वर्ष भी नहीं, करोड़ों-अरबों वर्ष लगे हैं। कोयला बनने की प्रक्रिया को ही समझें तो इसे इस रूप में आने में 20 से 30 करोड़ वर्ष लगे। हीरे और अन्य कीमती पत्थरों ने बनने में इससे भी कई गुना समय लिया है। लगभग सभी खनिज पदार्थों को प्रकृति ने इस पृथ्वी के गर्भ में लाखों-करोड़ों वर्ष रखा तभी आज हम इनका उपयोग कर पा रहे हैं। लेकिन उपयोग हो तब तक ठीक, अब जब हम इससे अपने लालच पूरे करने में लग गये तब इसे भी क्यों नजरअन्दाज कर जाते हैं कि यह सब असीमित नहीं है। विज्ञान अब यह सब बताने में सक्षम है कि कौनसी वस्तु कितनी मात्रा में है और जिस हवसी तौर-तरीकों से इसे नोचने में लगे हैं उसके चलते करोड़ों वर्षों में सृजित इस संपदा को हम सैकड़ों वर्षों में ही समाप्त कर देंगे। जीवनानुकूल और प्रतिकूल सभी वस्तुओं को बरतते समय मानवीय सोच नहीं रखेंगे तो आगामी पीढिय़ां इस बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के हम लोगों को कितना कोसेंगी इसका अन्दाजा भी लगाने का तो हमारे पास समय है और ही मंशा।

26 अगस्त, 2014

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