Thursday, November 7, 2013

बिगाड़ने को तैयार तीन तिगाड़े

लोक में अंकों को लेकर शुभ-अशुभ की धारणाएं हैं, सात के अंक को जो प्रतिष्ठा मिली हुई है वैसी किसी अन्य को नहीं और तीन के प्रति दुराग्रहों से लगभग सभी परिचित हैं। जिले की विधानसभाई सीटें सात हैं तो इस चुनाव में तीन दिग्गज स्थापित पार्टियों के गणित को बिगाड़ने की लगभग ठान चुके हैं यानीतीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा लूणकरनसर, खाजूवाला और नोखा ऐसे ही चुनावी क्षेत्र हैं जहां से मानिक सुराणा, गोविन्द मेघवाल और कन्हैयालाल झंवर जैसे पूर्व विधायकों की टिकट वितरण में उम्मीदें पूरी नहीं हो रही हैं।
गोविन्द मेघवाल भाजपा सरकार में संसदीय सचिव रहे हैं और पिछले चुनाव में ही वे पार्टी से किनारा कर खाजूवाला सुरक्षित सीट परसम्मानजनकहार झेल चुके हैं। बीच में लगभग तय माना जा रहा था कि कांग्रेस उन्हें अपनाकर खाजूवाला से प्रत्याशी घोषित कर देगी, मुख्यमंत्री गहलोत ऐसा चाह भी रहे हैं लेकिन सम्भवतः राहुल फैक्टर इसमें आड़े रहा है। कल जारी कांग्रेस की दूसरी सूची में भी खाजूवाला से प्रत्याशी घोषित ना होना जाहिर करता है कि मुख्यमंत्री ने उम्मीद अभी छोड़ी नहीं है। पर गोविन्द मेघवाल कुछ ज्यादा ही उतावले लग रहे हैं या हो सकता है वे पिछले चुनावों में रही कमियों को दोहराना नहीं चाहते। कांग्रेस भी रेंवतराम या किसी अन्य नये चेहरे को उतारती है तो हो सकता है अपने जीवट के चलते गोविन्द मेघवाल बिना दल के ही बाजी मार ले जाएं।
इससे बद्तर मामला लूणकरनसर का है। वहां जाट दिग्गज होने की लाइन में लगे वीरेन्द्र बेनीवाल का खेल बिगाड़ने के चक्कर में भाजपा अपना खेल बिगाड़ने की रिस्क ले बैठी है। मानिक सुराणा के भाजपा उम्मीदवार होने के चलते कहना मुश्किल था कि वीरेन्द्र बेनीवाल बाजी हार जाएंगे लेकिन जैसे ही भाजपा ने  सुमित गोदारा को मैदान में उतारा वैसे ही यह माना जाने लगगा कि मानिक सुराणा निर्दलीय खड़े होकर जीत भी सकते हैं। यानी खुद की ना सिकने का गिला नहीं होगा, कांग्रेस की रोटी के नीचे से इस तरह खीरे खींच ही सकती है भाजपा। कुछ भाजपाई तो कहने भी लगे हैं कि वीरेन्द्र बेनीवाल की हार की निश्चितता इसी तरह की जा सकती थी। मानिक सुराणा भाजपा उम्मीदवार होकर इतने बली नहीं होते जितने इन परिस्थितियों में निर्दलीय होकर हो लेंगे। भाजपा में जो अब तक सुराणा की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं, हो सकता है सहानुभूति में वे ही उनके साथ हो लें। सुराणा पैंसठ वर्षों के अपने राजनैतिक जीवन में यह हैसियत तो पा ही चुके हैं कि वे क्षेत्र के मतदाताओं की सहानुभूति लगभग अपने अन्तिम चुनाव में हासिल कर लेंगे।
तिगाड़े का तीसरा कोण नोखा के अड़ियलों के कारण अलग से रोचक है। वर्तमान निर्दलीय विधायक कन्हैयालाल झंवर सरकार में संसदीय सचिव होकर भी यहीं से फिर उम्मीदवार होने की घोषणा कर चुके हैं वहीं पहले से लगभग तय रामेश्वर डूडी की घोषणा कल की कांग्रेस सूची में हो चुकी है। कन्हैयालाल झंवर को यहां से दूर करने के प्रयास में कांग्रेस अभी लगी है और संभवतः इसीलिए बीकानेर (पूर्व) की घोषणा रुकी हुई है कि झंवर यदि बीकानेर (पूर्व) से उतरने को तैयार हों तो पार्टी टिकट दे सके। डूडी ने अपने विकल्प पहले ही बन्द कर रखे हैं। इस तरह डूडी और झंवर दोनों हीनोखा-खिलौनेके लिए मचले हुएलालकी भूमिका में हैं, ‘मैं तो वही खिलौना लूंगा मचल गया दीना का लालकी तर्ज पर। सहीराम बिश्नोई को उम्मीदवार बनाने से यहां भी भाजपा से लूणकरनसर जैसा ही खेल हो गया है। भाजपाई असन्तोष और मानिक सुराणा की तरह ही झंवर की अपने क्षेत्र में पांच साल की सक्रियता के चलते हो सकता है यह सीट भी भाजपा और कांग्रेस दोनों के सौ के आंकड़े में कम हो जाये।
इस प्रकार सात सीटों के इस जिले में तीनों तिगाड़े काम बिगाड़ने में सफल हो जाते हैं तो राजस्थान में अपने तरह का यह अलग उदाहरण होगा।
7 नवम्बर, 2013


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